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विदेह २९ म अंक ०१ मार्च २००९ (वर्ष २ मास १५ अंक २९)-part-ii

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विदेह २९ म अंक ०१ मार्च २००९ (वर्ष २ मास १५ अंक २९)-part-ii

३.पद्य
३.१. वसंती दोहा- कुमार मनोज कश्यप
३.२. सतीश चन्द्र झा- हमर स्वतंत्रता
३.३.ज्योति- एक नाैकरी चाही
३.४.जंगल दिस !- रूपेश कुमार झा ‘त्योंथ’
३.५. पंकज पराशर -समयोर्मि
३.६.सुबोध ठाकुर-हम गामेमे रहबइ
कुमार मनोज कश्यप ।जन्म-१९६९ ई़ मे मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। स्कूली शिक्षा गाम मे आ उच्च शिक्षा मधुबनी मे। बाल्य काले सँ लेखन मे अभिरुचि। कैक गोट रचना आकाशवाणी सँ प्रसारित आ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित। सम्प्रति केंद्रीय सचिवालय मे अनुभाग आधकारी पद पर पदस्थापित।
वसंती दोहा

गेंदा – गुलाब – पलाश संग, फूलल फूल कचनार ।
चिंहुकय आहट पर गोरी, आबि गेला पिया द्वार॥

भरल वसंती मास मे, पिया निर्दय बसल परदेश ।
अल्हड़ – मस्त वसंत, फेर बढ़ा देने आछ क्लेश ॥

धरती सँ मिलन के आछ, व्याकुल भेल आकाश ।
पिया विरह मे राति – दिन, पीयर पड़ल पलाश ॥

रंग – अबीर – गुलाल सँ, धरती भऽ गेल लाल ।
गोरी के गाल पर जेना, मलल चुटकी भरि गुलाल ॥

एम्हर – ओम्हर मटकि रहल, पीबि कऽ भांग वसंत ।
मन चंचल आई भऽ रहल , कि योगी कि संत ॥

पीबि कऽ भांग बसातो आब, लागल करय उत्पात ।
धूड़ा उड़ा कऽ पड़ा गेल, देमय कान ने कोनो बात ॥

सखि वासंती तोंहि हुनका, जा दय दिहनु संदेश ।
जी भरि मलबनि रंग हम, भेटता पिया जखन जे भेष ॥

ककरा सँ मोनक व्यथा कही, बुझत के मोर टीस ।
सुनि कऽ सभ हँसबे करत, बनत के मन-मीत ॥
सतीश चन्द्र झा,राम जानकी नगर,मधुबनी,एम0 ए0 दर्शन शास्त्र
समप्रति मिथिला जनता इन्टर कालेन मे व्याख्याता पद पर 10 वर्ष सँ कार्यरत, संगे 15 साल सं अप्पन एकटा एन0जी0ओ0 क सेहो संचालन।
‘‘ हमर स्वतंत्रता ’’
छी एखनो कमजोर कतेक हम
मौन भेल चुपचाप ठाढ़ छी।
किछु बंधन अछि परंपरा के
किछु समाज सँ भयाक्रांत छी।
भेल रही कहिया स्वतंत्र हम
केना आब इ बिसरि सकै छी।
अछि महान इ पर्व देश के,
सर्व धर्म सब मना रहल छी।
तखन कियै छी हम एखनो धरि
बान्धल जरजर परंपरा सँ।
मुक्त करत के फेर आबि क’
रुढ़िबादिता के पिंजरा सँ।
बिधवा के दुदर्शा, दहेजक
भोगि रहल छी दंश केना हम।
स्वार्थ धर्म लय पुत्रक माया
केना चलायब वंश अपन हम।
अछि सिंघासन उच्च पुत्र के,
पाबि पिता सँ स्नेह भावना।
पुत्री लय एखनो अछि राखल
अनुशासन, तप, ज्ञान,साधना।
डेग-डेग पर नीति समाजक
नारी के निर्बलता दै छै।
अछि स्वतंत्रता बनल पुरुष लय
द्वेत भावना उचित कहाँ छै।
पढ़ा लेब कतबो कन्या के,
मांग दहेजक नहिं किछु कमतै।
अछि विध्वंसक अहं पुरुष के
नारी तैयो चुल्हे फुँकतै।

एक आध टा पावि उच्च पद
केना समाजक दंभ मिटेती।
पुरुष प्रधान समाजक सोझा
के अधिकारक बात उठेती।
पड़त अग्नि नहिं मुख मे, पुत्रक
जायब स्वर्ग केना धरती सँ।
निज संतान पुत्र आ पुत्री
अछि उत्पन सब अपन रक्त सँ।
तखन कियै छै बनल बाध्यता
करत कर्म सब पुत्र पिता के।
चलतै तखने पुस्त- पुस्त धरि
नाम, वंश, सम्मान पिता के।
वंश चलै छै एखनो ओकरे
जे जग मे इतिहास पुरुष छै।
चललै मार्ग बना क अपने,
भुजबल मे जकरा पौरुष छै।
ज्ञान, धर्म अथवा समाज लय
जे देलकै आहुति प्राण के।
अमर बनल ओ रहत ह्रदय मे,
बदलि देलक भाग्यक विधान के।
कतेक उपेक्षित आइ वृद्ध छथि
अपने सँ अपमान पावि क’।
छन्हिं अपने संतान,चकित छथि
पैघ बनेलथि पालि पोषि क’।
अन्नक लेल प्राण गेल जिनका
पड़ल बूंद नहिं दूध कंठ मे।
भोज भेल भारी परगन्ना
गाय दान भेल श्राद्ध कर्म मे।

वर्तमान बितलन्हि बिपदा मे,
की करता परलोक बना क’।
कतेक धर्म अर्जित क सकता
अंत समय मे वेद सुना क’।
एखनो मंदिर के प्रांगन मे
प्रथा देवदासी अछि निन्दित।
छथि पाथर के देव, नीक अछि,
की करता भ’ क’ स्पंदित।
जौं रहितहुँ एखनहुँ स्वतंत्र हम
नै रहितै इ दशा समाजक।
अंतहीन अछि एकर कहानी
पन्ना किछु पढ़ियौ इतिहासक।
ज्योति
एक नाैकरी चाही
एक नाैकरी के तलाशमे छी
जतय काज हुए अपन माेनक
समय पर जाय आबैके लेल
नहिं कखनाे जाेर चलै आनक
जगह हाेय महल सन आऽ
बाॅस हुअय अपन पसन्दक
आन्हर एवम् बहिर हाेय आ
महिला के नहिं भेटै इर् अवसर
वेतन तऽ तेहेन शानदार हुए जे
ललायित रहै दुनियाके सब मिलियनेयर
कम्पनीके कर्ता धर्ता हम बनी
बाॅस अनुसरण करैै हमर आज्ञाक
राेज आॅफिस आबैलेल सेहाे तैयार छी
जॅं लुक हाेय आेकर रितेश देशमुखक
बात सुनाबक हिम्मत नहिं करै
मुस्काइत रहै हमर सब बात पर
फेर विश्वास नहिं ताेड़ै कखनाे
दरमाहा नहिं राेकै कम्पनीके बंदाे भेला पर
जंगल दिस !- रूपेश कुमार झा ‘त्योंथ’

कम नहि, लागल छल भीड़ बेस
सूर्य उगल, फाटल कुहेस
तरुणी-तरुणक एकटा जोड़ा
घूमि रहल छल गुफा एलोड़ा
चश्मा साजल दुनू केर माथ
रखने एक दोसरक हाथ मे हाथ
हिप्पी देखि लागल तरुण अपाटक
जूता छलैक फोरेन हाटक
जिंस लगौने आओर टी शर्ट
देखि मोन कहलक बी एलर्ट
तरुणीक केश बॉब कटक
खाइत चलैत छल चटक-मटक
बढ़ैत चलि जाइत छल सीना तनने
तरुण प्रेमीक संग गप्प लड़ौने
तरुणी देह पर छलैक वस्त्र कम
तकर ने छलैक ओकरा गम
चलैत-चलैत भेल ठाढ़ दुनू
मोने सोचल एना लोक चलैछ कुनू
धेलक एक दोसर केँ भरि पाँज
देखि कऽ हमरा भऽ गेल लाज
मुँह घुमा पुछलियैक-जेबऽ कोन दिस
बाजल दुनू एक संग-जंगल दिस!
पंकज पराशर,

डॉ पंकज पराशर (१९७६- )। मोहनपुर, बलवाहाट चपराँव कोठी, सहरसा। प्रारम्भिक शिक्षासँ स्नातक धरि गाम आऽ सहरसामे। फेर पटना विश्वविद्यालयसँ एम.ए. हिन्दीमे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। जे.एन.यू.,दिल्लीसँ एम.फिल.। जामिया मिलिया इस्लामियासँ टी.वी.पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। मैथिली आऽ हिन्दीक प्रतिष्ठित पत्रिका सभमे कविता, समीक्षा आऽ आलोचनात्मक निबंध प्रकाशित। अंग्रेजीसँ हिन्दीमे क्लॉद लेवी स्ट्रॉस, एबहार्ड फिशर, हकु शाह आ ब्रूस चैटविन आदिक शोध निबन्धक अनुवाद। ’गोवध और अंग्रेज’ नामसँ एकटा स्वतंत्र पोथीक अंग्रेजीसँ अनुवाद। जनसत्तामे ’दुनिया मेरे आगे’ स्तंभमे लेखन। रघुवीर सहायक साहित्यपर जे.एन.यू.सँ पी.एच.डी.।
समयोर्मि
(शक्तिक विरुद्ध मनुक्खक संघर्ष वस्तुतः विस्मृतिक विरुद्ध स्मृतिक संघर्ष थिक। मिलान कुंदेरा, “द बुक ऑफ लाउडर एंड फॉरगेटिंग”)
एहि दिवाकालीन रातिमे कछमछ करैत फड़िच्छ हेबा धरि
एकटक तकैत छी नील-धवल-आकाश
चिड़ै-चुनमुनीक आवाज सुनबा लए आकुल
भोरुकबाक खोज करबा लेल होइत अछि ठाढ़
लगैत अछि अजगरक फाँसमे कुहरि रहल अछि प्रकाश

निशाकालीन दिवसमे शब्द-सूर सब
मल्लोलित-कल्लोलित-शब्दोद्वेलित करैत निस्पृहतासँ
प्रत्यर्पित करैत अछि अवचेतनमे कूटशब्दांधकार

मातृभाषिक संसारमे लहालोट होइत लेखनी घामे-घाम भेल
अंततः भ जाइत अछि ठाढ़
एक-एकटा शब्दकेँ निकतीपर जोखैत

भृतकवीथीसँ दरिद्रवीथी धरि पसरल एक दिस देबालमे
तीन दिस टाट ठाढ़ करैत भृतकगण
सहस्रो वर्षसँ आइ धरि ओहिना पड़ैत छथि देखार
पातंजलिक आँखिमे खचित “कुड्यीभूतं वृषलकुलभिति”

सोतिपुरा आ अग्रहारक बाहर जन्म लेबाक
अभिशापित कालक सांघातिक दंड भोगैत
आदि सभ्यताक अंत पुरुष आइयो भोगैत अछि आर्याचारक
दारुण अरण्याचार
सम-आचारसँ रहित समाचारक नूतन प्रचारक सब
मनुक्ख विरोधी नवाचारक निधोख करैत अछि गोयबल्स केर शैलीमे प्रचार

काल-नियन्ताक क्षुधित मुखाकृति केर असंख्य प्रतिकृति
बौआइत अछि मिथिलाक गाम-गाममे भक्ष्य, भोज्य, चोष्य आ लेह्यक
सांगीतिक गुणानुवाद करैत

उन्नत सभ्यताक सांस्कृतिक साँझमे धर्मधारी विशिष्टाद्वैती प्रवचनकर्ता
विषय-कीर्तनक विशेष कीर्तन करैत अछि सर्वथा विशिष्ट शैलीमे संपादित
विशिष्ट कक्षक विशिष्ट क्षणमे सोमरसमे रंजित

वृद्धा पृथ्वीक आँखिमे उमड़ैत समुद्रोर्मि
आदि पुरुषक नोरसँ आओर होइत अछि नोनछाह
आदि नारीक रक्तसँ पाटल अछि उन्नत सभ्यताक घृणाच्छादित रक्ताकाश

रक्तात सभ्यताक विलुप्त सरस्वतीमे अहर्निश कनैत अछि
द्वारबंगक दू टा माछ

मत्स्यप्रेमी द्वारबंगी सामन्त आ महाराज मत्स्योपभोगक लेल
आकुल-व्याकुल कुल-कुल के मत्स्यक बिना कोनो मात्सर्यक
करैत रहल अछि शिकार

