VIDEHA

Archive for the ‘गीत-नाद’ Category

‘विदेह’ १५ जुलाई २००८ ( वर्ष १ मास ७ अंक १४ )६. पद्यस्व. श्री रामजी चौधरीगंगेश गुंजन ज्योति झा चौधरी

In कविता, गीत, गीत-नाद, पद्य, Maithili Poem, Maithili Poetry on अगस्त 1, 2008 at 11:37 पूर्वाह्न

६. पद्य
1.
अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)आ.गजेन्द्र ठाकुर
इ. श्री गंगेश गुंजन ई.ज्योति झा चौधरी
2. महाकाव्य- महाभारत
१.विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (१८७८-१९५२)
२. गजेन्द्र ठाकुर

१. विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे एहि अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि।
विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952) जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी,जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य ।
जेना शंकरदेव असामीक बदला मैथिलीमे रचना रचलन्हि, तहिना कवि रामजी चौधरी मैथिलीक अतिरिक्त्त ब्रजबुलीमे सेहो रचना रचलन्हि।कवि रामजीक सभ पद्यमे रागक वर्ण अछि, ओहिना जेना विद्यापतिक नेपालसँ प्राप्त पदावलीमे अछि, ई प्रभाव हुंकर बाबा जे गबैय्या छलाहसँ प्रेरित बुझना जाइत अछि।मिथिलाक लोक पंच्देवोपासक छथि मुदा शिवालय सभ गाममे भेटि जायत, से रामजी चौधरी महेश्वानी लिखलन्हि आ’ चैत मासक हेतु ठुमरी आ’ भोरक भजन (पराती/ प्रभाती) सेहो। जाहि राग सभक वर्णन हुनकर कृतिमे अबैत अछि से अछि:
1. राग रेखता 2 लावणी 3. राग झपताला 4.राग ध्रुपद 5. राग संगीत 6. राग देश 7. राग गौरी 8.तिरहुत 9. भजन विनय 10. भजन भैरवी 11.भजन गजल 12. होली 13.राग श्याम कल्याण 14.कविता 15. डम्फक होली 16.राग कागू काफी 17. राग विहाग 18.गजलक ठुमरी 19. राग पावस चौमासा 20. भजन प्रभाती 21.महेशवाणी आ’ 22. भजन कीर्त्तन आदि।
मिथिलाक लोचनक रागतरंगिणीमे किछु राग एहन छल जे मिथिले टामे छल, तकर प्रयोग सेहो कविजी कएलन्हि।
प्रस्तुत अछि हुनकर अप्रकाशित रचनाक धारावाहिक प्रस्तुति:-
22.
भजन विहाग

विपति मोरा काटू औ भगवान॥
एक एक रिपु से भासित जन,
तुम राखो रघुवीर,
हमरो अनेक शत्रु लतबै अछि,
आय करू मेरो त्राण॥
जल बिच जाय गजेन्द्र बचायो,
गरुड़ छड़ि मैदान,
दौपति चीर बढ़ाय सभामे,
ढेर कयल असमान॥
केवट वानर मित्र बनाओल,
गिद्ध देल निज धाम,
विभीषणके शरणमे राखल
राज कल्प भरि दान॥
आरो अधम अनेक अहाँ तारल
सवरी ब्याध निधान,
रामजी शरण आयल छथि,
दुखी परम निदान॥

23.

महेशवानी

हम त’ झाड़ीखण्डी झाड़ीखण्डी हरदम कहबनि औ॥
कर-त्रिशूल शिर गंग विराजे,
भसम अंग सोहाई,
डामरु-धारी डामरुधारी हरदम कहबनि औ॥
चन्द्रभाल धारी हम कहबनि,
विषधरधारी विषधरधारी हरदम कहबनि औ॥
बड़े दयालु दिगम्बर कहबनि,गौरी-शंकर कहबनि औ,
रामजीकेँ विपत्ति हटाउ,
अशरणधारी कहबनि औ॥

24.

चैत नारदी जनानी

बितल चैत ऋतुराज चित भेल चञ्चल हो,
मदल कपल निदान सुमन सर मारल हो॥
फूलल बेलि गुलाब रसाल कत मोजरल हो,
भंमर गुंज चहुओर चैन कोना पायब हो॥
युग सम बीतल रैन भवन नहि भावे ओ,
सुनि-सुनि कलरव सोर नोर कत झहरत हो॥
रामजी तेजब अब प्राण अवधि कत बीतल हो,
मधुपुर गेल भगवान, पलटि नहि आयल हो॥

25.
भजन लक्ष्मीनारायण

लक्ष्मीनारायण हमरा ओर नहि तकय छी ओः॥
दीन दयाल नाम अहाँक सब कहैये यौ
हमर दुखः देखि विकट अहूँ हरै छी योः॥
ब्याध गणिका गृध अजामिल गजके उबाड़ल यो
कोल किरात भीलनि अधमके ऊबारल यो
कतेक पैतके तारल अहाँ गनि के सकत यो
रुद्रपुरके भोल्मनाथ अहाँ धाम गेलायोः॥
जौँ नञ हमरा पर कृपा करब हम की करब यौ
रामजी अनाथ एक दास राखू योः॥
(अनुवर्तते)

(अनुवर्तते)
१. श्री गंगेश गुंजन २. श्रीमति ज्योति झा चौधरी
१.. गंगेश गुंजन श्री गंगेश गुंजन(१९४२- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ’ उपन्यासकार। मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक। उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार। एकर अतिरिक्त्त हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोट (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आ’ शब्द तैयार है (कविता संग्रह)।
आयुर्दा ‘
ई बात नहि जे पकड़वाक प्रयास मे बात-बसात,
छूटल के छुटले रहि जाइत अछि-
अतीत जेबी-झोरा वा किताब-कॉपी पर
दकचल झगड़ाक साक्षी।
आब इहो नहि जकरा देब’ पड़य मजूरी
मामिला-मोकदमाक पक्ष आ विपक्ष मे गवाही देवाक दाम।

दाम ल’क’ ठाढ़ भइयो क’ कहां भेटत बजारक आंखि,
दोकानक आकृति, दोकानदारक आगत-भागत,
पहिले पहिल बुझाइत छैक सब कें
थिक सबटा बेकार।
सबकिछु छोड़ि क’ चलि गेल सुखाएल बालु पर
पुरीक समुद्र। द’ मुदा गेल केहन सुनिश्चित भरोस
बूझल अछि मन अहांकें कनिके काल मे ओकर
उद्दाम उत्ताल लहरिक घुरि क’ फेर छू लेबाक
धोखाड़ि क’ छोड़ि जयवाक स्नेह।

सबकिछु छुटलाहा, सभकिछु छुटिये नहि जाइत छैक
जेना सब किछु बांचल सबटा बांचले मे नहि,
भीतरे भीतर खिया गेल, चनकि गेल आ कए बेर
रिक्त भ’ गेल सरबा सं झांॅपल सुखाएल घैल जकांॅ
भरि दुपहरिया बांचल खुचल-जएह जतवे से साफ देखार
घैलची पर धएल रहैए।

मन ! अहां की छी आब ?
घैल, घैलची , कि दुपहर ? सांॅझ ?
पुरीक समुद्र कि भुवनेश्वरक बजार ?
कोणार्कक भग्न प्रस्तर पहियाक अवसादग्रस्त सूर्य,
एकान्त मे बैसल गर्भगृहक पार्श्व मे लैंड स्केप बनबैत पटनाक युवक,
बा सागरक बालु सं तट पर बना रहल बालुक शृंगार सौंदर्य दीप्त
तरहत्थी पर गाल, आ केहुनी बले करोट पड़लि वज्रस्तनी मांसल स्त्री,
गढ़ि रहल ओड़िया बालु-मूर्त्तिकार सुदर्शन पटनायक ?
कनिको नहि उदास
सूर्योदय मात्र धरिक आयुर्दाक अपन दिव्य कलाक
अकाल काल कवलनक प्रसंग!