शिकारित जीव सबहक आर्तनादी हाहाकारसँ
परिपुष्ट होइत रहल अछि आखेटक सबहक क्रूरात्मा

एहि दिवाकालीन रातिमे शिकारित जीव सबहक हत आत्मा
पुछैत अछि अपन-अपन अपराध
जैजैवन्ती रागमे निष्णात इतिहास-पुरुषसँ बेर-बेर

उर्वीपुत्रीक दारुण जीवनक व्यथोपकथनसँ द्वारबंगी माछक
अश्रुपूरित आँखिमे अभरि अबैत अछि ऐतिहासिक सभ्यताक सांस्कृतिक रक्तपात

असंख्य मनुक्खक रक्तसँ पाटल द्वारबंगमे बनैत रहल
उजड़ैत रहल बुभुक्षित साम्राज्य

उर्वीजाक भातिज सबहक रक्तसँ शमित करैत रक्त-पिपासा
उर्मिल नदीक कोरमे खेलाइत माछक प्राणांतक कथा
नहि कहत द्वारबंगक मत्स्यभोगी इतिहास-पुरुष

साओन मासक रातिमे जागि कए प्रात करैत
भृतकवीथीक लोकक व्यथा नहि कहत कापुरुष जयदेव

एहि दिवाकालीन रातिमे पातंजलिक बाट तकैत
विदा होइत छी भिनसरे-भिनसर राजघाट दिस

निरन्तर लऽग अबैत शब्दोर्मिमे डुबैत असंख्य माछक ऐतिहासिक अश्रुओर्मिमे
कटैत रहैत अछि हमर हृदय-सिन्धुक पाट!
सुबोध ठाकुर
हम गामेमे रहबइ
रही दूर अपन माटिसँ मेनेजर रहि-रहि कलुशय
छोड़ि अपन गाम मन रहि-रहि बिहुसए

ओ सुन्दर मनभावन पोखरिक घाट
ओ वसंत आर सावनमे सुन्दरि पाबनिहारनिसँ सजल बाट-घाट
बगियामे सदिखन कोयली कूकए
रही दूर अपन गामसँ मेनेजर रहि-रहि कलुशय

अछि सुबोधक कामना, जुनि करू दूर आब पुत्रकेँ माँ
अहीँक सानिध्यमे रहए लेल मन तरसए,
छोड़ि अपन गाम मन रहि-रहि बिहुसए।
बालानां कृते- 1. मध्य-प्रदेश यात्रा आ 2. देवीजी- ज्योति झा चौधरी
1. मध्य प्रदेश यात्रा
पाॅंचम दिन ः
27 दिसम्बर 1991 ़ः
काल्हिक लम्बा पदयात्रा आ देर रातितक फिल्म देखलाक कारण आइर् भाेरे उठैमे बहुत आलस बुझाइत छल।तैयाे हमसब साढ़े छह बजे अपन सामान संगे आगाॅंक यात्रालेल पूर्णतः तैयार छलहुॅं।आइ हमरा सबके जबलपुर पहुॅंचक छल।हमर सबहक यात्रा बस सऽ करीब सात बजे भाेरे प््रा ारंभ भेल।रस्ताभरि प््रा ाकृतिक दृष्य के निहारैत रहलहुॅं।हमर इर्च्छा अछि जे अहि स्थानक शहरीकरण नहिं हाेइर् लेकिन पता चलल जे बढ़िया बढ़िया हाेटलक विकासक प््रा्क्रिया चलि रहल छै।हम कवि भवानी प््रा सादक रचना ‘सतपुरा के घने जंगल’ पढ़ने रही।आेहिमे कवि सतपुराक वन के सघनताक जेहेन वर्णन केने छथि से अक्षरशः सत्यन प््राुतीत हाेइत छल।
जबलपुर पहुॅंचिकऽ सब फिल्मक बात करैत रहै। हमहु सुनैत रही।पता चलल जे फिल्म ‘पत्थःर के फूल’ अभिनेत्री रवीना टण्डन के पहिल फिल्म अछि आ अकर गानामे मुम्बइर्के पूरा प््रामसिद्ध सड़क सबहक नाम अछि।

2.देवीजी :
देवीजी ः महिला दिवस
महिला दिवस के अवसर पर देवीजी के बढ़िया अवसर भेटल छलैन भारतीय महिलाक सम्मान पर बात करक। आे सब विद्यार्थी सबलग अपन बात अहि श्लाेक सऽ प््रारारम्भ केली –‘ यत्र नार्येस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात् जतय स्त्रीक पूजा हाेयत अछि ततै देवताक निवास हाेयत अछि। देवीजीके अनुसारे इर् बात अक्षरशः सत्‍य छल।
हुन्कर कहब छल जे स्त्री सब तरहे शक्तिूशाली आ सक्षम अछि तखनाे आे समाज मे दुतिभावनाक मारि झेलैत आबि रहल अछि। यद्यपि आेकर स्थिति दिनाेदिन सुधरि रहल छै तैयाे अहि समस्याक पूर्णतः उन्मूलन आवश्यक अछि। कतेक जगह बच्चा जे जन्मलाे नहिं रहैत अछि तकर लिंग परिक्षण कऽ गर्भेमे मरवा देल जायत छै जॅं मार्तापिताके पता चलै छै जे बच्चा स्त्री अछि।इर् बड़का जघन्य अपराध हाेयत अछि जाबै इर् नहिं स्थिति रहैजे बालिका संख्या बेसी हाेय अर्थात् डेमाेग्राफिक रेसियाे गड़बड़ायल हाेय वा चिकित्सैक काेनाे अतिशय दुःखद कारणवस एहेन सलाह दैथ।बाल विवाह़ दहेज समस्या़ सर्तीप््रा़था़ विधवा के सब सुख सऽ वंचित केनाइ़ पढ़ाइर् के बराबर सुविधा नहिं भेंटनाइऱ् महिला संगे दुर्व्यवहार आर जाने काेर्नकाेन तरहक दुःख के स्त्री झेलैत आबि रहल अछि। लेकिन अहि सब वाधाके बादाे स्त्री प््रा्त्येाक क्षेत्रमे अपन स्थान बनाबैत रहल अछि।जतय कताै आेकरा माैका भेटलै आे साबित केलक जे आे ककराे सऽ कम नहिं अछि। आऽ माैका भेटऽके काेन बात छै बहुत जगह आे शुरूआत कऽ इतिहास निर्माण सेहाे केने अछि।उदाहरण लेल श्रीमति किरण वेदी के लियऽ जे भारतके प््रातथम महिला आइ पी एस आॅफीसर छथि।हुनका कहल गेल रहैन जे स्त्रीके अतेक शारीरिक परिश्रम वला काज नहिं करबाक चाही लेकिन आे आरामक पद छाेड़ि आइ पी एसक पद पर अपन क्षमता साबित केलैथ।बेचेन्द्री पाल भारतके प््रा थम महिला पर्वताराेही छैथ जे माउण्ट एवरेस्ट पर चढ़ल छलैथ।तहिना भारतीय मूलके सुनीता विलियम्स व अन्य महिला अंतरिक्षक यात्रा कऽ रहल छैथ। भारतीय राजनीति के सवाेर्च्च पद राष्ट्रपत़ि प््रापधानमंत्री एवम् मुख्यथमंत्री तकके पद के स्त्री सम्मानित कऽ चुकल छैथ।
अहि तरहे आे सब तरह सऽ पुरूषक बराबरी कऽ सकैत छैथ लेकिन बहुत जगह पुरूष हुन्कर बराबरी नहिं कऽ सकैत छथि।जेना बच्चाके अपन गर्भमे राखिकऽ विकसित करैके आर्शीवाद भगवान स्त्रीये के देने छथिन।माॅडलिंग आऽ फैशनक दुनियामे अखनाे महिलाक बाेल बाला छै।लेकिन अकरा विकासक नशा कहबाक चाही जे आधुनिकताक धुन मे स्त्री अपन वास्तविकता के बिसरि गेल अछि। लाेक विवाह आ बच्चाक जन्म देबऽ सऽ दूर हुअ लागल अछि। स्त्रीमे इर् क्षमता छै जे आे पारिवारिक आ व्यवसायिक जीवनमे सामञ्जस्य बना सकैत अछि। तैं आेकरा समान अधिकार भेटबाक चाही।संगहि स्त्रीयाे के चाही जे आे समाज व्यवस्थाके अनुशासनके एकदम सऽ नहिं बिसरै।
तकर बाद इहाे आवश्यक अछि जे स्त्री एक दाेसर के मददि करैथ। जतऽ अपना कमी लगलैन से अपन बेटी पुतहु के नहिं हुअऽ देथिन। समाजमे स्त्रीक स्थिति सुधारक यैह रस्ता अछि। देशमे कानूनक कमी नहिं अछि। सब तरहक कानून छै लेकिन तैयाे स्त्रीक हालत आन देश स कनि पिछड़ले बुझायत छै। अहि के लेल स्त्री शिक्षाके बढ़ाबैके आवश्यकता अछि जाहि लेल घरक स्त्री बेसी बढ़िया काज कऽ सकैत छैथ अपन बच्चा सबके पढ़ैलेल प््रा ेरित कऽ।
देवीजी कहलखिन जे भारतमे सर्वदा स्त्रीके सम्मान भेटल छैन।कहल गेल छै ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात् माता एवम् मातृभूमि स्वर्ग जकाॅं पूजित हाेएत अछि।भारतमे आदिकाल सऽ अनेकाे देवी के दुर्गा़ सरस्वती़ लक्ष्मी वा अन्य रूपमे पूजल जायत अछि।तैं आे सबके कहलखिन जे स्त्रीके प््रादति सम्मान भारतीयताक सबसऽ पैघ निशानी अछि।अहि परम्पराके निर्वाह करक अनुराेध करैत आे अपन वक्तरव्य समाप्त केली।

बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् – विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे – देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.
१.पञ्जी डाटाबेस २.भारत आ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
१.पञ्जी डाटाबेस-(डिजिटल इमेजिंग / मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण/ संकलन/ सम्पादन-पञ्जीकार विद्यानन्द झा , नागेन्द्र कुमार झा एवं गजेन्द्र ठाकुर द्वारा)
जय गणेशाय नम:
उँ नमस्यय शिवाय:
उँ नमस्यय शिवाय:
(64) “32”
गागूंक साण्ड3र सँ नन्दी्श्वार सुत वाणीश्वेर दौ खण्डकवलासँ गौढि़ दो।। गांगु सुत: रति: (41/08) सुत: रति: सरिसन सँरूद दौ।। (17/04) (34/06) रूद्र सुता सकराढ़ी सँ जाई दौ (04/01) कुजौली सँ राजू द्दौ।। एवं गोढि़ मात्रिक चक्र।। (20/05) गोढि़ सुतौ परान ऋषिकेशों टकबाल सँ रामकर सुत बाछे दौ।। नरघोघ टंकबाल सँ बीजी शुचिकर:।। शुचिकर सुतौ थेघ: शेध सुतौ प्रितिकर दामोदरौ (64/06) कमग्राम सकराढ़ीसँ नरपति दौ।। प्रितिकर सुतौ रतिकर लासू कौ खौआनसँ महामहो देवादित्यत सुतजीवे दौ सुरगनसँ गंगाधर द्दौ।। (5/07) रतिकर सुता रामकर रविकर ढोंढेका सकगढ़ीसँ भी दौ।। (4/07) सटुज नाइ सुतौ भीम (64/01) कुरेश्व रौ नरउन सँ गंगादाश दौ।। भीम सुतौ गंगेश्वार रतीश्व।रौ अलसयसँ म म उपा रामेश्वार दौ। (02/01) दरिहरासँ रति द्दौ।। रामकर सुतौ बाछेक: मरउनसँ श्रीकर दौ।। (08/07) (43/07) श्रीकर सुतो दँमे पर उँफौ माण्ड रसँ महो रघुपति दौ।। (18/03) महो रघुपति (57/09) सुता जानपति (264/07) विभापति नजापतिय: सोदापुर सँ महामहो पाच्यादय सरबए सुत खांतू दौ खौआल कृष्ण8पति द्दौ।। एवं बाछेमात्रिक चक्र।। बाछे सुता दरिहरा सँ साने सुत सौरि दौ।। (11/06) महामहो कीर्तिशर्म्मम सुतौ केशव शिवौ बहेराखीसँ लड़ाखवन सुत सुपनदौ पबौलीसँ रूददौणा केशव सुता बाणे सोने कोन (38/02) ऋषय: पनिचोभसँ सोंसे दौ।। (08/05) सफराढ़ीसँ जीवेश्वँर दौहिम दौ।। सोने सुता सिरू कारू (35/02) चन्द्रय मौगरे सौत्रीका: सोदरपुरसँ रामनाथ दौ।। (18/10) (30/07) रामनाथ सुता बलिदान सँ भीख सुत हिरमणि दौ जललकी सँ भवेश दौ।। सोने सुता सिरू (35/02) कारू चन्द्रह मौरे (50/06) सौगीका: सोदरपुरसँ रामनाथ दौ।। (18/10) (30/07) रामनाथ सुता बलिदान सँ भीख सुत हिरमणि हौ जल्ल दीसँ भवेश द्दौ।। सोरि सुतो (32/10) दाशे दिनेकौ पालीसँ रतनपाणि दौ।। (05/04) नरसिहं सुत श्रीधर गुणीश्व र गोपाला (31/06) एकहरासँ रूचिक दौ गोयल सुतौ रतनाणि

(63)
रूद्रपाणि माण्डसर मिश्र गटान सुत वीर दौ राउढ़सँ श्रीमाथ द्दौ।। (24) रतनपाणि सुता महाई (50/05) विक्रम (55/03) राम (53/01) राम का: खौआलसँ श्रीकर दौ।। (19/04) गंगोरसँ नोन द्दौ।। रामरान मात्रिक्रकं।। परान सुतौ (96/09) अर्जुन कामदेवौ खडीक खौआल सँ कुश सुत वेणी दौ।। (20/11) (48/08) माधव सुतौ रूचिनाथ: धुसोतसँ धृसौतसँ धृतिकर सुत हरिकर दौ सरिसदसँ सुधाकर द्दौ।। रूचिनाथ सुता (56/10) लव कुश शिव (52/02) गौरी (35/01) केशवा पालसँ हरिकर दौ।। (10/05) प्राणधर सुता हरिकर सुधाकर (34/02) शुभकरा हरिहरासँ (63/05) रूद्र दौ (195/01) हरिकर सुतौ गुणाकर (29/01) गाईका: माण्डहरसँ आडवनि दौ।। (18/03) आडन्निँ (27/09) सुतौ नरपति (40/07) रविपति द्दो।। कुश वेणीक: सोदरपुरसँ शिव दौ।। (55/07) डालू सुताशिव (42/08) अफैल (74/04) (26/01) गाइका: माण्डनरसँ आडनि दौ।। (18/03) (27/09) आडन्निद सुतौ (40/07) नरपति रविपति करमहासँ गंगेश्व7र दौ।। (02/08) खौआलसँ आडू द्दौ।। शिव सुतौ उद्योरण (51/07) काशी सतलखासँ भाष्कशर द्दौ: सतलखासँ बीजी मतिकर: ए सुतौ सिधूक ख सुतौ रतनाकर: बुधवालसँ मधुकर दौ खण्ड5दना सँ सुथे द्दौ।। रतनाकर (24/04) सुता हरिकर भाष्कसर (39/09) दिवाकर चन्द्रतकर (38/09) शकरा: बेलउँच धरादित्य दौ।। (10/04) भरेहासँ गणपति द्दौ।। (56/08) भाराकर सुतो थेप्यर: बुधवालसँ शुभंवर सुतदामोदौ वलियासँ नितिकर द्दौ।। एक वेणी मात्रिक चक्र।। वेणी सुतौ पीताम्बणर टकबालसँ रूद सुत गांगु दौ (09/10) रूद सुतौ गांगुक नल्ह नउर संजोर दौ गोविन्दि सुतौ जोर: माण्डेरसँ अमतू सुंत हरदत्त दौ फनन्द हसं शोरे द्दौ।। गांगु सुतो नन्हीूपति बेलहररिहर दौ( 02/04) हिरद सुत्रौ (65/06) हरिहर:

(64)
हरिहर मधुसरवाटू (50/02) ठाम (145/03) का: पबौलिसँ शिवदत्त (20/05) देवदत्त (35/07) सुतौ सदुपाध्याौय शिवदत्तू भवदन्तौ0: माण्ड रसँ गयन दौ।। (20/06) तिसुरीसँ नरसिहं द्दौ।। सदुपाध्यागय (30/08) शिवदत्त सुता जालयसँ महिधर दौ।। (72/011) महामस्तधकमाधि सुता सोम (56/09) भोगा जीवे का: यमुगामसँ गताई दौ।। हरिहर सुता वर्दन ठकरू भमर सकराढ़ी से देवे दो।। (08/05) चांड़ो सुतौ गुणीश्वार गंगोलीसँ बराह दौ।। ए सुतौ रतीश्वार (39/10) मतीश्वनरौ गंगोलीसॅ माने द्दौ।। रतीश्वधर सुता (34/09) भोगे देवो गोढ़े का: (3/06) खण्डाबलासँ मतिश्वसर सुत सिधूदौ थरिया सँ रविनाथ द्दौ।। देवे सुता (63/01) नागे शिव बढाई का: सोदरपुर सँ शमदत्त (21/01) हरदत्त सुतौ माधवदन्त : सकराढ़ीसँ कुली दौ माधवदन्त सुतौ शुभ दत्त फरमाहासँ मांगु दौ।। शुभदन्त:सुता शिरू देवे (85/07) (47/08) सुता नागे शिव महाई का: (61/09) सोदरपुर सँ शमदत्त (21/01) हरदत्त सुता माधवदत: सकराढ़ी सैकुली दौ माधवदन्त/ सुतौ शुभदन्तद: करमहासँ मांगु दौ।। शुभदन्त/ सुता (85/07)शिरू देवे सोमा: (47/08) सतलखासँ सिधू सुत रतनाकर दौ (24/07) अपरा रतनाकर सुता पालीसँ दुर्गादित्यन दौ।। (19/07) बलियासँ रामशर्म्म द्दौ एवम ठ रघुपति मात्रिक चक्र।। ठ. रघुपति सुतो धराधर लक्ष्मीभ धरौ पुड़े नरउनसँ बाबू दौ।। (08/03) दिवाकर सुतौ दिनकर: टकबालसँ प्रितिकर दौ।। (23/03) खौआलसँ जीवेश्वलर द्दौ।। (67/03) दिनकर सुता (60/04) परम (76/04) वीर (36/05) (56/01) शिरू का: तत्रदयासत्रय दरिहरासँ कुसुमाक दौ अन्योल प्रथमा परौक्षे दरिहरासँ कुसुमाक सुत मितू दौ।। (11/08) (48/04) कुसुमाकर सुता रूचि मित सिधू नन्दसका: कनन्दोत सिधू नन्दूकका: कनन्दततसँ सोरिसुत गोविन्द6 दौ माण्ड रसँ वागीश्व(र द्दौ।। मित सुता नाथू पॉं महनू मानू का: पानिचोभसँ मधुकर दौ।। (18/05) मधुकर सुता बलियास सँ रूचिकर सुत कुसुमाकर दौ एकहरा सँ शुकल दौहित्र दौ।। अपरा (14/05) ठ. रघुपति (69/03) सुता बुधवालसँ परान सुत नारायण दौ बलियासँ श्री राम द्दौ।।

(65)
एवम् गिरू मातृक चक्र।। गिरू सुतौ सदुपाधय जीवनाथ: माण्डनर सँ (25) बसाउन दौ।। (20/01) सुरपति सुतौ गुणीश्ववर: पनिचोभसँ हरिकर दौ (22/05) गंगोलीसँ पौखू द्दौ।। गुणीश्व‍र सुता (65/06) राम बसाउन (32/01) दिनू का: (66/08) भराम जजि ढाम दौ (22/03) दाम सुतौ (39/03) दामू सुतौ (39/05) पागुक: उचतिसँ माधव दौ।। (06/10) माधव सुतौ (68/02) शुचिकर: खौआल सँ शुभे दो।। (107/01) बसाउन सुतौ (93/06) रूचिनाथ गोपीनाथौ (132/06) सरिसबसँ परान दौ।। (20/05) विरेश्व र सुतौ परान: खौअसँ हरिपति दौ।। (07/09) (36/01) हरिपति सुतौ (47/05) कउरू क: सोदरपुरसँ विश्वेवश्वार दौ।। (15/06) दरि मुनि द्दौ।। परान दौ (20/05) विरेश्वचर सुतौ परान: खौअनसँ हरपति दौ।। (35/07) सँ हरिपति दौ।। 07/09) (36/01) हरिपति सुतौ (47/05) कउरू क: सोदरपुरसँ विश्वे3श्वतर दौ।। (15/06) दरि मुनि द्दौ।। परान सुता बहेराढ़ीसँ गदाधरदौ।। (07/10) ठ. गदाधर सुतौ चाण: सुदई बेल रूद्रादित्ये दौ।। (10/;3) रूद्रादित्यि सुतौ (30/07) होरेक: नाउनसँ हरिश्वौर दौ।। (10/06) हरिश्व7र सुता गदाघर जगद्दा मशे देवधर विस्कीबरसँ हददनत सुत होराई दौ निरसूतिसँ महिघर द्दौ।। एवम जीवनाथ मत्रिकसुंप्रथा सदुपाध्या0य जीवनाथ सुता रामचन्द्रत परनामक बामू (84/106) (85/04) महिनाथ (113/08) राममद्र अनिरूद्धा: हरिश्रमसँ भवदन्तप दौ।। (18/08) गांगु सुतौ केशव: (27/05) खौआलसँ विश्व)नाथ दौ।। केशव सुता मागु नरहरि (31/08) मागु नरहरि (27/06) बहमपुर वालसँ नारू दौ। (20/09) नारू सुता बरूआरीसँ रविकर दौ।। (12/06) रविकर सुतौ सुधकर: खण्ड7 जाई दौ।। (09/02) मालिछसँ देहरि द्दौ।। मांगुसुताह पुरदबू गोपाला: दरिहरासँ बासू (1123/05) भवशर्म्म( सुतो बागूक: हरिणरति दौ।। बागू सुतौ बासूक सोदर म.म रतिनाथ दौ (22/01) मा मा वहेड वासू सुतो गढ़ धुसौतसँ रतिकर सुत कुलपति दौ बलियासँ मधुकर दौ।। हरकू सुतौ भवन्द्तल एक बसावन दौ।। (22/08) मते सुता केशव (76/06) महादे माधव लव कुश रतन का: सतलखा सँ रतनाकर द्धौ

(66) ”25”
(24/05) पालीसँ दुर्गादित्यर द्दौ।। कन्हौसली कहरासँ (29/01) माधव सुतोटूनी बसावनौ (33/01) सुधाकर सुत चान्दव दौ कुधलासँ दाश द्दौ।। बसावन सुता बहेरिढ़ाी सोने दौ (07/01) नरहरि सुताबाराह (42/03) बाउरे (48/08) नरउनसँ कोने दौ।। (14/05) सक जीवेश्व र द्दौ।। (42/03) बाराह सुता नोने सोने इबे चौवेका: माण्ड रसँ रघुपति दौ तिसूसँ सिधू दौहित्रदॉं सोने सुता यद सुधकर प्रढ सुधे महाईका: (46/01) खौआलसँ रति दौ।। (16/07) रमापति सुतो हरिहर बेलउच सधरदित्यन दौ।। (10/05) मरेहासँ गणपति द्दौ।। हरिहर (29/09) सुतो रति: टकबाल सँ केशव दौ।। (09/05) केशव सुता हरदत्त (43/06) भवदन्त रविदन्त देवदन्ता : (49/04) जजिवालसँ बानू द्दौ।। रतिसुत जल्ल(कीसँ मतिकर दौ।। (12/01) रतिघर सुत मतिकर सुतौ टकबालसँ केशव दौ (09/05) केशव सुता हरदन्त) (43/06) भवदनत रविदन्तक (41/05) देवत्ता: (49/04) जजिबालसँ बाबू द्दौ।। रतिसुत जल्की दौ सँ मतिकर दौ।। (12/010) म म रतिघर सुत मतिकर सुतौ लक्ष्मी‍कर: माण्डउरसँ सुरसव दौ (22/02) कुजौलीसँ राजू द्दौ।। एवं भवदन्तन मात्रिक चक्र। भवदत्त सुता खौआल विशोदा (21/04) आमरू सुतोविशोक: कर श्रीकान्तड दौ (1121/011) खौआल स गोविन्दं द्दौ।। विशो सुतो (302/02) गोविन्दन बुध हलधर दौ।। (19/04) पॉंखु सुतो हरधर: दरि गिरी दौ।। (22/04) गिरी सुताशमकरी (39/04) (57/02) माधवा: सोदहर दौ।। (23/10) कु वंशवर्द्धन द्दौ।।हलधर सुतौ (91/04) थे ध: वितरखा माण्डसरसँभाने दौ// (19/10) भानुकर सुतो रामकर: घटे रवि दौ।। रामकर सुतौ मानेक: घुसौतसँ गुणाक दौ। (20/01) गुणाककर सुतौ गोढि़ बलि श्रीधर दौ।। (94/04) वितरका माण्डरर सँभाने दौ।। (19/10 भानुकर सुतो रामकर: घंटे रवि दौ।। रामबर सुतो मानेक: घुसौतसँ गुणाक ढौ।। (20/101) गुणकर सुतौ गोंढि़ बलि श्रीधर दौ।। (94/04) माने सुतौ पीताम्बरर: (23/08) हरि विभू दौ (16/03) नोने सुता चाण (28/04) विभू परम (36/03) लाखूक। (37/02) पन्दौहीजनि रूद्रपाणिदॉंकश्यसम गोत्रे बा्रहमपुरासँ हरदिहर द्दौ।। मिमांशक (33/03) वम सुता बुद्धिकर (50/08) होरे 66/01) जोरे का: तयहनपुरसँ गोपाल दौ।। 24/09) गोविन्दु सुतौ गोपाल: पालीसँ कामेश्वुर दौ गोपाल सुतौ लान्हूकक: पालीसँ नादू दौ (61/04) (112/05) लाइ सुतौ यशु डुगरू (38/05) बागे का: माण्डंरसँ जीवेश्व‍र दौ।। एवम बाबू मात्रिक नक्रा।