की छी अहां मन ?
कहियो ने छोड़लहुं हमरा एकहु क्षण
ने भेलहुं जीवन कें एकहु पल
आइ अहां छी- हेरायल कि भेटल ?
२. ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि http://www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ”मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति

मिथिलाक विस्तार
हम सब ओहि समूहक लोक
इतिहास छानब जकर भाग
संस्कृति बड़ धनी
मुदा संरक्षणक अभाव
जहिया सभक नींद खुजत
तहिया करब पश्चाताप
ओहि सभ्यताकेँ ताकब
जे अखन लगैअ श्राप
उन्नतिक पथ पर चलऽ लेल
पहिरलहुँ आधुनिकताक पाग
जिनकासॅं ई सुरक्षित अछि
से गाबैत बेरोजगारीक राग
जे गरीबीक सीमा पार कएलाह
से व्यस्त प्रतियोगितामे दिन राति
एक संजीवनी बुटीक अभिलाषा
जे सभ्यताकेँ दिअए सुरक्षित आधार
विश्वस्तरीय संस्थाक निर्माण होए
एकर विशेषताक जे करए विस्तार
६.भीष्म-पर्व

भेल भोर रणभूमिमे कौरव-पाण्डव सेना सहित
आगाँ भीष्म कौरवक पाण्डवक अर्जुन-कृष्ण सहित।
भीष्मक रथक दुहुओर दुःशासन दुर्योधन छलाह,
पार्श्वमे अश्वत्थामा गुरु द्रोणक संग भाग्य आह।
युद्ध कए राज्य पाएब मारि भ्राता प्रियजनकेँ,
सोचि विह्वल भेल अर्जुन गांडीव खसत कृष्ण हमर।
कर्मयोग उपदेश देल कृष्ण दूर करू मोह-भ्रम,
स्वजन प्रति मोह करि क्षात्रधर्मसँ विमुख न होऊ।
अधर्मसँ कौरवक अछि नाश भेल देखू ई दृश्य।
विराटरूप देखि अर्जुन विशाल अग्नि ज्वालमे,
जीव-जन्तु आबि खसथि भस्म होथि क्षणहि,
कौरवगण सेहो भस्म भए रहल छलाह,
चेतना जागल अर्जुनक स्तुति कएल सद्यः।
फलक चिन्ता छोड़ि कर्म करबाक ज्ञानसँ,
आत्मा अमर अछि शोक एकर लेल करब नहि उचित।
युढिष्ठिर उतरि रथसँ भीष्मक रथक दिस गेलाह,
गुरुजनक आशीर्वाद लए धर्मपालन मोन राखल।
भीष्म द्रोण कृपाचार्य पुलकित विजयक आशीष देल,
धृतराष्ट्र पुत्र युयुत्सु देखि रहल छल धर्मनीति
छोड़ि कौरव मिलल पाण्डव पक्षमे तत्काल,
युषिष्ठिर मिलाओल गर ओकरसँ भेल शंखनाद।
अर्जुन शंख देवदत्त फूकि कएल युद्धक घोषणा,
आक्रमण कौरवपर कए रथ हस्ति घोटक पैदल,
युद्धमे पहिल दिन मुइल उत्तर विराटक पुत्र छल।
भीष्म कएल भीषण क्षति साँझमे अर्जुनक शंख,
बाजि कएल युद्धक समाप्ति भीष्म सेहो बजाओल अपन।
पहिल दिनक युद्धसँ पाण्दव शोकित दुर्योधन हर्षित।
दोसर दिनक युद्ध जखन शुरू भीष्म आनल प्रलय।
कृष्ण एना भए हमर सेना मरत चलू भीष्म लग।
हँ धनञ्जय रथ लए जाइत छी भीष्मक समक्ष।
दुहुक बीच जे युद्ध भेल विकराल छल काँपि सकल।
भीम सेहो संहारक बनल भीष्म छोड़ि अर्जुनकेँ ओम्हर दुगल,
सात्यिकीक वाणसँ भीष्मक सहीसक अपघात भेल,
खसल भूमि तखन ओऽ भीष्मक घोड़ा भागल वेगमान भए।
साँझ भेल शंख बाजल युद्ध दू दिनक समाप्त भेल।

तेसर दिन सात्यिकी अभिमन्यु कौरवपर टूटल,
द्रोणपर सहदेव-नकुल युधिष्ठिर आक्रमण कएल,
दुर्योधनपर टूटल भीम वाण मारि अचेत कएल,
ओकर सहीस दुर्योधनकेँ लए चलल रणक्षेत्रसँ,
कौरव सेना बुझल भागल छल ओऽ युद्ध छोड़ि कए।
भागि रहल सेनापर भीम कएलन्हि आक्रमण,
साँझ बनि रक्षक आएल दुर्योधन कुपित भेल।
भीष्मकेँ रात्रिमे कहल अहाँक हृदय पक्षमे अछि पांडवक,
भीष्म कहल छथि ओऽ अजेय परञ्च युद्ध भरिसक करब।
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।

विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.co.in केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx आ’ .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

‘विदेह’ १ जुलाई २००८ ( वर्ष १ मास ७ अंक६. पद्य अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरीश्री गंगेश गुंजनज्योति झा चौधरीगजेन्द्र ठाकुर शैलेन्द्र मोहन झा

In कविता, गीत, गीत-नाद, पद्य, Maithili Poem, Maithili Poetry on जुलाई 28, 2008 at 6:18 अपराह्न

६. पद्य
अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)
आ. श्री गंगेश गुंजन
आ.पद्य ज्योति झा चौधरी
इ.पद्य गजेन्द्र ठाकुर शैलेन्द्र मोहन झा
विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे एहि अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि।
विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952) जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी,जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य ।
जेना शंकरदेव असामीक बदला मैथिलीमे रचना रचलन्हि, तहिना कवि रामजी चौधरी मैथिलीक अतिरिक्त्त ब्रजबुलीमे सेहो रचना रचलन्हि।कवि रामजीक सभ पद्यमे रागक वर्ण अछि, ओहिना जेना विद्यापतिक नेपालसँ प्राप्त पदावलीमे अछि, ई प्रभाव हुंकर बाबा जे गबैय्या छलाहसँ प्रेरित बुझना जाइत अछि।मिथिलाक लोक पंच्देवोपासक छथि मुदा शिवालय सभ गाममे भेटि जायत, से रामजी चौधरी महेश्वानी लिखलन्हि आ’ चैत मासक हेतु ठुमरी आ’ भोरक भजन (पराती/ प्रभाती) सेहो। जाहि राग सभक वर्णन हुनकर कृतिमे अबैत अछि से अछि:
1. राग रेखता 2 लावणी 3. राग झपताला 4.राग ध्रुपद 5. राग संगीत 6. राग देश 7. राग गौरी 8.तिरहुत 9. भजन विनय 10. भजन भैरवी 11.भजन गजल 12. होली 13.राग श्याम कल्याण 14.कविता 15. डम्फक होली 16.राग कागू काफी 17. राग विहाग 18.गजलक ठुमरी 19. राग पावस चौमासा 20. भजन प्रभाती 21.महेशवाणी आ’ 22. भजन कीर्त्तन आदि।
मिथिलाक लोचनक रागतरंगिणीमे किछु राग एहन छल जे मिथिले टामे छल, तकर प्रयोग सेहो कविजी कएलन्हि।
प्रस्तुत अछि हुनकर अप्रकाशित रचनाक धारावाहिक प्रस्तुति:-
18.
भजन विनय