(67)
रामचन्द्राौ परनामक बाबू सुतो (84/06) (97/04) दामोदर: कटका सोदरपुरसँ विशो सुत (26) भानु दौ।। (24/05) शादू सुता महाई गोनू (17/02) विशो (67/05) जीवे पराना: माण्ड रसँ जोर दा।। (07/110) चौबे सुतौ शिव धमौ।। (253/01) शिव सुतौ कामेश्वनर: बेलउँचसँ सुत केशवदौ।। कामेश्वेर सुता पीते सागर विठूका: कोइयार सँ विनायक दौ महो सागर सुता सदु भीवे महामहात्तक जोर जाने का बहेराढ़ीसँ धृतिकर सुत बाराहदौ दरिहरासँ हश्शिर्म्म‍ द्दौ महामहत्तक (39/07) जोर सुता पालीसॅं सँदुगुरू दौ।। (25/01) (35/10) डगरू सुतो रघु शिवौ खौआल सँ जीवे दौ।। (20/10) अपरा शुचिकर सुतौ नाने जीवों करमहा सँ नितिकर दौ जीवे सुता रतन (29/07) मांगु हरय: पनिचोभ सँ धराई दौ वीरपुर पनिचोभ सैवांसी महेश्वइर ए उतौ कामेश्वअर ए सुतौ रतनेश्वदर ए सुतौ नाथू बारू कौ ।। बारू सुतौ धराईक: माण्डभरसँ महामहोपाधय जगन्नामथ दौ निरबूति से विदयाधर द्दौ।। (29/01) धएई सुता करूआनी सकराढ़ी सँ भीम दौ एवं विशोमातृक चक्र।। दिशो सुताकेशव म भानु (88/03) कुमार राजा का: माण्डिरसँ गागे दौ।। (21/03) भवदत्त सुतो कान्ह।: हरिश्रमसँ रूचि दो ।। कान्हभ सुतो रवि गिरी कौ बोहाल करमाहासँ शिववंश सुत सुपन दौगंगुआल सँ गोविन्दा द्दौ।। गिरी सुतौ कुले गागे कौ पालीसँ पौखू दौ।। (13/09) खौआलसँ नरसिहं द्दौ।। गांगु सुतौ महन रंजनो (40/01) (229/07) कुजौली से सुरपति दौ।। (04/04) रूद्र सुतौ रघुक: ए सुतौ कानह: पबौली सँ महिपतिदों

(68) ”26”

कान्ह8 सुतो सुरपति: सकराढ़ी सँ चण्डेपश्वुर सुत देहरिदौ दिधोय सँ जगन्ना थ द्दौ।। सुरपति सुतौ बेध मेघौ तिसुरीसँ पौखू पौत्र खाजो सुत गुदिदौ खॉंजो सुतौ गुदिक: खण्डढ शुभदत्त दौ।। गुदिसुता कौर पाली दरिहरासँ मधुकर सुतमांगु दौ कोयूयारसँ सुधाकर द्दौ।। मानुमात्रिक मिश्र मानुसुतो (63/04) भवानीनाथ रामनाथौ (32/06) बाली परिहारासँ होराई दौ।। (22/04) रूपन (49/10) सुतौबासूक: पालीसँ केशव दौ।। (14/04) नाउनसँ कोने द्दौपा (62/05) जासुतेर बुधा (67/03) सुधाईकौ हरिअम सँ रति दौ।। (16/03) रतिसुतौ महाइक: (85/02) भाण्डँर सँ कृष्ण पति दै।। (18/08) कृष्णअपति सुतौ रामपति सर्वपति (48/01) बुधवालसँ भानु दौ (19/04) ढीह प्रतिनाथ द्दौ।। बुधाई सुतौ चिकू होराई कौ पनि माने दौ (17/011) गोविन्दई सुतो मानेक: चत चान्दण दौ।। 24/07) (28/09) चान्दन सुतो मतिकर: फनन्दप महेश्व(र दौ।। माने सुतौ रामपाणि रतनपाणि एक महाई दौ। (22/06) जानपति सुतौ रवि (83/08) ढामोदरौ बुधपाल सॅ महेश्वतर दौ।। (19/04) महेश्व र सुता पबौली सँधराधर सुत विशो दौ बलि दिनकाणि द्दौ।। होराई मात्रिक चक्र।। होराई सुता (82/05) देवनाथ काशीनाथ महिनाथा: मरमहासँ रघुनाथ दौ (02/08) श्री वत्सक सुता बाछे (36/08) शम्मुई हरय: दरि कोचे दौ (15/01) कोचे सुतौ दुगीदित्यल गोनू (53/02) कौ गढ़ धोसातसँ रविकर दौ।। 19/01 भण्डा6रसँ हरदत्त

(69)
बाछे सुतो (27/02) भवे कौ खण्डहबला सँ लाख दौ।। (011/06) लाख सुता राम रूद कुल्प/तिय: बभनियामसँ किठो दौ।। (06/08) खण्ड2दलासँ रविकर द्दौ।। (13/05) भवे सुतौ रघुनाथ: नरउन सँ विदू दौ।। (08/02) चन्द्राकर सुतौ (28/10) बागे ओहरि बहेराढ़ीसँ बासू दौ।। (07/08) तल्ह(नपुरसँ रतनाकर द्दौ।। (80/08) अहरि सुतौ विदूक: तिसूरीसँ ग्रहेश्वोर सुतदिधदॉं माण्ड र सँ माने द्दौ।। विदू सुता श्रीपति गिरपति (704/07) पाखूका: पनिचोभसँ महेश्वमर दौ।। (20/03) माण्डोरसँ रूचिकर द्दौ रघुनाथ मात्रिक रघुनाथ सुतौ श्री नाथ हरिनाथ सोदारपुरसँ मीन दौ।। (16/08) राम सुतौ भीम: न रउन सँ दिनकर दो।। (24/08) दरिहरा सँ कुसुमाकर द्दौ।। (8/01) भी सुतो जीवनाथ (62/04) विश्व नाथा: बलि हरिअमसँ भवे दौ (25/07) (54/01) नरहरि सुता (55/06) रवि मवे (74/02) (31/04) (45/02) कुश मधुकर साधुकर बुद्धिकर (75/06) (334/09) कृष्णा( सिमरौनी माण्डनरसँ गिरीश्वसर दौ।। (20/07) गिरीश्वसर सुता विशोराम हल्ले श्वधरा: कुजौली से चन्द्र कर सुत मितू दौ खौआल सँ डालू द्दौ।। (44/07) भवे सुतो गणेश: नरउनसँ मेघ दौ।। 1903) शुचिका (74/03) सुतौ मेध: वमनि इशर दौ।। (06/07) महिपति सुतौ इशर (51/10) रघुकौ बलि जयानन्दँ दौ।। इशर सुता शादू कुलपति (35/08) गोदिका जगतिसँ धाम दो।। (15/05) बास सुतो धरेश्व/र: ए सुतो धाम: सरौनी सँ इशर रधुकौ (51/01) बलि जयानन्दि दौ।। इशर सुता शादू कुलपति (15/05) बारस सुतो धरेश्व/र: ए सुतो धाम: सतैनी से महादेव दौ।। धाम सुतो भवेक: तपोवन सँ विढ दा (52/09) मेघ सुतौ गौरीपति बाबू (136/10) इन्द्र/पतिय: माण्डमरसँ कुलपति दौ।। (24/05) (31/08) आड़नि सुतो कुलपति सोदा विश्व9नाथ दौ।। (22/110) मम विश्वेनाथ सुतौ गोपीनय: (29/020) वलियासँ सँ शंकारसुत कृष्णे दौ असयसँ गोती द्दौ।।

(70) ”27”
(38/03) कुलपति सुतौ मांगुक: बहेराढ़ी सँ पांखू दौ।। (09/04) त्रिपुरे (40/07) पौखूक: परसंडा सं श्री दत्त

२.भारत आ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
मैथिलीक मानक लेखन-शैली

1. नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली आऽ 2.मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली

मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए। हमसभ हुनक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ चलबाक प्रयास कएलहुँ अछि।
पोथीक वर्णविन्यास कक्षा ९ क पोथीसँ किछु मात्रामे भिन्न अछि। निरन्तर अध्ययन, अनुसन्धान आ विश्लेषणक कारणे ई सुधारात्मक भिन्नता आएल अछि। भविष्यमे आनहु पोथीकेँ परिमार्जित करैत मैथिली पाठ्यपुस्तकक वर्णविन्यासमे पूर्णरूपेण एकरूपता अनबाक हमरासभक प्रयत्न रहत।

कक्षा १० मैथिली लेखन तथा परिमार्जन महेन्द्र मलंगिया/ धीरेन्द्र प्रेमर्षि संयोजन- गणेशप्रसाद भट्टराई
प्रकाशक शिक्षा तथा खेलकूद मन्त्रालय, पाठ्यक्रम विकास केन्द्र,सानोठिमी, भक्तपुर
सर्वाधिकार पाठ्यक्रम विकास केन्द्र एवं जनक शिक्षा सामग्री केन्द्र, सानोठिमी, भक्तपुर।
पहिल संस्करण २०५८ बैशाख (२००२ ई.)
योगदान: शिवप्रसाद सत्याल, जगन्नाथ अवा, गोरखबहादुर सिंह, गणेशप्रसाद भट्टराई, डा. रामावतार यादव, डा. राजेन्द्र विमल, डा. रामदयाल राकेश, धर्मेन्द्र विह्वल, रूपा धीरू, नीरज कर्ण, रमेश रञ्जन
भाषा सम्पादन- नीरज कर्ण, रूपा झा

2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।

2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।

6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।

11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।

19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा’ ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा “सुमन” ११/०८/७६

आब 1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली आऽ 2. मैथिली अकादमी, पटनाक मानक शैलीक अध्ययनक उपरान्त निम्न बिन्दु सभपर मनन कए निर्णय करू।

ग्राह्य / अग्राह्य

1.होयबला/ होबयबला/ होमयबला/ हेब’बला, हेम’बला/ होयबाक/ होएबाक
2. आ’/आऽ आ
3. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल’/लऽ/लय/लए
4. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
5. कर’ गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
6. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’
7. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/क’र’ बला
8. बला वला
9. आङ्ल आंग्ल
10. प्रायः प्रायह
11. दुःख दुख
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
13. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
18. बढ़न्हि बढन्हि
19. ओ’/ओऽ(सर्वनाम) ओ
20. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे’/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
25. तखन तँ तखनतँ
26. जा’ रहल/जाय रहल/जाए रहल
27. निकलय/निकलए लागल बहराय/बहराए लागल निकल’/बहरै लागल
28. ओतय/जतय जत’/ओत’/जतए/ओतए
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
30. जे जे’/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस’
34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
35. सासु-ससुर सास-ससुर
36. छह/सात छ/छः/सात
37. की की’/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
38. जबाब जवाब
39. करएताह/करयताह करेताह
40. दलान दिशि दलान दिश
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
42. किछु आर किछु और
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
46. लय/लए क’/कऽ
47. ल’/लऽ कय/कए
48. एखन/अखने अखन/एखने
49. अहींकेँ अहीँकेँ
50. गहींर गहीँर
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
53. तहिना तेहिना
54. एकर अकर
55. बहिनउ बहनोइ
56. बहिन बहिनि
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
58. नहि/नै
59. करबा’/करबाय/करबाए
60. त’/त ऽ तय/तए 61. भाय भै
62. भाँय
63. यावत जावत
64. माय मै
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
66. द’/द ऽ/दए
67. ओ (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)
68. तका’ कए तकाय तकाए
69. पैरे (on foot) पएरे
70. ताहुमे ताहूमे

71. पुत्रीक
72. बजा कय/ कए
73. बननाय
74. कोला
75. दिनुका दिनका
76. ततहिसँ
77. गरबओलन्हि गरबेलन्हि
78. बालु बालू
79. चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
80. जे जे’
81. से/ के से’/के’
82. एखुनका अखनुका
83. भुमिहार भूमिहार
84. सुगर सूगर
85. झठहाक झटहाक
86. छूबि
87. करइयो/ओ करैयो
88. पुबारि पुबाइ
89. झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
90. पएरे-पएरे पैरे-पैरे
91. खेलएबाक खेलेबाक
92. खेलाएबाक
93. लगा’
94. होए- हो
95. बुझल बूझल
96. बूझल (संबोधन अर्थमे)
97. यैह यएह
98. तातिल
99. अयनाय- अयनाइ
100. निन्न- निन्द
101. बिनु बिन
102. जाए जाइ
103. जाइ(in different sense)-last word of sentence
104. छत पर आबि जाइ
105. ने
106. खेलाए (play) –खेलाइ
107. शिकाइत- शिकायत
108. ढप- ढ़प
109. पढ़- पढ
110. कनिए/ कनिये कनिञे
111. राकस- राकश
112. होए/ होय होइ
113. अउरदा- औरदा
114. बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
115. बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (understood himself)
116. चलि- चल
117. खधाइ- खधाय
118. मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
119. कैक- कएक- कइएक
120. लग ल’ग
121. जरेनाइ
122. जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
123. होइत
124. गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
125. चिखैत- (to test)चिखइत
126. करइयो(willing to do) करैयो
127. जेकरा- जकरा
128. तकरा- तेकरा
129. बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
130. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
131. हारिक (उच्चारण हाइरक)
132. ओजन वजन
133. आधे भाग/ आध-भागे
134. पिचा’/ पिचाय/पिचाए
135. नञ/ ने
136. बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
137. तखन ने (नञ) कहैत अछि।
138. कतेक गोटे/ कताक गोटे
139. कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
140. लग ल’ग
141. खेलाइ (for playing)
142. छथिन्ह छथिन
143. होइत होइ
144. क्यो कियो
145. केश (hair)
146. केस (court-case)
147. बननाइ/ बननाय/ बननाए
148. जरेनाइ
149. कुरसी कुर्सी
150. चरचा चर्चा
151. कर्म करम
152. डुबाबय/ डुमाबय
153. एखुनका/ अखुनका
154. लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल’
155. कएलक केलक
156. गरमी गर्मी
157. बरदी वर्दी
158. सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
159. एनाइ-गेनाइ
160. तेनाने घेरलन्हि
161. नञ
162. डरो ड’रो
163. कतहु- कहीं
164. उमरिगर- उमरगर
165. भरिगर
166. धोल/धोअल धोएल
167. गप/गप्प
168. के के’
169. दरबज्जा/ दरबजा
170. ठाम
171. धरि तक
172. घूरि लौटि
173. थोरबेक
174. बड्ड
175. तोँ/ तूँ
176. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
177. तोँही/तोँहि
178. करबाइए करबाइये
179. एकेटा
180. करितथि करतथि

181. पहुँचि पहुँच
182. राखलन्हि रखलन्हि
183. लगलन्हि लागलन्हि
184. सुनि (उच्चारण सुइन)
185. अछि (उच्चारण अइछ)
186. एलथि गेलथि
187. बितओने बितेने
188. करबओलन्हि/ करेलखिन्ह
189. करएलन्हि
190. आकि कि
191. पहुँचि पहुँच
192. जराय/ जराए जरा’ (आगि लगा)
193. से से’
194. हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
195. फेल फैल
196. फइल(spacious) फैल
197. होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
198. हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय
199. फेका फेंका
200. देखाए देखा’
201. देखाय देखा’
202. सत्तरि सत्तर
203. साहेब साहब
204.गेलैन्ह/ गेलन्हि
205.हेबाक/ होएबाक
206.केलो/ कएलो
207. किछु न किछु/ किछु ने किछु
208.घुमेलहुँ/ घुमओलहुँ
209. एलाक/ अएलाक
210. अः/ अह
211.लय/ लए (अर्थ-परिवर्त्तन)
212.कनीक/ कनेक
213.सबहक/ सभक
214.मिलाऽ/ मिला
215.कऽ/ क
216.जाऽ/जा
217.आऽ/ आ
218.भऽ/भ’ (’ फॉन्टक कमीक द्योतक)219.निअम/ नियम
220.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
221.पहिल अक्षर ढ/ बादक/बीचक ढ़
222.तहिं/तहिँ/ तञि/ तैं
223.कहिं/कहीं
224.तँइ/ तइँ
225.नँइ/नइँ/ नञि
226.है/ हइ
227.छञि/ छै/ छैक/छइ
228.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
229.आ (come)/ आऽ(conjunction)
230. आ (conjunction)/ आऽ(come)
231.कुनो/ कोनो
English Translation of Gajendra Thakur’s (Gajendra Thakur (b. 1971) is the editor of Maithili ejournal “Videha” that can be viewed at http://www.videha.co.in/ . His poem, story, novel, research articles, epic – all in Maithili language are lying scattered and is in print in single volume by the title “KurukShetram.” He can be reached at his email: ggajendra@airtelmail.in )Maithili Novel Sahasrabadhani by Smt. Jyoti Jha Chaudhary
Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor’s choice award from http://www.poetry.com and her poems were featured in front page of http://www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London.

SahasraBarhani:The Comet
translated by Jyoti
When Nand saw the advertisement of the Mahabharata in the television he asked his wife, “Why cannot we see Mahabharata in our TV?” His wife replied, “We only have DD1. Someone in the upper floor could see DD Metro because his son bought him a machine worth 300 rupees. That machine when attached to the TV avails DD Metro channel. Mahabharat is telecasted in that channel. Why don’t you buy that machine with your next salary to complement the TV given by our son?”
Nand disagreed, “That will be given by him who gave this TV”
When Aaruni came to know about that he laughed. He arranged the machine in next day and when Nand watched Mahabharata in next week end then everyone was very happy. Aaruni went out of Patna for arms training in that month. Durga Puja was in that one month’s period of training. That was the first time when Aaruni’s fathere had not visited village in Durga Puja. Aaruni also came to Patna in a weekend within the festive season of Durga Puja. It was Sunday. Mahabharata was being telecasted in TV. Aaruni had only one friend. Aaruni was out with him without eating any thing. He returned with his friend. Mother served both of them food.
“Did father have lunch?” he asked his mother.
“Yes, it is three o’clock now. He is taking nap after watching Mahabharata and having lunch. I must give him tea otherwise he will not wake up.”
Aaruni couldn’t eat more than two three spoon. His friend asked him that what the reason was.
“I don’t know. I am not feeling good”, he replied.
“You have to go for training tomorrow so you are worried”, his friend consoled him.
“Don’t know”.
Meanwhile some sound came from inside and everyone ran towards him.
“What happened mother?”
“I gave him tea and he is not getting up. Earlier he used to get up as soon as tea time was announced.”
His body was stretched and senseless.

(continued)

महत्त्वपूर्ण सूचना (१):महत्त्वपूर्ण सूचना: श्रीमान् नचिकेताजीक नाटक “नो एंट्री: मा प्रविश” केर ‘विदेह’ मे ई-प्रकाशित रूप देखि कए एकर प्रिंट रूपमे प्रकाशनक लेल ‘विदेह’ केर समक्ष “श्रुति प्रकाशन” केर प्रस्ताव आयल छल। श्री नचिकेता जी एकर प्रिंट रूप करबाक स्वीकृति दए देलन्हि। प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड (ISBN NO.978-81-907729-0-7 मूल्य रु.१२५/- यू.एस. डॉलर ४०) आऽ पेपरबैक (ISBN No.978-81-907729-1-4 मूल्य रु. ७५/- यूएस.डॉलर २५/-) मे श्रुति प्रकाशन, १/७, द्वितीय तल, पटेल नगर (प.) नई दिल्ली-११०००८ द्वारा छापल गेल अछि। ‘विदेह’ द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर १.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। संप्रति मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोश-खण्ड-I-XVI. लेखक-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा, दाम- रु.५००/- प्रति खण्ड । Combined ISBN No.978-81-907729-2-15 e-mail: shruti.publication@shruti-publication.com website: http://www.shruti-publication.com
महत्त्वपूर्ण सूचना:(२). पञ्जी-प्रबन्ध विदेह डाटाबेस मिथिलाक्षरसँ देवनागरी पाण्डुलिपि लिप्यान्तरण- श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आऽ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत। पञ्जी-प्रबन्ध (डिजिटल इमेजिंग आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण)- तीनू पोथीक संकलन-सम्पादन-लिप्यांतरण गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा द्वारा ।
महत्त्वपूर्ण सूचना:(३) ‘विदेह’ द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल जा’ रहल गजेन्द्र ठाकुरक ‘सहस्रबाढ़नि'(उपन्यास), ‘गल्प-गुच्छ'(कथा संग्रह) , ‘भालसरि’ (पद्य संग्रह), ‘बालानां कृते’, ‘एकाङ्की संग्रह’, ‘महाभारत’ ‘बुद्ध चरित’ (महाकाव्य)आ ‘यात्रा वृत्तांत’ विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। – कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ आ २ (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)- गजेन्द्र ठाकुर
महत्त्वपूर्ण सूचना (४): “विदेह” केर २५म अंक १ जनवरी २००९, ई-प्रकाशित तँ होएबे करत, संगमे एकर प्रिंट संस्करण सेहो निकलत जाहिमे पुरान २४ अंकक चुनल रचना सम्मिलित कएल जाएत।
महत्त्वपूर्ण सूचना (५):सूचना: विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary. विदेहक भाषापाक- रचनालेखन स्तंभमे।
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उपन्यास

मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00

कहानी-संग्रह

रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 70.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 90.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 90.00

शीघ्र प्रकाश्य

आलोचना

इतिहास : संयोग और सार्थकता : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

हिंदी कहानी : रचना और परिस्थिति : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

साधारण की प्रतिज्ञा : अंधेरे से साक्षात्कार : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक

बालकृष्ण भट्ïट और आधुनिक हिंदी आलोचना का आरंभ : अभिषेक रौशन

सामाजिक चिंतन

किसान और किसानी : अनिल चमडिय़ा

शिक्षक की डायरी : योगेन्द्र

उपन्यास

माइक्रोस्कोप : राजेन्द्र कुमार कनौजिया
पृथ्वीपुत्र : ललित अनुवाद : महाप्रकाश
मोड़ पर : धूमकेतु अनुवाद : स्वर्णा
मोलारूज़ : पियैर ला मूर अनुवाद : सुनीता जैन

कहानी-संग्रह

धूँधली यादें और सिसकते ज़ख्म : निसार अहमद
जगधर की प्रेम कथा : हरिओम

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अंतिका प्रकाशन
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श्रुति प्रकाशनसँ
१.पंचदेवोपासना-भूमि मिथिला- मौन
२.मैथिली भाषा-साहित्य (२०म शताब्दी)- प्रेमशंकर सिंह
३.गुंजन जीक राधा (गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित)- गंगेश गुंजन
४.बनैत-बिगड़ैत (कथा-गल्प संग्रह)-सुभाषचन्द्र यादव
५.कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ आऽ २ (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)- गजेन्द्र ठाकुर
६.विलम्बित कइक युगमे निबद्ध (पद्य-संग्रह)- पंकज पराशर
७.हम पुछैत छी (पद्य-संग्रह)- विनीत उत्पल
८. नो एण्ट्री: मा प्रविश- डॉ. उदय नारायण सिंह “नचिकेता”
९/१०/११ ‘विदेह’ द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर १.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। संप्रति मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोश-खण्ड-I-XVI. लेखक-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा, दाम- रु.५००/- प्रति खण्ड । Combined ISBN No.978-81-907729-2-15 ३.पञ्जी-प्रबन्ध (डिजिटल इमेजिंग आऽ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण)- संकलन-सम्पादन-लिप्यांतरण गजेन्द्र ठाकुर , नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा द्वारा ।
श्रुति प्रकाशन, रजिस्टर्ड ऑफिस: एच.१/३१, द्वितीय तल, सेक्टर-६३, नोएडा (यू.पी.), कॉरपोरेट सह संपर्क कार्यालय- १/७, द्वितीय तल, पूर्वी पटेल नगर, दिल्ली-११०००८. दूरभाष-(०११) २५८८९६५६-५७ फैक्स- (०११)२५८८९६५८
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विदेह

मैथिली साहित्य आन्दोलन

(c)२००८-०९. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।(c) 2008 सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ’ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ’ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाक अनुवाद आ’ पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक हेतु ggajendra@videha.co.in पर संपर्क करू। एहि साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरी आ’ रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल। सिद्धिरस्तु

विदेह २९ म अंक ०१ मार्च २००९ (वर्ष २ मास १५ अंक २९)-part-i

In विदेह २९ म अंक ०१ मार्च २००९ (वर्ष २ मास १५ अंक २९)-part-i on अप्रैल 4, 2009 at 4:55 पूर्वाह्न