सुनू-सुनू औ भगवान,
अहाँक बिना जाइ अछि
आब अधम मोरा प्राण॥
कतेक शुरके मनाबल निशिदिन
कियो न सुनलनि कान,
अति दयालु सूनि अहाँक शरण अयलहुँ जानि॥
बन्धु वर्ग कुटुम्ब सभ छथि बहुत धनवान,
हमर दुःख देखि-देखि हुनकौ होइ छनि हानि।।
रामजी निरास एक अहाँक आशा जानि,
कृपा करी हेरु नाथ,
अशरण जन जानि॥

19.

महेशवाणी

देखु देखु ऐ मैना,
गौरी दाइक वर आयल छथि,
परिछब हम कोना।
अंगमे भसम छनि,भाल चन्द्रमा
विषधर सभ अंगमे,
हम निकट जायब कोना॥
बाघ छाल ऊपर शोभनि,मुण्डमाल गहना,
भूत प्रेत संग अयलनि,बरियाती कोना॥
कर त्रिशूल डामरु बघछाला नीन नयना
हाथी घोड़ा छड़ि पालकी वाहन बरद बौना॥
कहथि रामजी सुनु ऐ मनाइन,
इहो छथि परम प्रवीणा,
तीन लोकके मालिक थीका,
करु जमाय अपना॥

20.

महेशवानी

एहेन वर करब हम गौरी दाइके कोना॥
सगर देह साँप छनि, बाघ छाल ओढ़ना,
भस्म छनि देहमे,विकट लगनि कोना॥
जटामे गंगाजी हुहुआइ छथि जेना,
कण्ठमे मुण्डमाल शोभए छनि कोना॥
माथे पर चन्द्रमा विराजथि तिलक जेकाँ,
हाथि घोड़ा छाड़ि पालकी,बड़द चढ़ल बौना॥
भनथि रामजी सुनु ऐ मैना, गौरी दाइ बड़े भागे,
पौलनि कैलाशपति ऐना॥

21.

भजन विहाग

राम बिनु विपति हरे को मोर॥

अति दयालु कोशल पै प्रभुजी,

जानत सभ निचोर,

मो सम अधम कुटिल कायर खल,

भेटत नहि क्यो ओर॥

ता’ नञ शरण आइ हरिके हेरू प्लक एक बेर,

गणिका गिद्ध अजामिल तारो

पतित अनेको ढेर॥

दुःख सागरमे हम पड़ल छी,

जौँ न करब प्रभु खोज,

नौँ मेरो दुःख कौन हारावन,

छड़ि अहाँ के और॥

विपति निदान पड़ल अछि निशि दिन नाहि सहायक और,

रामजी अशरण शरण राखु प्रभु,

कृपा दृष्टि अब हेरि॥

(अनुवर्तते)
2. गंगेश गुंजन श्री गंगेश गुंजन(१९४२- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ’ उपन्यासकार। मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक। उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार। एकर अतिरिक्त्त हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोट (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आ’ शब्द तैयार है (कविता संग्रह)।
बीच बाट पर खसल लाल गमछा

हमरा सं पहिने गेनहार लोक देखि , बढ़ि गेल हएत
सड़क पर आगां। राजधानी जेना प्रतिदिन बढ़ि जाइत अछि
अपनहि पिछड़ल प्रदेश सभकें छोड़ि क’
प्रगति जकां अमूर्त्त आगां।
हम देखलियैक चिन्हवाक कयलियैक यत्न
कोनो दुर्घटनाक शिकार नेना जकां बुझायल –
हवा मे छटपटाइत-उधियाइत-धूल धूसरित भेल।
एक क्षण रुकि क’ उठा लेवाक चाही एकरा, हमरा।
मुदा पीठ पर , बामा दहिना पांतीक पांती गाड़ीक
संहार प्रलापी चीत्कार करैत पथियाक पथिया
सड़कक भड़ भड़ हल्ला पाछां सं ठोकर जे मारि दैत।
सेकेण्डक दशांशो रुकवाक विचार कयलौं कि
स्वयं भ’ जायब, बीच सड़क पर ओहिना थकुचा-थकुचा।

उठा लियैक ओकरा कोरा, मन मे आयलए-
एना कोना पड़ल रहि जाय दियैक असहाय-अनाथ!
असंभव बनल जा रहल, राजधानीक खुंखार व्यस्त सड़क पर।
ममता आ चिन्ता आब ?
आब ओ गाड़ी सभक गुड़कैत पहिया सभ सं आंदोलित हवाक
दबाब मे दुर्घटना सं चोटायल बीच बाट पर ओंघड़ाएल
छटपटा रहल अछि। मोड़ाइत-थकुचाइत-उधियाइत परिधि मे
असकर बिरड़ो जकां घुरमैत।
विचित्रे आयल अनचोखे एकटा विचार
ओ हमरा सोवियत रूस बुझाय लागल।
आब हमरा रूसे देखाइत रहल ….
मुदा से कोना संभव अछि ?
तखन की , थिक ई ढहल ओकर महान ध्वजा ?
भू-लुंठित लाल ई ? की ?
सोझां मे भूमि पर होइत लतखुर्दनि !
सभक लेखें धनि सन ,
बेशी सभ्य लोकनि कें एतवो ने फिकिर-
जे पैर नहि पड़वाक चाही कथमपि ध्वजा पर ।
एतवो नहि ध्यान !
बहुत आगां धरि जा क’ भ’ पओलहुं कनीक धीमा, फेर ठाढ़,
घुमैत पाछां,-चेष्टा, फेर चेष्टा मुदा, जाः आब तं ओ
कोनो गाड़ीक पहिया संगे लेपटाइत-लेढ़ाइत
कतहु आगां चलि गेल। आब ?
सोचैत छी, मने मन मूड़ी झंटैत छी,
छातीफाड़ पछताइत छी-नाभि लग सं
नाक-श्वांस नली धरि औंनाइत छी,
अपन कोन हाथ ?
उठा क’ माथ सं लगाब’ चौहत छी ,
दिल्लीक एहि सड़क पर गामक मुरेठा जकां
बान्ह’चाहैत छी ओकरा,
सड़क पर खसल ई लावारिस लाल गमछा ।

मस्तके पर शोभैत छैक लाल रंग,
ध्वजेक रूप मे रहैत छैक ओकर मान-मर्यादा ।
भने से कोनो हाड़तोड़ श्रम सं
ड्यूटीक झमारल बस पर ओंघाइत जाइत मजूरक कान्ह पर सं
उधिया क’खसि पड़ल हो, चलि गेल होइ खिड़की सं बाहर,
बाट मे,लेढ़ा रहल ललका गमछा-
सड़क पर धांगल जाइत राक्षस ट््रैफिक सं।

आत्मा, झकझोरि एना कियेक क’ गेल , उद्विग्न हमरा –
माथ पर बान्हि लेबा लेए मुरेठा
सड़क पर भू-लुंठित ई रक्तधूरि वर्ण गमछा !

ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि http://www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ”मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति

बरखा तू आब कहिया जेबैं
1
बरखा तू आब कहिया जेबै
अकच्छ भेलौ सब तोरा सॅं
बुझलियौ तू छै बड जरूरी
लेकिन अतीव सर्वत्र वर्जित छै
आर कतेक तंग तू करबैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

बेंग सब फुदकि फुदकि कऽ
घुसि रहल घर – ऑंगन में
ओकरा खिहारैत सॉंपो आयत
तरह – तरह के बिमारीक जड़ि
मच्छड़ सभके खुशहाल केलैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

कतौ बाढ़ि सॅं घर दहाइत अछि
कतौ गाछ उखड़ि खसि पड़ल
कतेक खतरा तोरा संग आयल
आन-जान दुर्लभ तोरा कारण
आढ़ि सभ कादो सऽ भरलैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

टूटल फूटल खपरी सऽ छाड़ल
गरीबक कुटिया कोनाक सहत
तोहर निरन्तर प््रावाहक मारि
पशु-पक्षी सेहो आश्रयहीन भेल
नञहर के तू सासुर बुझलैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

तोहर जाइत देरी शीतलहरी
अप्पन प््राकोप देखाबऽचाहत
मुदा पहिने आयत शरद ऋतु
कनिके दिनक आनन्दी लऽ कऽ
पनिसोखा देखेनाई नञ बिसरिहैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं।
*****

1. शैलेन्द्र मोहन झा 2. गजेन्द्र ठाकुर
1. शैलेन्द्र मोहन झा

सौभाग्यसँ हम ओहि गोनू झाक गाम, भरवारासँ छी, जिनका सम्पूर्ण भारत, हास्यशिरोमणिक नामसँ जनैत अछि। वर्तमानमे हम टाटा मोटर्स फाइनेन्स लिमिटेड, सम्बलपुरमे प्रबन्धकक रूपमे कार्यरत छी।
चलला मुरारी छौरी फ़ँसबय !

एक दिनक गप्प अछि, हमर मित्रगण हमरा कहय लगला –
शैलेन्द्र, अन्हां के कोनो गर्ल फ़्रैन्ड नहिं?

हम कहलियनि – दोस, ई भारत अछि, इन्गलैन्ड नहिं!
अखन गर्ल फ़्रैन्ड क जरूरत नहिं,
अखन त पढय – लिखय के दिन अछि, प्रेम करय के मुहुरत नहिं!!

सब मित्र कहय लगला, हम अनाडी छी
जौं कोनो छौरी फ़ंसाबी, तहने हम खिलाडी छी

ई सब हमरा सहल नहिं गेल,
बिना ई दुस्कर्म कयने रहल नहिं गेल
फ़ेर की छ्ल? हम ताकय लगलहुं एकटा फ़्रैन्ड,
फ़्रैन्ड नहिं, गर्ल फ़्रैन्ड……

मुदा एकटा मुश्किल छ्ल –
हमरा छौरी सब स लगैत छ्ल बड्ड डर
जौं हुनक सैन्डल गेल पडि, त इज्जत जायत उतरि
तैयो हमरा प्रमाणित करय के छ्ल, कहुना कय एकटा छौडी पटबय के छ्ल

त कुदि पडलौं मैदान में, या ई कहु श्मशान में,
कियाकि, पिटला के बाद ओत्तहि जायब, फ़ीरि क मुंह नहिं देखायब
बन्हलहुं माथ पर कफन, कय सब डर के करेज में दफन
निकलि पडलहुं हम बाट में, एक छौरी के ताक में

सब सं पहिने प्रार्थना कयलहुं –
हे किशन कन्हैया! आंहां त अहि कर्म में खिलाडी छी
हमरो खिलाडी बना दिअ,
हमरा सोलह हजार गोपी नहिं, केवल एकटा छौडी फ़ंसवा दिअ
आंहाके बड्ड गुणगान करब,
फ़ंसिते छौरी, सवा रुपैया के प्रसाद चढायब

हम सोचलहुं, शायद आंखि मारला सं छौरी पटै छैक!
हमरा कि बुझल छल, आंखि मारला सं छौरी पीटै छैक
भागि कय घर अयलहुं, आर पहिल सप्पत खेलहुं
फ़ेर कहियो आंखि नहिं मारब.

फ़ेर सोचलहुं – पहिने बतियायब, फ़ेर घुमायब तहन फ़ंसायब
हं, ई ठीक रहत!

देखलहुं एकटा छौरी, त आंखि हमर फ़रकल….
फ़ेर की छ्ल? हम कहलौं-
पोखरि सन आंखि तोहर, केश जेना मेघ,
फ़ूल सन ठोढ तोहर, कहियो असगर में त भेट!

कहलहुं हम एतबे की भय गेली ओ लाल,
ओ मारलीह एहन थप्पड, भेल गाल हमर लाल
कनबोज सुन्न भेल हमर, आंखि भेल अन्हार
सूझय लागल तरेगन, भेल दुपहरिया में अन्हार
सरधुआ, करमघट्टु, बपटुगरा आर अभागल
देखू कपार हम्मर, ई विशेषण हाथ लागल

एतबे नहिं……..
ओ करय लगलीह हल्ला, जूटय लागल मोहल्ला
हम कहलौं – ई कोन काज केलहुं? कियक गाम के बजेलहुं
नहिं पटितौं हमरा सं, ई आफ़त कियक बजेलहुं

फ़ेर की छल?
पिटय लगलहुं हम आर पीटय लगला गौंआं
मुंह कान तोडि देलक, अधमरु कय क छोरलक
ई कोन काल घेरलक, मरय में नहिं छल भांगठ,

हम भागि घर एलहुं, दुबारा सप्पत खेलहुं –
फ़ेर आंखि नहिं मारब, नै गीत हम गायब,
फ़ेर छौरी नहिं फ़ंसायब, नै जान हम गमायब,
आर भूलि कय अंग्रेजी, हम मैथिल बनि जायब!
आर भूलि कय अंग्रेजी, हम मैथिल बनि जायब!!