विदेह २९ म अंक ०१ मार्च २००९ (वर्ष २ मास १५ अंक २९)-part-i

एहि अंकमे अछि:-
१.संपादकीय संदेश
२.गद्य
२.१. कथा-सुभाषचन्द्र यादव-कुश्ती
२.२.भाग रौ (संपूर्ण मैथिली नाटक)-लेखिका – विभा रानी (आगाँ)
२.३. सुशांत झा- मिथिला मंथन
२.४. आ ओ मारलि गेलि !— बृषेश चन्द्र लाल
२.५. जयकान्त मिश्रपर विशेष १.डॉ. गंगेश गुंजन २. विद्या मिश्र
२.६. विवेचना: सुभाषचन्द्र यादवक कथा संग्रह- बनैत-बिगड़ैत गजेन्द्र ठाकुर होलीक संदेश डा. चन्देनश्वंर शाह

३.पद्य
३.१. वसंती दोहा- कुमार मनोज कश्यप
३.२. सतीश चन्द्र झा- हमर स्वतंत्रता
३.३.ज्योति- एक नाैकरी चाही
३.४.जंगल दिस !- रूपेश कुमार झा ‘त्योंथ’
३.५. पंकज पराशर -समयोर्मि
३.६.सुबोध ठाकुर-हम गामेमे रहबइ

४. बालानां कृते-मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति झा चौधरी
५. भाषापाक रचना-लेखन – पञ्जी डाटाबेस (आगाँ), [मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]
६. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS (Festivals of Mithila date-list)-
The Comet-English translation of Gajendra Thakur’s Maithili Novel Sahasrabadhani by jyoti

विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( तिरहुता आ देवनागरी दुनू लिपिमे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Tirhuta and Devanagari versions both ) are available for pdf download at the following link.
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक तिरहुता आ देवनागरी दुनू रूपमे
Videha e journal’s all old issues in Tirhuta and Devanagari versions
१.संपादकीय
मैथिलीक सभसँ प्रतिष्ठित प्रबोध सम्मान 2009 क लेल श्री राजमोहन झाकेँ स्वास्ति फाउंडेशन द्वारा पटनाक विद्यापति भवनमे 22 फरबरी 2009 केँ 4 बजे अपराह्नसँ शुरु भेल कार्यक्रममे देल गेल। एहिमे स्मृति चिन्ह आ एक लाख टाका देल जाइत अछि। श्री भीमनाथ झा, उदय नारायण सिंह, विजय बहादुर सिंह, अभय नारायण सिंह आ ढेर रास गणमान्य लोक एहि अवसरपर उपस्थित छलाह।
रेडियो कार्यक्रम हेल्लो मिथिला, जकरा विषयमे बहुतोगोटेक सुझाव रहैत छलनि जे ई सभतरि सुनल जा सकबाक कोनो ब्योँत धराबी। से धीरेन्द्रजी सहर्ष जानकारी देलथि जे आब ई कार्यक्रम इन्टरनेटपर अनलाइन उपलब्ध भऽ गेल अछि।

सामाजिक तथा सांस्कृतिक विषयवस्तुपर केन्द्रित हेल्लो मिथिला कार्यक्रम प्रत्येक शनि कऽ नेपाली समयानुसार राति ९.३० बजेसँ ११ बजेधरि आ राजनीतिक विषयवस्तुपर केन्द्रित चौबटिया कार्यक्रम प्रत्येक सोम कऽ राति १० सँ ११ बजेधरि प्रसारण होइत छैक। स्मरणीय अछि जे नेपाली समय भारतीय समयसँ १५ मिनट पाछाँ अछि। ई कार्यक्रम इन्टरनेटपर http://www.kfm961.com पर सुनल जा सकैत अछि। शनि दिन हम एकरा सुनलहुँ बिना कोनो व्यवधानक।

दिनांक 16.02.2009 कें मैथिली मंडनक तत्वावधान में ‘मैथिली युवा लेखन दशा आ दिशा’ विषय पर शहीद भगत सिंह कॉलेज, नई दिल्ली मे एक टा संगोष्ठीक आयोजन कयल गेल। एहि अवसर पर देशक विभिन्न भाग स’ आयल टटका पीढीक सक्रिय भागीदारी रहल। बनारस से आयल ‘नवतुरिया’ केर संपादक अरुणाभ, कटिहार (बिहार) से रोहित झा, दिल्ली से अलोक रंजन, मिथिलेश कुमार राय, फिरदौस, धर्मव्रत चौधरी, देवांशु वत्स, सेतु कुमार वर्मा प्रमुख वक्ता छलाह। ऑडियो कोंफ्रेंसिंग के जरिये गाजियाबाद से मैथिली आ हिंदीक प्रख्यात कथाकार – संपादक अनलकांत ( गौरीनाथ ) आ सहरसा सं चर्चित युवा कथाकार – कवि अखिल आनंद सभा स’ जुड़लैथ. संगोष्ठीक संचालन युवतम रचनाकार कुमार सौरभ केलथि।

संगहि “विदेह” केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ २७ फरबरी २००९) ७७ देशक ७५८ ठामसँ १,६०,५१७ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
अपनेक रचना आ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।
गजेन्द्र ठाकुर, नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in ggajendra@yahoo.co.in
२.संदेश
१.श्री प्रो. उदय नारायण सिंह “नचिकेता”- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल “विदेह” ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।
२.श्री डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह|
३.श्री रामाश्रय झा “रामरंग”(आब स्वर्गीय)- “अपना” मिथिलासँ संबंधित…विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।…शेष सभ कुशल अछि।
४.श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका “विदेह” केर लेल बाधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
५.श्री प्रफुल्लकुमार सिंह “मौन”- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका “विदेह” क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
६.श्री डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि “विदेह”क सफलताक शुभकामना।
७.श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
८.श्री विजय ठाकुर, मिशिगन विश्वविद्यालय- “विदेह” पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
९. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका ’विदेह’ क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१०.श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका ’विदेह’ केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
११.डॉ. श्री भीमनाथ झा- ’विदेह’ इन्टरनेट पर अछि तेँ ’विदेह’ नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।
१२.श्री रामभरोस कापड़ि भ्रमर, जनकपुरधाम- “विदेह” ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत से विश्वास करी।
१३. श्री राजनन्दन लालदास- ’विदेह’ ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक एहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अ‍ंक जखन प्रि‍ट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।
१४. डॉ. श्री प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका “विदेह” प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भ’ गेल।
२.गद्य
२.१. कथा-सुभाषचन्द्र यादव-कुश्ती
२.२.भाग रौ (संपूर्ण मैथिली नाटक)-लेखिका – विभा रानी (आगाँ)
२.३. सुशांत झा- मिथिला मंथन
२.४. आ ओ मारलि गेलि !— बृषेश चन्द्र लाल
२.५. जयकान्त मिश्रपर विशेष १.डॉ. गंगेश गुंजन २. विद्या मिश्र
२.६. विवेचना: सुभाषचन्द्र यादवक कथा संग्रह- बनैत-बिगड़ैत गजेन्द्र ठाकुर होलीक संदेश डा. चन्देनश्वंर शाह

कथा
सुभाषचन्द्र यादव-कुश्ती
चित्र श्री सुभाषचन्द्र यादव छायाकार: श्री साकेतानन्द
सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक, जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल- मधुबनी। आरम्भिक शिक्षा दीवानगंज एवं सुपौलमे। पटना कॉलेज, पटनासँ बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्लीसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। १९८२ सँ अध्यापन। सम्प्रति: अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। मैथिली, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, स्पेनिश एवं फ्रेंच भाषाक ज्ञान।
प्रकाशन: घरदेखिया (मैथिली कथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेक अनुवाद प्रकाशित।
भूतपूर्व सदस्य: साहित्य अकादमी परामर्श मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकारक सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।

कुश्ती
भोर धरि पता नहि चलल । ओ रातिये भऽ गेल छल । उठलाक कनेक कालक पछाति लुंगी पर नजरि गेल । कहियो – कहियो सपना देखलाक बाद भऽ जाइत छैक, तेहने लागल । लूंगी दू – तीन ठामसँ सूखिकेँ कड़ा भऽ गेल छलैक। सपना पर गौर कयलाक बादो कोनो ओहन सपना मोन नहि पड़ल । ओहुना ओकरा भेलापर निन्न खुजि जाइत छैक । निन्न राति खन नहि खुजल छल। तँइ कनेक आश्चर्य तखन धरि बनल रहल जखन धरि ठेहुन पर नजरि नहि गेल । पहिलो बेर एहिना भेल छल । सियाह दाग उभरलाक बाद पानिक गिरब आ फेर एकटा पैघ सन घाव ।
ओहि बेर दर्द नहि भेल छल । पपड़ीक कैक टा तह जमि कऽ उखड़ैत गेलैक आ करीब सप्ताहक भीतरे ठीक भऽ गेलैक ।
लुंगी पर पड़ल दागकेँ हम नुकबैत रहलहुँ । हम नहि चाहैत छलहुँ लोक एहन – ओहन पूछि देअय ।
दू-तीन बजे धरि हमर एकटा दोस्त आबि गेल । ओ हमरा संग लऽ कऽ हटिया जेबाक जिद करय लागल जे पछिला किछु दिनसँ हप्तामे दू बेर लगैत छलैक । ओहि ठाम ग्राम पंचायत दिससँ कुश्तीक आयोजन होइत छलैक। हटियाक प्रगतिक सभ टा दारोमदार कुश्तिये पर निर्भर करैत छलैक। लोकक एहन धारणा बनि गेल छलैक। ई बादमे मालूम भेल जे हटिया आरंभ करबा लेल गामक लोकक बीच खेतक गाछ लेल एकटा पैघ कुश्ती भऽ चुकल छलैक ।
कुश्ती बड़ दिलचस्प आ मजेदार छलैक । कइएक टा जोड़ामे गोटक एहन निकलिये अबैत छलैक जकर कलाबाजी पर लोक थपड़ी पाड़ैत छल । जनी – जातियो के एकाध झुंड मर्द सभ सँ फराक रहबाक कोशिश करैत कुश्तीक मजा लऽ रहल छलैक । कुश्ती करैत-करैत एक टा जोड़ा आगाँ बैसल लोक सभ पर अचानक खसि पड़लैक । लोक पाछू दिस पड़ाय लागल । हमर ध्यान दोसर दिस छल । समय पर सावधान नहि भऽ सकलहुँ । ठेहुनपर जोरसँ चोट लागि गेल आ हम खसैत-खसैत बचलहुँ। हम चिकरिकऽ भीड़केँ गरियाबऽ लगलहुँ । कपड़ा खराप भऽ गेल छल । घावसँ खून बहैत छल । दोस्त सहानुभूति देखओलक आ हेल्थ सेंटर पर चलबाक सुझावदेलक ।
‘एखन क्यो हेतैक ?’— ई पुछैत हमर सभटा तामस हेल्थ सेंटर पर केन्द्रित भऽ गेल । ओ सेंटर बन्ने रहैत छलैक । दू टा कर्मचारी छलैक, जे सप्ताहमे कोनो एक दिन चल अबैत छलैक आ फेर अपन –अपन गाम । जरूरतमंद लोक केँ भरि सप्ताह हेल्थ सेंटरक चक्कर लगबऽ पड़ैत छलैक किएक तँ ओ सभ कहियो मिनिस्टरक आकस्मिक दौड़ा जकाँ आबि सकैत छलैक ।
आइयो हम ओकर खुजल रहबाक उमेद लऽ कऽ नहि चलल छलहुँ । तँइ ताला देखि बेसी निराशा नहि भेल । सेंटरक उपयोगितापर गौर करैत क्यो लकड़ीक बोर्ड, जे सेंटरक अस्तित्वक प्रमाण छलैक , केँ उनटि देने छलैक ।
हमसभ घुरि रहल छलहुँ तखने देबालक पाछुसँ कोनो चीज खसबाक आवाज आयल । एक टा छौड़ा घर लऽ जेबा लेल ईंट जमा कऽ रहल छल । छौंड़ा पहिने कनेक सकपकायल, फेर सम्हरि के दाँत चियारैत सफाइ देबऽ लागल ।
घावसँ खूनक बहब बन्न भऽ गेल छलैक , मुदा नस फूलय लागल छल । साँझ धरि माथमे एकटा भारीपनक अनुभव हुअय लागल । देह टूटय लागल जेना बुखार अयबासँ पहिने होइत छैक । फेर कँपकँपी शुरू भऽ गेल । हम सीरक ओढ़ि बिछौनपर पसरि गेलहुँ । दोस्त अखनो घूर लग बैसले छल । फेर आरो लोकसभ आबि गेल छलैक । हुनका सभक बीच कोनहु गप्प कतहुसँ शुरू भऽ जाइत छलैक । कनेक पहिने हमर घावक बात शुरू भेल छलैक आ आब सेंटरक पछारी चलऽवला पालिटिक्सक पर्दाफास भऽ रहल छलैक। बेसी हल्ला-गुल्लाक कारणे हुनका सभपर हम खौंझाय लागल छलहुँ । हम अपन मूड़ी सीरक तर कऽ लेलहुँ आ काछसँ ऊपर बनल गिल्टी टोबऽ लगलहुँ ।
भोरे उठलापर ताजगीक अनुभव भेल । घावपर कपड़ा सटि गेल छलैक । घाव काल्हिए सन ताजा छलैक । छोट भाय तकलीफ दिया पूछिकेँ चलि गेल । छोट भाय् मायसँ घावक मादे किछु नहि कहने छलै । बता देने रहितै तँ माय परेशान भऽ कइएक बेर हमरा लग आबि गेल रहैत । ओना हम घावकेँ लऽ कऽ कनेको चिन्तित नहि छलहुँ । सोचि नेने छलहुँ जे पहिल बेर जकाँ सहजे ठीक भऽ जेतैक । कपड़ापर दाग उभरि अबैत छलैक आ ओइपर माछी भिनकऽ लगैत छलैक । हम मात्र अहीसँ परेशान रही ।
दुपहर धरि अड़ोस-पड़ोसक लोकसभ दाग देखि पूछताछ कयलक । हमरा क्रमिक रूपसँ घावक पूरा हुलिया दिअय पड़ल । लोकसभ एहने स्वभाववला घावक कइएक टा दृष्टान्त देलक । घावसँ सम्बद्ध व्यवक्ति सभक पूरा खिस्सा सुनौलक फेर अपन – अपन अनुभवक अनुकूल आ प्रमाणित निदान बतौलक । किछु सहानुभूति प्रकट कयलक , किछु कँ घृणा भेलै आ किछु तटस्थ भाव लेने चलि गेल । अपनासँ छोट उमिरक कइएक गोटेकेँ हम टारि देलियै ।
खाइत काल हमर छोट भाय संगहि बैसि गेल । एक तेहाइ हिस्सा खा लेबा धरि एक टा दाग फेर उभरि अयलैक आ माछी लागय लगलैक । छोट भायक नजरि प्रत्येक आध मिनटपर ओहीठाम चल जाइत छलैक । कनेक काल बाद ओकर खेबाक गति एकदम मंद पड़ि गेलै आ हमरा बुझायल जे ओकरा रद्द भऽ जेतै । हमरा पछतावा भेल जे ओ किएक हमरा संगे बैसि गेल । हम निर्णय लेलहुँ जे घाव रहबा धरि एहन समय संगे नहि बैसब । ओ बड्ड मुश्किलसँ ओहि भावकेँ मेटओलक । फेर ठंढ़ायल आत्मीय स्वरमे होमियोपैथ डाक्टर लग जेबा लेल कहलक । बहुत पहिने एकटा बीमारीक दौरान एलोपैथीपरसँ ओकर विश्वास खतम भऽ गेल छलै। ओना हमर एकटा मजकियल दोस्त ओकरे सोझाँ होमियोपैथीपर नमहर लेक्चर दैत कहने छलै जे एहि पैथीक पाउडरमे दबाइ कम पाइ बेसी चलैत छैक ।
खाकऽ उठैत-उठैत हमर घावक मादे जननिहारक संख्या किछु आर बढ़लैक । किछु गोटे घाव देखाबऽ लेल कहलक । एहि काजमे हमरा सभसँ बेसी हिचकिचा – हटि होइत छल । मायकेँ जाहि समय सूचना भेटलै, तखने हमर छोट भाय ककरोसँ झगड़ा कऽ रहल छल। माय बेसी ध्यान नहि दऽ सकल । कर्पूर आ नारियरक तेल लगाबऽ लेल कहि जिम्हर भाय झगड़ा करैत छल, ओम्हरे जाय लगल । भाय आब गारिपर उतरि लायल छल—’सार, हटियाक सभ कुश्ती घुसाड़ि देब !’
हमहूँ तेजीसँ ओम्हरे दौड़लहुँ । मालूम भेल आरि छाँटि-छाँटि करीब बीत भरि खेत ओ अपन खेतमे मिला लेने छलैक आ आब नापियो मानय लेल तैयार नहि । हम भायकेँ शांत कयलहुँ। बहुत राति धरि एहि तरहक कतेको समस्या पर गप्प –सप्प होइत रहलैक जाहिसँ हमरासभकेँ निपटबाक अछि । माय हमरासँ शिकाइत करैत रहल जे हम बहुत लापरवाह भऽ गेल छी ।
बिछौनपर जाकऽ हमरा ध्यानमे आयल जे दुपहरियासँ एखनधरि सभ चर्च घावसँ हटिकऽ होइत रहलैक अछि आ एकाएक हम एक तरहक आरामक अबुभव करय लगलहुँ ।
फेर सोचय लगलहुँ हम एहि कोठलीमे सभ कपड़ा उतारि नग्न भऽ जाइ, घावक सभटा चेन्ह मेटा जाइक, अंग-प्रत्यंग निर्विकार आ सुन्द र देखाय लागय । मुदा तुरत्ते एहन हैब असंभव छलैक । आस्ते—आस्ते हम निन्नमे डूबैत गेलहुँ । हमरा लागल जेना हम कइएक गोटासँ लड़ि-झगड़ि रहल छी । ठेहुनपर ओहिठामसँ खून बेसी मात्रा मे निकलि रहल अछि ।
भोरमे घाव फेर ओहिना छलैक । हम ठीक ढँगसँ किछु तय नहि कऽ पबैत अलहुँ जे पहिने गामक सभटा झगड़ासँ निपटि ली वा घावसँ । एहि अनिर्णयसँ उत्पन्न थकनीक कारण हम बहुत सुस्त भऽ केँ पड़ल छलहुँ । माय फुर्तिआह डेग उठौने हमरा लग आयल आ घाव ओहिना ताजा देखि तमसाय लागल । हम कहलियै—’गामक झगड़ा…’ वाक्य पूरा हेबासँ पहिने माय बाजव शुरू कऽ देलक –’बेराबेरी निपटि लेब ! तोँ पहिने घावक इलाज करा आबह ।’
हम झपटि कऽ अंगा उठओलहुँ आ विदा भऽ गेलहुँ ।
भाग रौ
(संपूर्ण मैथिली नाटक)- (आगाँ)
लेखिका – विभा रानी

पात्र – परिचय

मंगतू
भिखारी बच्चा 1
भिखारी बच्चा 2
भिखारी बच्चा 3
पुलिस
यात्री 1
यात्री 2
यात्री 3
छात्र 1
छात्र 2
छात्र 3
पत्रकार युवक
पत्रकार युवती
गणपत क्क्का
राजू – गणपतक बेटा
गणपतक बेटी
गुंडा 1
गुंडा 2
गुंडा 3
हिज़ड़ा 1
हिज़ड़ा 2
किसुनदेव
रामआसरे
दर्शक 1
दर्शक 2
आदमी
तांबे
स्त्री – मंगतूक माय
पुरुष – मंगतूक पिता

भाग रौ
(संपूर्ण मैथिली नाटक)