2. गजेन्द्र ठाकुर

पुनः स्मृति

बितल बर्ख बितल युग,
बितल सहस्राब्दि आब,
मोन पाड़ि थाकल की,
होयत स्मृतिक शाप।

वैह पुनः पुनः घटित,
हारि हमर विजय ओकर,
नहि लेलहुँ पाठ कोनो,
स्मृतिसँ पुनः पुनः।

सभक योग यावत नहि,
होएत गए सम्मिलन,
हारि हमर विजए ओकर,
होएत कखनहु नहि बन्द।

(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।

विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.co.in केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx आ’ .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

‘विदेह’ १५ जून २००८ ( वर्ष १ मास ६ अंक १२ )६. पद्य 1.मैथिली हैकू पद्य/कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)/ज्योति झा चौधरी/गजेन्द्र ठाकुर

In कविता, गीत, गीत-नाद, पद्य, Maithili Poem on जुलाई 28, 2008 at 5:12 अपराह्न

६. पद्य
1.
मैथिली हैकू पद्य- रवीन्द्रनाथ ठाकुर सेहो हैकू लिखलन्हि, मुदा मैथिलीमे पहिल बेर जापानी पद्य विधाक आधार पर “विदेह” प्रस्तुत कए रहल अछि ई विधा।
2.
अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)
आ.पद्य ज्योति झा चौधरी
इ.पद्य गजेन्द्र ठाकुर
मैथिली हैकू
हैकू सौंदर्य आऽ भावक जापानी काव्य विधा अछि, आऽ जापानमे एकरा काव्य-विधाक रूप देलन्हि कवि मात्सुओ बासो १६४४-१६९४। एकर रचनाक लेल परम अनुभूति आवश्यक अछि। बाशो कहने छथि, जे जे क्यो जीवनमे ३ सँ ५ टा हैकूक रचना कएलन्हि से छथि हैकू कवि आऽ जे दस टा हैकूक रचना कएने छथि से छथि महाकवि। भारतमे पहिल बेर १९१९ ई. मे कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर जापानसँ घुरलाक बाद बाशोक दू टा हैकूक शाब्दिक अनुवाद कएले रहथि।

पुरनोपुकुर
व्यंगेरलाफ
जलेर शब्द
आऽ
पचाएडालि
एकटा के
शरत्काल।
हैकूक लेल मैथिली भाषा आऽ भारतीय संस्कृत आश्रित लिपि व्यवस्था सर्वाधिक उपयुक्त्त अछि। तमिल छोड़ि शेष सभटा दक्षिण आऽ समस्त उत्तर-पश्चिमी आऽपूर्वी भारतीय लिपि आऽ देवनागरी लिपि मे वैह स्वर आऽ कचटतप व्यञ्जन विधान अछि जाहिमे जे लिखल जाइत अछि सैह बाजल जाइत अछि। मुदा देवनागरीमे ह्रस्व ‘इ’ एकर अपवाद अछि, ई लिखल जाइत अछि पहिने, मुदा बाजल जाइत अछि बादमे। मुदा मैथिलीमे ई अपवाद सेहो नहि अछि- यथा ‘अछि’ ई बाजल जाइत अछि अ ह्र्स्व ‘इ’ छ वा अ इ छ। दोसर उदाहरण लिअ- राति- रा इ त। तँ सिद्ध भेल जे हैकूक लेल मैथिली सर्वोत्तम भाषा अछि। एकटा आर उदाहरण लिअ। सन्धि संस्कृतक विशेषता अछि? मुदा की इंग्लिशमे संधि नहि अछि? तँ ई की अछि- आइम गोइङ टूवार्ड्सदएन्ड। एकरा लिखल जाइत अछि- आइ एम गोइङ टूवार्ड्स द एन्ड। मुदा पाणिनि ध्वनि विज्ञानक आधार पर संधिक निअम बनओलन्हि, मुदा इंग्लिशमे लिखबा कालमे तँ संधिक पालन नहि होइत छैक , आइ एम केँ ओना आइम फोनेटिकली लिखल जाइत अछि, मुदा बजबा काल एकर प्रयोग होइत अछि। मैथिलीमे सेहो यथासंभव विभक्त्ति शब्दसँ सटा कए लिखल आऽ बाजल जाइत अछि।
जापानमे ईश्वरक आह्वान टनका/ वाका प्रार्थना ५ ७ ५ ७ ७ स्वरूपमे होइत छल जे बादमे ५ ७ ५ आऽ ७ ७ दू लेखक द्वारा लिखल जाए लागल आऽ नव स्वरूप प्राप्त कएलक आऽ एकरा रेन्गा कहल गेल। रेन्गाक दरबारी स्वरूप गांभीर्य ओढ़ने छल आऽ बिन गांभीर्य बला स्वरूप वणिकवर्गक लेल छल। बाशो वणिक वर्ग बला रेन्गा रचलन्हि। रेन्गाक आरम्भ होक्कुसँ होइत छल आऽ हैकाइ एकर कोनो आन पंक्त्तिकेँ कहल जाऽ सकैत छल। मसाओका सिकी रेन्गाक अन्तक घोषणा कएलन्हि १९म शताब्दीक प्रारम्भमे जाऽ कए आऽ होक्कु आऽ हैकाइ केर बदलामे हैकू पद्यक समन्वित रूप देलन्हि। मुदा बाशो प्रथमतः एकर स्वतंत्र स्वरूपक निर्धारण कए गेल छलाह।
हैकू निअम १. १७ अक्षरमे लिखू, आऽ ई तीन पंक्त्तिमे लिखल जाइत अछि- ५ ७ आऽ ५ केर क्रममे। रचना लिखबासँ पहिने स्तंभमे मात्रिक छन्दक वर्णन क्रममे हम लिखने रही जे संयुक्त्ताक्षरकेँ एक गानू आऽ हलन्तक/ बिकारीक/ इकार आकार आदिक गणना नहि करू।
हैकू निअम २.व्यंग्य हैकू पद्यक विषय नहि अछि, एकर विषय अछि ऋतु। जापानमे व्यंग्य आऽ मानव दुर्बलताक लेल प्रयुक्त विधाकेँ “सेर्न्यू” कहल जाइत अछि आऽ एहिमे किरेजी वा किगो केर व्यकरण विराम नहि होइत अछि।
हैकू निअम ३. प्रथम ५ वा दोसर ७ ध्वनिक बाद हैकू पद्यमे जापानमे किरेजी- व्याकरण विराम- देल जाइत अछि।
हैकू निअम ४. जापानीमे लिंगक वचन भिन्नता नहि छैक। से मैथिलीमे सेहो वचनक समानता राखी सैह उचित होएत।
हैकू निअम ५. जापानीमे एकहि पंक्त्तिमे ५ ७ ५ ध्वनि देल जाइत अछि। मुदा मैथिलीमे तीन ध्वनिखण्डक लेल ५ ७ ५ केर तीन पंक्त्तिक प्रयोग करू। मुदा पद्य पाठमे किरेजी विरामक ,जकरा लेल अर्द्धविरामक चेन्ह प्रयोग करू, अतिरिक्त्त एकहि श्वासमे पाठ उचित होएत।
हैकू निअम ६. हैबुन एकटा यात्रा वृत्तांत अछि जाहिमे संक्षिप्त वर्णनात्मक गद्य आऽ हैकू पद्य रहैत अछि। बाशो जापानक बौद्ध भिक्षु आऽ हैकू कवि छलाह आऽ वैह हैबुनक प्रणेता छथि। जापानक यात्राक वर्णन ओऽ हैबुन द्वारा कएने छथि। पाँचटा अनुच्छेद आऽ एतबहि हैकू केर ऊपरका सीमा राखी तखने हैबुनक आत्मा रक्षित रहि सकैत अछि, नीचाँक सीमा ,१ अनुच्छेद १ हैकू केर, तँ रहबे करत। हैकू गद्य अनुच्छेदक अन्तमे ओकर चरमक रूपमे रहैत अछि।- सम्पादक
प्रस्तुत अछि ज्योतिक ९५ टा मैथिली हैकू। हुनकर ९६ सँ १०० धरि हैकू अंग्रेजीसँ मैथिलीमे सम्पादक द्वारा अनुवादित अछि, तकर अंग्रेजी अंश सेहो देल गेल अछि। तकरा बाद गजेन्द्र ठाकुरक १२ टा हैकू आऽ एकटा हैबुन देल गेल अछि।

ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि http://www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ”मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
(१)
तारा दूरसँ
बुझाइत कतेक शीतल
वास्तवमे जड़ैत
(२)
शाखासँ लागल
पुष्प आऽ पत्रसॅं आच्छादित
अछि झूलैत लता
(३)
पक्षी विश्राम कएल
बड़का यात्राक उपरान्त
एखनो जे अपूर्ण
(४)
अद्रभुत अपवाद छैक
नागफनीक कॉँटक बीच
कुसुम खिलायल
(५)
नीलांबरमे मेघ
विचरैत अछि कोना जेना
सागरमे होए शार्क
(६)
भावी संकट केर
पशु पक्षीमे पूर्वाभास
प्रभुक दिव्य आशिष
(७)
कोमल पंखुड़ी
सुगन्धक संग सजाओल
एक पुष्पक रूपमे
(८)
नदीक तरंग
ओहिना लागैत अछि जेना
ओकर घुरमल केश
(९)
दू टा पसरल पाँखि
बाज उड़ऽ लेल तैयार अछि
पूर्ण रूपसॅं जागरूक
(१०)
पहाड़ीक ढलान
ताहि पर एकमात्र गाछक छाह
भेल यात्रीक विश्राम
(११)
संध्याक बेला
सुनसान आऽ शान्त पोखरिक कात
एक एकान्त स्थान
(१२)

मेघ रूपी बर्फमे
अछि हवाई जहाज पिछड़ैत
आकाशमे विचरैत
(१३)
कठोरतम भूमि
समुद्रक छोर पर बसल
अछि पाथरक किनार
(१४)
विलक्षण अपवाद
आकाश जरैत संध्याकाल
समुद्रक उपरि
(१५)
पहाड़सॅं उदित
सूर्यसॅं आकाश भेल जागृत
ज्वालामुखी सन
(१६)
उगैत सूर्य संगे
आयल अंधकारक उपरान्त
अंतहीन दिनक आस
(१७)
दिवस आब थकल
रातिक स्वागतमे लीन साँझ
मिझाइत सूर्य दीप
(१८)
गाछ भने हरियर
ग्रीष्मोमे देखु पतझड़
भोरक आकाशमे
(१९)
पक्षीक चहक
आऽ आकाशक लाली संग
प्रकृति जागल
(२०)
अतिसुन्दर जाड़
मेघक घिस घिस छिड़यौलक
हिमपातक रूपमे
(२१)
तैयार उड़ऽलेल
पक्षी विश्रामसॅं जागल
वा अछि शुरूआत
(२२)
पक्षीक निरीक्षण
छूटल अन्नक फेरमे
कटनी भेलाक बाद
(२३)
फूलक हुँजक बोझ
शाखा केँ झुका रहल
बसंत आयल अछि
(२४)
तितलीक पंख
अंकित रंग बिरंग आकार
प्रभुक चित्रकला
(२५)
मनुष लेल कठिन
किन्तु जीवन ओतहु अछि
शीतलतम स्थान
(२६)
उच्चतम शिखरसॅं
धुन्ध भरल हरियर घाटी
निहारक इच्छा
(२७)
विभिन्न प्रकारक
घास पात जमीन पर उगल
आइरसँ दूर बॅंचल।
(२८)
ओसक बूँद पाबि अछि
घासक फुनगी आह्‌लादित
हीरा सन चमकैत
(२९)
बाहर घूमऽ निकलल
बतख अपन बच्चा संग
गर्मीक दिनमे
(३०)
बतख हेल रहल अछि
पानिक ऊपरी सतह पर
लक्ष्यक दिस निरंतर
(३१)
स्प्रेसो
आस्ते पिब लेल
गर्म देल गेल
(३२)
ईश्वर केँ तकनाइ
नहि कठिन पाबू ओकरा
पवित्र हृदयमे
(३३)
दृष्टि भ्रमणमे
घाटी पर दूर दूर धरि
भटकि सकैत अछि
(३४)
घोड़ा भटकि रहल
उद्देश्यहीन बिन घुड़सवार
भेल अनुशासनहीन
(३५)
स्थिर पानिमे
प्रकृतिक प्रतिबिम्ब
साफ लेकिन उलटा
(३६)
प्राकृतिक दृष्य
पानिक प्रतिरूप बिना
अपूर्ण बुझाइत अछि।
(३७)
पतझड़क पात
पसारलक अप्पन सतरंजी
हरियर घास बदला।
(३८)
समुद्रक तहमे
विभिन्न आकार प्रकारक
रंग बिरंग जीवन।
(३९)
नटखट समुद्र
तटक आरामसँ वंचित
कएने बेर बेर तंग।
(४०)
पहाड़क चोटी
आर बेसी ऊँच लागैत अछि
गहीँर घाटीक बीच
(४१)
पोखरिमे देखु
प्रकृतिक प्रतिबिम्ब
उलटल बुझाइत अछि
(४२)
तितलीगण उतरल
पंखरूपी पैराशूट लऽ
फुलक झुण्ड पर।
(४३)
उच्चतम शिखर पर
गुफासँ दृष्टिगोचर
होइत रमणीय दृष्य
(४४)
बच्चाक संग खेलमे
एकेटा खुशीक आभास
ओकर किलकारी
(४५)
टेढ़ मेढ़ रेखा अछि
बरसातक बहैत पानिसँ
खिड़कीक काँच पर बनल
(४६)
बादलसँ छनल
समुद्रक लहरिक तरंग
उपर चमकैत किरण
(४७)
पानिक तरंग केँ
पक्षी बदलि रहल अछि
कलरवक लयमे
(४८)
मरुस्थलमे रेत
अछि हवासँ बहारल
सतह भेल समतल
(४९)
कतेक बेसी ध्यान
पातक प्रारूप देबऽमे
ईश्वर देने छथि
(५०)
बरसात खतम भेल
पानि तइयो झरि रहल अछि
गाछक पात सब सऽ
५१
समुद्रक लहरि
लगातार टकरा रहल
पाथर तइयो स्थिर
५२
मनोरम दृष्य
जेना चिन्नीक चाशनीमे लिप्त
अछि गाछ जाड़मे
५३
अपने रंगहीन अछि
गाछ केँ रंगीन बनौलक
नीचा गड़ल जड़ि
५४
शीतल प्रकाश युक्त
सुर्योदयक पहिनेक समय
सर्वोत्तम काल
५५
पाँखिक शाल ओढ़ने
प्रकृतिक भ्रमण हेतु
पक्षी निकलल जाड़मे
५६
चिडैय़ाक बच्चा
माए बाप संगे अछि ताबञ
जाबञ पंख नहिक छैक।
५७

प्रवासी पक्षी
मीलक मील उड़िक आयल
गर्मीक आनन्द लय।
५८
उछलैत पानि
नदीसँ भेँट लेल
खसल झरनाक रूपमे ।
५९
नागफणीक गाछ सभ
मरुस्थल्मे सेहो अछि
मजबूतीसँ ठाढ़।
६०
कठोर पातसँ लिप्त
नागफनीक चोटी पर अछि
कोमल फूलक ताज
६१
आर सजायल गेल
कैक रंगक फूल आऽ लाइटसॅं
क्रिसमसक साँझमे
६२
एक नारिकेरक फल
कठोर केशयुक्त कवचमे
मीठ उज्जर फल अछि
६३
भुखाएल बगुला
नदीक कातमे ठाढ़ अछि
माछक ताकिमे
६४
अतिथिक आगमन
कौआक कर्कश काँव काँवसँ
पूर्वसूचित भेल अछि
६५
सागरमे डॉलफिन
खतरनाक जीवक बीचमे
मनुषक साथी
६६
जिग ज़ैग ध्वनि केँ
गाड़ी दोहरा रहल अछि
भीजल सड़क पर
६७
भूकम्पक श्राप अछि
अज्ञात अपराधक सजा
मनुषकेँ भेटल
६८
छोट किन्तु तेज अछि
अपन लक्ष्य चिनहऽमे
भड़ल भीड़क बीच
६९
समुद्रक नीचाँ
कतओ जायकाल रहैअ
छोट माछ सब झुण्डमे
७०
अंगूरक फल अछि
मीठ जेल जमाकऽ रखने
छोट छोट आकारमे
७१
स्वर्ग सदृश दृश्य
हरियर प्राकृतिक संग
चिड़ैआक कलरव
७२
राति हुअक पहिने
आकाश दहकि रहल
सूर्यास्तक पहिने
७३
खिलखिलाइत झरना
मधुर ध्वनि घोरि रहल
चारू दिशामे
७४
सूर्यक अएलापर
रातिक अन्हार भागि गेल आऽ
भोर शुरु भऽ गेल
७५
छाया उपर्युक्त अछि
गोबरछत्ता केँ उगऽ
आऽ पसरऽ लेल
(७६)
एकटा पओलाक बाद
खरहा फेर भागि रहल अछि
आर भोजन लेल

(७७)
गाछक स्वर्णिम रंग
पतझड़क आगमनक
घोषणा अछि करैत ।
(७८)
गरमीक ऋतु
कहॉँ ओतेक दुखद अछि
शुरुक दिनमे
(७९)
स्वयम्‌ सिद्ध मकरा
अपन सुरक्षा हेतु
जाल अछि बुनैत
(८०)
कोनो आकारमे
ढलि जाएत पानि मुदा गहराई
एकर अपन गुण
(८१)
आकाश अखनो ऊँच
बादल पहुँचमे बुझाएल
ई धुन्धक रूपमे
(८२)
रातिमे इजोत दैत
बर्फसँ परावर्तित होइत
प्रकाशपुँज जाड़मे
(८३)
लुक्खी सब निकलल
अपन घड़सँ आलस त्यागि
वसन्त ऋतुमे
(८४)
सोन सन सूरज भेल
उज्जर चमकैत हीरा सन
दिनकेँ अएला पर
(८५)
गाछ सब अछि होड़मे
सबसँ पहिने पाबऽ लेल
सूरजक रोशनी
(८६)
एकटा मन्दिर अछि
खजूरक गाछ भीड़मे
एक पोखरि कातमे
(८७)
सुखाएल छोट पातसभ
गाछसँ नीचाँ खसैत अछि
नबकेँ अवसर दैत
(८८)
गाछक शाखासभ
अतेक ऊँचाई पर पसरल
जड़ि ततब्बे गहिँर
(८९)
भोरक अयला पर
गाछ पर लादल ओस भेल अछि
चमकैत हॅँसी सन
(९०)
सोन सन कम्बल अछि
ओढ़ने गहुमक खेत सभ
कटाइक पहिने
(९१)
चक्रवातीय पवन
जीवनसंहारक बनि गेल
जीवनरक्षक छल।
(९२)
प्रदान करैत अछि
पक्षी आऽ हिरण सभकेँ
गाछ आऽ वृक्ष आश्रय
(९३)
फूलसँ भरल अछि
एकटा घाटी एहन अछि
जेना खुशी मुस्काइत।
(९४)
पानि बढ़ि रहल
रस्ताक गाछ आऽ पाथर सभ
विदा करैत ठाढ़
(९५)
जाड़क गाछ अछि ठाढ़
वसन्तक प्रतीक्षामे
पात सभसँ भिन्न भऽ
(९६)
Illusion of eye
Colourful appearance of
Rainbow in the sky
आँखिक भ्रम,
आभास वर्णमय
पनिसोखा द्यौ

(९७)
Rainbow declares
Beginning of bright days and
End of rainy ones
पनिसोखाक,
शुभ्र दिन आबह
खिचाहनि जाऽ

(९८)
Filled with smoky fog
The wood seems to be burning
Thou’ it is winter
धुँआ कुहेस
जेना जड़ैत काठ,
अछि ई जाड़
(९९)
The words sound so sweet
imitated by parrots
Like baby babbles
गुञ्ज मधुर
सुग्गाक अभिनय,
तोतराइत स्वर
(१००)
The sky is bright
The wind has cleared the clouds
Some still needs force
अकाश श्वेत
वायु टारैत मेघ,
कनेक बल
(९६ सँ १०० धरि इंग्लिशसँ मैथिली अनुवाद संपादक द्वारा कएल गेल)
गजेन्द्र ठाकुरक १२ टा हैकू
१.वास मौसमी,
मोजर लुबधल
पल्लव लुप्ता
२.घोड़न छत्ता,
रेतल खुरचन
मोँछक झक्का
३. कोइली पिक्की,
गिदरक निरैठ
राकश थान
४.दुपहरिया
भुतही गाछीक
सधने श्वास
५.सरही फल
कलमी आम-गाछी,
ओगरबाही
६.कोलपति आऽ
चोकरक टाल,
गछपक्कू टा
७.लग्गा तोड़ल
गोरल उसरगि
बाबाक सारा
८.तीतीक खेल
सतघरिया चालि
अशोक-बीया
९.कनसुपती,
ओइधक गेन्द आऽ
जूड़िशीतल
१०.मारा अबाड़
डकहीक मछैड़
ओड़हा जारि
११.कबइ सन्ना
चाली बोकरि माटि,
कठफोड़बा
१२.शाहीक-मौस,
काँटो ओकर नहि
बिधक लेल
हैबून १
सोझाँ झंझारपुरक रेलवे-सड़क पुल। १९८७ सन्। झझा देलक कमला-बलानक पानिक धार, बाढ़िक दृश्य। फेर अबैत छी छहर लग। हमरा सोझाँमे एकठामसँ पानि उगडुम होइत झझात बाहर अछि अबैत। फेर ओतएसँ पानिक धार काटए लगैत अछि माटि। बढ़ए लगैत अछि पानिक प्रवाह, अबैत अछि बाढ़ि। घुरि गाम दिशि अबैत छी। हेलीकॉप्टरसँ खसैत अछि सामग्री। जतए आयल जलक प्रवाह ओतए सामग्रीक खसेबा लए सुखाएल उबेड़ भूमिखण्ड अछि बड़ थोड़। ओतए अछि जन- सम्मर्द। हेलीकॉप्टर देखि भए जाइत अछि घोल। अपघातक अछि डर हेलीकॉप्टर नहि खसबैत अछि ओतए खाद्यान्न। बढ़ि जाइत अछि आगाँ। खसबैत अछि सामग्री जतए पानि बिनु पड़ैत छल दुर्भिक्ष, बाढ़िसँ भेल अछि पटौनी। कारण एतए नहि अछि अपघातक डर। आँखिसँ हम ई देखल। १९८७ ई.।
पएरे पार
केने कमला धार,
आइ विशाल

विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे एहि अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि।
विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952) जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी,जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य ।
जेना शंकरदेव असामीक बदला मैथिलीमे रचना रचलन्हि, तहिना कवि रामजी चौधरी मैथिलीक अतिरिक्त्त ब्रजबुलीमे सेहो रचना रचलन्हि।कवि रामजीक सभ पद्यमे रागक वर्ण अछि, ओहिना जेना विद्यापतिक नेपालसँ प्राप्त पदावलीमे अछि, ई प्रभाव हुंकर बाबा जे गबैय्या छलाहसँ प्रेरित बुझना जाइत अछि।मिथिलाक लोक पंच्देवोपासक छथि मुदा शिवालय सभ गाममे भेटि जायत, से रामजी चौधरी महेश्वानी लिखलन्हि आ’ चैत मासक हेतु ठुमरी आ’ भोरक भजन (पराती/ प्रभाती) सेहो। जाहि राग सभक वर्णन हुनकर कृतिमे अबैत अछि से अछि:
1. राग रेखता 2 लावणी 3. राग झपताला 4.राग ध्रुपद 5. राग संगीत 6. राग देश 7. राग गौरी 8.तिरहुत 9. भजन विनय 10. भजन भैरवी 11.भजन गजल 12. होली 13.राग श्याम कल्याण 14.कविता 15. डम्फक होली 16.राग कागू काफी 17. राग विहाग 18.गजलक ठुमरी 19. राग पावस चौमासा 20. भजन प्रभाती 21.महेशवाणी आ’ 22. भजन कीर्त्तन आदि।
मिथिलाक लोचनक रागतरंगिणीमे किछु राग एहन छल जे मिथिले टामे छल, तकर प्रयोग सेहो कविजी कएलन्हि।
प्रस्तुत अछि हुनकर अप्रकाशित रचनाक धारावाहिक प्रस्तुति:-
14.

महेशवानी

विधि बड़ दुःख देल,
गौरी दाइ के एहेन वर कियाक लिखि देल॥
जिनका जाति नहि कुल नहि परिजन,
गिरिपर बसथि अकेल,
डमरू बजाबथि नाचथि अपन कि भूत प्रेत से खेल॥
भस्म अंग शिर शोभित गंगा,
चन्द्र उदय छनि भाल
वस्त्र एकोटा नहि छनि तन पर
ऊपरमे छनि बघछाल,
विषधर कतेक अंगमे लटकल,
कंठ शोभे मुंडमाल,
रामजी कियाक झखैछी मैना
गौरी सुख करती निहाल॥

15.

विहाग

वृन्दावन देखि लिअ चहुओर॥
काली दह वंशीवट देखू,
कुंज गली सभ ठौर,
सेवा कुंजमे ठाकुर दर्शन,
नाचि लिअ एक बेर॥
जमुना तटमे घाट मनोहर,
पथिक रहे कत ठौर,
कदम गाछके झुकल देखू,
चीर धरे बहु ठौर॥
रामजी वैकुण्ठ वृन्दावन
घूमि देखु सभ ठौर,
रासमण्ड ल’ के शोभा देखू,
रहू दिवस किछु और।।
16.
विहाग

मथुरा देखि लिअ सन ठौर॥
पत्थल के जे घाट बनल अछि,
बहुत दूर तक शोर,
जमुना जीके तीरमे,
सन्न रहथि कते ठौर॥
अस्ट धातुके खम्भा देखू,
बिजली बरे सभ ठौर,
सहर बीच्मे सुन्दर देखू,
बालु भेटत बहु ढ़ेर॥
दुनू बगलमे नाला शोभे,
पत्थल के है जोर
कंशराजके कीला देखू
देवकी वो वसुदेव॥
चाणूर मुष्टिक योद्धा देखू
कुबजा के घर और,
राधा कृष्णके मन्दिर देखू,
दाउ मन्दिर शोर॥
छोड़ विभाग
रामजी मधुबन, घूमि लिअ अब,
कृष्ण बसथि जेहि ठौर॥
गोकुल नन्द यशोदा देखू
कृष्ण झुलाउ एक बेर॥
17.
महेशवानी

भोला केहेन भेलौँ कठोर,
एक बेर ताकू हमरहुँ ओर॥
भस्म अंग शिर गंग विराजे,
चन्द्रभाल छवि जोर।।
वाहन बसहा रुद्रमाल गर,

भूत-प्रेतसँ खेल॥

त्रिभुवन पति गौरी-पति मेरो जौँ ने हेरब एक बेर,

तौँ मेरो दुःख कओन हरखत

सहि न सकत जीव मोर॥

बड़े दयालु जानि हम अयलहुँ,

अहाँक शरण सूनि शोर,

राम-जी अश्रण आय पुकारो,

दिजए दरस एक बेर॥

(अनुवर्तते)

इ.पद्य ज्योति झा चौधरी

ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि http://www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ”मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति

मेघक उत्पात
कनिक काल दऽ पानिक फुहार
फेर लेलक अपन ऑँजुर सम्हारि
देखू मेघक उत्पात
लोकक आशाक उपहास करैत
कखनो दर्शन दऽ बेर-बेर नुकाइत
मौलाऽगेल गाछ आऽ पात
कखनो गरजि भरि कऽ रहि गेल
कखनो बरसि-बरसि कऽ भरि गेल
डूबल पोखरिक कात
कोसीक प्रवाह सब बॉँन्ह तोड़लक
गामक गाम जलमग्न कएलक
ततेक भेल बरसात
किसानक भविष्य मेघपर आश्रित
मेघक इच्छा पूर्णतः अप्रत्याशित
सभसालक अनिश्चित अनुपात

गजेन्द्र ठाकुर

पथक पथ

स्मृतिक बन्धनमे
तरेगणक पाछाँसँ
अन्हार गह्वरक सोझाँमे
पथ विकट। आशासँ!

पथक पथ ताकब हम
प्रयाण दीर्घ भेल आब।

विश्वक प्रहेलिकाक
तोड़ भेटि जायत जौँ
इतिहासक निर्माणक
कूट शब्द ताकब ठाँ।

पथक पथ ताकब हम
प्रयाण दीर्घ भेल आब।

विश्वक मंथनमे
होएत किछु बहार आब
समुद्रक मंथनमे
अनर्गल छल वस्तु-जात

पथक पथ ताकब हम
प्रयाण दीर्घ भेल आब।

(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।

विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.co.in केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx आ’ .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।