अंक : 2
दृश्य : 2

(मंगतूक स्थान – भोरक बेला – मोटर गाड़ी स’ एक गोट सेठ उतरैत अछि – गाड़ीक दरवाजा फोलब, बंद करबाक, जेब स’ टाका निकालबाक अभिनय.. टाका निकालिक’ ओ मंगतू दिस-बढ़ैत अछि..)
आदमी : उठ, उठ, ऐ भाई.. भोर भ’ गेलै।
(मंगतू ओकरा दिस प्रश्नाकुल नजरि स’ देखैत अछि। बाजैत किछु नञि अछि..)
ई ले – एकावन टाका। राखि ले।
मंगतू : एकावन टाका? मुदा कियैक?
आदमी : आई हमर बाउजीक बरखी अछि। ब्राह्मण अथवा दरिद्रनारायण भोजन करेबाक फुर्सति अछि नञि तैं, आई पाँच लोक के दान क’ देइत छियै।
मंगतू : साब, हमर एक गोट विनती अछि.. साब, ई पाई अहाँ राखि लिय’.. आ एकरा बदला मे हमरा कोनो काज द’ दिय.. पतियाउ साहब जी, हम काज क’ सकै छी.. ई हमर हाथ देखियौ.. गोर देखू.. (विचित्र तरीका स’ हाथ-गोर चलबैत अछि) साहेब जी.. हमरा अई नरक स’ निकालू साहेब जी.. हमरा काज दिय’.. केहनो.. पैघ-छोट.. अहाँ के शिकायतक मोका नञि देब साहेब जी। (ओकर पएर-पकड़बाक अभिनय करैत अछि। आदमी घबड़ाक’ पराएत अछि। गाड़ी मे बैसबाक, स्टार्ट करबाक अभिनयक संग खौंझाएल स्वर में..)
आदमी : हुंह! काज चाही । देह न दशा, मुर्गी प्यारे फँसा। नीक-नीक लोक के त’ काज भेटै नञि छै.. सभ ठॉ त’ भर्ती पर रोक लागल छै.. चुनावक समय मे अखबार मे नौकरीक विज्ञापन भरि.. तकरा बाद फुस्स! सरकारक आमदनिए छै। ई विज्ञापन स’.. डीडी, पे-ऑर्डर.. एकरा देखियौ.. काज क’ लेब.. कोनो काज.. जहन कोनो काज कइए लेबें त’ माँग भीख! ईहो त’ काजे छै आ बड्ड मेहनति आ हिम्मति बला काज छै।
(गाड़ी चलेबाक अभिनय संगे मंच स’ बाहर। बाहर जाइत काले मंगतू पर नजरि..)
मंगतू : चलि गेलाह। सब चलि जाइत अछि। भीखक एक गोट अठन्नी, रूपैया फेंकि क’.. बस! साधे रहि गेल जे किओ हमरो सहारा दितियैक – अपना पैर पर ठाढ़ हेबा मे.. लोक आओर पतियाइ कियै नञि छथि जे हम ठाढ़ भ’ सकै छी.. लिख-पढ़ि सकै छी.. ई देखू (हाथ स’ जमीन पर किछु लिखबाक प्रयास करैत अछि) .. आ.. आ.. ई किसुनदेव आ रामआसरे भाई त’ कहैत छथि जे हमर दिमागो बड्ड तेज अछि (कनेक मुस्काइत अछि।) तैं त’ हुनकर बड़का साहेब हमरा लग आएल छलाह.. बाप रौ, की सूट-बूट, की शान.. (मंगतू पर स’ फेड आउट)
(फ्लैश बैक आरंभ)
(एक अधेड़, रोबदाब बला व्यक्ति.. नाम तांबे.. मंच पर बेचैनी स’ एम्हर-ओम्हर बूलि रहल छथि। रामआसरेक प्रवेश)
राम. : साहेब जी?
तांबे : (अनसोहांत स्वर मे) yes?
राम. : साहेब जी किछु पिरीशानी मे बूझा रहल छथि।
तांबे : परेसान नञि होइ त’ की राग मल्हार गाबी? सभटा डाटा कलेक्ट कएल छल। पता नञि कोना हार्ड डिस्क सेहे उड़ि गेल।
राम. : साहेब जी, कम्पलेन नञि लिखाओल की?
तांबे : एंट्री त’ क’ देलहुँ। मगर तकरा स’ की? इंजीनियर त’ काल्हिए आओत। आ मैटर हरि हालति मे आइए देबाक अछि। तैं त’ लेट बइसल छी.. मुदा.. (माथ पकड़ि लेइत अछि।)
राम. : साहेब जी.. छोट मुंह पैघ गप्प.. अनसोहांत सन सेहो.. मुदा नीचाँ.. छै ने.. ओ लोथ.. मंगतू.. भ’ सकैय’ ओ बता दियए..
तांबे : (एक नजरि ओकरा देखि ठठा क’ पेट पकड़ि क’ ठठाएत अछि।) ऊ लोथ भिखमंगा, ऊ हमरा डाटा बताओत? रौ, तोहर दिमाग दुरूस्त त’ छौ ने! जे डाटा कलेक्ट कर’ मे हमरा एतेक समय लागल, एतेक – एतेक किताब कंसल्ट कर’ पड़ल, ओ ओहि अनपढ़, लोथ, भिखमंगा..
राम. : साहेब जी, कम्पूटर त’ अहाँ के अहिना.. इंजीनियर काल्हिए आओत। काज करबाक अछिए अहाँ के। आर कोनो उपाय त’ अछि नञि! त’ एक बेर टराइ करबा मे हर्जे की! हमरा ओना विश्र्वास अछि जे ओ अहाँक अबस्से बता देत।
तांबे : कोन आधार पर तों कहि रहल छें एना?
राम. : ओ पढ़’ जानै छै। हमहीं आ किसुनदेव मिलिक’ ओकरा अच्छर ज्ञान करैलियै। ओकर लगन आ मेहनति.. आई ओ अखबारक नाम स’ ल’क’ अंतिम पन्ना आ संपादकीय धरि पढ़ि जाइत अछि। सभकिछु सिलेट पर लिखल लाइन जकाँ मोन रहैत छै ओकरा। तैं हम.. बाकी त’ अहाँक इच्छा..।
(फ्लैशबैक समाप्त। प्रकाश मंगतू पर।)
मंगतू : रामआसरे कहला सन्ते तांबे साहेब आएल छलाह! (हंसैत) बार रौ बाप! की गुमान मे फूलल छलाह। हमरा ल’ग ठाढ़ हेबाक विवशता, मुंह पर बहुत किछु जनबाक दर्प, जेना दुनियाक संपूर्ण ज्ञानक गठरी हुनके लग हुअए, हमरा लेल हुनक ऑखि मे लहराइत घिरनाक समुंदरि, संगही एकटा उपकारक भाव सेहो, जे देख – हमही छी, जे ऐलौं तोरा लग.. ले बिलइया के, हौ जी, ऐलौं त’ कोनो हमरा लेल.. एलौं अहाँ अपना लेल.. ऐलौं, पूछलौं, हमरा मोन छल, बतेलौं, अहाँ लिखलौं, छपेलौं, आ बिसरि गेलौं। एकटा धन्यवादो धरि नञि। रामआसरे भाइ लेख देखाओल.. मुदा पढ़ि नञि सकलहुँ – अंग्रेजी सन्ता। हमर ज्ञानक उपयोग कोना भेलै.. ई हमरे नञि पता.. इएह त’ अछि हमर तकदीर.. (विचित्र हँसी हँसैत अछि.. पत्रकार-युवक-युवतीक प्रवेश। ओकरा हँसैत देखि थम्हि जाइत छथि।)
युवती : मुगतू? (मंगतूक हंसी थम्हि जाइत अछि।) की भेलौ? बड्ड हंसि रहल छे।
मंगतू : (कनेक सकुचाइत) जी.. ओ किछु नञि.. बस.. तांबे साहेब बला बात..
युवक : (रूक्ष स्वर मे) सुनल जे ओ तोरा लग आएल छलाह आ तों एकदम टेपरेकॉर्डर जकाँ चालू भ’ गेल छलें?
मंगतू : (ओकर रूक्षपन के लक्षित नञि करैत अपनही प्रवाह मे) त’ की करितियैक! एतेक बड़का साहेब! एतेक पिरीसान.. चांसे बूझल जाओ जे हमरा पता छल। – जे किछु पता छल, से सभ बता देलियइ.. देखलियइ हम लेख.. मुदा अंग्रेजी.. साब, अहाँ हमरा अंग्रेजी पढ़ब सिखा देब?
युवती : (मोन पारैत) हे सुनु, हम सभ एकरा पर स्टोरी केने छलहुँ ने?
युवक : अरे, ऊ त’ पुरान कथा भ’ गेलै। वंडरफुल एंड पावरफुल प्रोजेक्ट ।
युवती : एकरा किछु लाभ करेलहू की नञि?
युवक : माने? (ऑफिस दिस बढ़ैत अछि।)
युवती : (अनुसरण करैत) माने ई, जे ओहि समय गप्प भेल छल जे पेमेंट भेलाक बाद अहाँ ओकरा किछु देबै.. जस्ट फॉर ए नाइस जेस्चर.. मुदा, अहाँ त’ हमरो किछु नञि बताओल।
युवक : अहँू त’! ओ की केलकई जे ओकरा पेमेंट करियई?
युवती : वएह त’ धुरी छल। नञि बतेतियैक त’ अहाँ काज क’ सकै छलहुँ? नञि न! आब किछु ओहि गरीब के.. (दुनू ऑफिसक गेट धरि पहुँचइत छथि। रामआसरे आ किसुनदेव दुनूक गप्प सुनै छथि।) काज निकलि गेल त’ बस, मुंह फेरि लेलहूँ!
युवक : जमाने इएह छै डार्लिंग। देखलहुँ मि. तांबे के.. सभटा काज करबा लेलन्हि मुदा नामोक क्रेडिट नञि..
युवती : अहँू सएह बन’ चाहै छी त’ बनू.. मुदा हमर मानधन हमरा दिय’! हम ओही मे स’ ओकरा..
राम. : नमस्कार साहेब।
युवक : नमस्कार नमस्कार।
किसुन: कोनो गंभीर गप्प सर?
युवक: उंहूं, किच्च्छु नयिं।
युवती : किछु कियैक नञि? अरे, हम दुनू ओहि मंगतू पर काज करै छलहुँ। तहन ई गप्प भेल छल जे पाइ भेटला पर हम किछु ओकरो देबै। मुदा.. ई त’ हमरो पाइ घोखि गेलैन्हि..
युवक : (जेना भेद खुलि गेल हुअए) ओके बाबा ओके। अहांक पाइ अहां के द’ देब। ओकरो द’ देबै.. आब त’ खुश? (फसफुसाइत) सभके सभ किछु कहब जरूरी छै की? (बाजैत भीतर चलि जाइत छथि। युवती पहिने जाइत अछि। पाछा स’ युवक अपन तर्जनी माथ पर ल’ जाक घुमबैत अछि — माने युवती कनेक क्रैक अछि।)
राम. : देखल भइया ई बड़का-बड़का लोकक खेल! पत्रकार छथि ई सभ। जनताक पैरोकार। जनताक रच्छक। रच्छक खुदे भच्छक.. हाँक’ लेल कहू त’ एकदम सूरूजे पर, देब’ बेर मे पद-पद पाद’ लगताह! हजारो टाका झिंटने हेतै मंगतुआक नाम पर। आ ओकरे किछु देबाक नाम पर ..
किसुन : सटक सीताराम! सभ एक्के थरियाक भांटा रो भाइ!
राम. : ऊ तांबे साहेब! ओकरे मदति स’ ओ लेख लिखलन्हि। छपबो केलै। आब हमरा त’ अंग्रेजी, फंगरेजी अबै नञि अछि। हम पूछ’ गेलियै जे साहेब, अई मे मंगतूक कोनो जिकिर-उकिर..!
किसुन : की बाजलन्हि?
राम. : अरे, ओ तेहेन न आँखि गुरेरलन्हि जे एह -‘ई लेख है रामआसरे, इन्टरव्यू नहीं कि सबका नाम देते रहें।’ हम त’ तइयो ढीठ बनल बजलहुँ जे साहेब, ओकर कोनो भला भ’ जयतियन्हि। भिखमंगाक जिनगी स’ ओकरा छुटकारा भेटि जइतियैक। ओ फेर आँखि तरेरलन्हि। हम फेरो थेथर जकाँ बाजलियैक जे ठीक छै, नाम नञि देलियै त’ किछु दामे द’ दियऊ। लगतै ओकरो जे हँ, आई अपना दिमागक कमाई भेटलए.. सभ सार चोर अछि- ऊ तांबे, ई छौंड़ा.. काम रहला पर बाबू-भैया आ निकलि गेला पर दू-दू लात।
(पार्श्र्व स’ सोगबला धुन। प्रकाश मंगतू पर। ओ चिकरैत अछि)
मंगतू : किओ हमरा अई नरक स’ निकालि क’ ल जाऊ। रौ तकदीरक नाति, कत’ मुंह मरा रहल छें। देह नञि त’ तोहें नीक जकां रहितें हमरा लग। कोनो नीक, पाईबला घर मे देतें। माय-बाप लग। मुदा, जहन अपने माय-बाप अपन नञि भेल तहन..
(सोगबला धुन उत्सव धुन मे बदलि जाइत अछि। मंगतूक चेहरा फेड आउट होइत अछि। एक काल्पनिक लोकक आभास देइत लाल-नारंगी-पीयर रोशनी पसरइत अछि आ ओहि प्रकाश मे देखाइ पड़ैत अछि – एक गोट स्त्री, जकरा कोरा मे एकटा नवजात अछि। अन्य स्त्रीगण नाचि-गाबि रहल छथि!)
रूपैया मांगे ननदी लाल के बधाई
एके रूपैया मोरा ससुर के कमाई
अठन्नी ले लो ननदी लाल के बधाई
एके अठन्नी मोरा पिया के कमाई
ओ ना मैं दूँ ननदी लाल के बधाई
एक स्त्री : देखू भौजी। चान जइसन बेटा देलन्हि अछि हमर भैया अहाँ के। आब बेगर छत्तीस भरक डँड़कस के नञि मानब।
(सभ हंसैत छथि। स्त्री लजाइत अछि। पुरूषक प्रवेश। हँसैत-नचैत स्त्रीगण विदा भ’ जाइत छथि।)
पुरूष : राधा, की नाम राखब एकर?
स्त्री : (लजाइत) जे अहाँ कही।
पुरूष : हमर मानी त’ एकर नाम राखब चिरंजीवी। खूब पढ़ाएब, लिखाएब, कलक्टर बनाएब।
स्त्री : हमरा मानी त’ ओकरा पर अपन मर्जी नञि थोपी । अपना मर्जी स’ ओ जे बनय, डाक्टर कलक्टर, एक्टर..
पुरूष : अच्छा भई, हम त’ हुकुमक गुलाम छी। हुकुमक बेगम जे हुकुम देतीह, हुकुमक गुलाम बजा आनत (कोर्निश करैत अछि। स्त्री हंसैत अछि। पुरूष छेड़ैत अछि) गीत मे कहलियै – पिया के कमाई नञि देबै ननदि के, हमर बहीन के। ओ जीवित नञि छोड़ती अहाँ के! तहन? तहन हमर की हएत (आवाज रोमांटिक होइत अछि। स्त्रीक हंसी। अंधकार-प्रकाश मंगतू पर।)
मंगतू : एहेन माय-बाप हमर करम मे कत’? समाजक सामना करबाक हिम्मत नञि भेलै। अई समाज मे श्राप भोग’ लेल छोड़ि देलैन्हि। सोचल, जे अपने स’ अपन तकदीरक किताब लिखब, मुदा ऊ बकट्टा गुड्डी हमरे जिन्दगी के बकट्टा क’ गेल.. लोथ, लूल-लांगड. बनल ई जिनगी । मौगत की एकरा स’ अधलाह हेतै?.. मुदा मौगतो त’ नञि अबैत अछि। नञि घरक आसरा, नञि समाजक, नञि लोकक। कथी लेल जीब, ककरा लेल जीब, ई जीबाक कोनो अर्थ?
(मंगतू भोकासी पारि कान’ लागैत अछि। रामआसरे आ किसुनदेव ओकरा लग अबैत छथि।)
राम. : अपन इ ऑफिसे मे त’ कतेक विकलांग लोक काज करै छथि, भोइकर साहेब, लीना मैडम, सिन्हा जी.. मुदा .. एक दिस एहेन माय-बाप आ दोसर दिस ई समाज.. सभक फाटल मे आंगुर कर’ बला। रौ, तोरा कोन मतलब छौ किओ किछु करए। ककरो चैन स’ जीब’ नञि देतै ई समाज..
(रामआसरे आ किसुनदेव मंगतू के धैरज बंधबैत छथि । पार्श्र्व स’ कविता )
‘जिनगी जुआ अछि
सट्टा अछि, बजार अछि
ताश अछि, पत्ता अछि
रोशनीक बाढ़ि
चोन्हियाएल लोक
भीड़ अछि, एकान्त अछि
भोरक तारा विश्रान्त अछि
तारा टूटए नञि
आस छूटए नञि
(फेड आउट)

(अगिला अंकमे जारी)
——

मैथिली के ल क किछु असुविधाजनक प्रश्न…सुशान्त झा

कखनो क सोचैंत छी जे मैथिली भाषा और मिथिलांचलक विकास ओहि रुप मे किएक नहि भ सकलै जेना दोसर प्रान्त आ आन भाषा सब तरक्की क गैलै। एखुनका परिदृश्य अगर देखी त बुझाइत अछि जे मैथिली साहित्य के विकास आ एतुक्का विकास के ल क चिंता सिर्फ किछु मुट्ठी भरि लोक के दिमागी कसरत छैक-आम मैथिल के एहि स कोनो सरोकार नहि। हालत त ई अछि जे मैथिल लोकनिके धियापुता दरभंगो मधुबनी मे मैथिली नहि ,हिंदी मे बात करैत छथि। एकर की कारण छैक आ एना किएक भैलैक।

अगर एकर तह मे जाई त एहि भाषाके संग सबसं पैघ अन्याय ई भेलैक जे एकरा किछु खास इलाका के मैथिली बनयबा के आ किछु खास लोकक भाषा बनयबाके प्रयास कयल गैलैक। मैथिली के दरभंगा मधुबनी आ खासक ओतुक्का ब्राह्मण के भाषा बनाक राखि देल गेलैक। मधेपुरा-पूर्णिया के बात त दूर दरभंगो मधुबनी के विशाल जनसमुदाय ओ भाषा नहि बजैत अछि जे किताबी मैथिली के रुप मे दर्ज छैक। ओना ई बात दोसरो भाषा के संगे सत्य छैक लेकिन कमसं कम ओतय ओहि भाषा के स्थानीय रुप के हिकारत या हेय दृष्टि सं नहिं देखल जाई छैक। मैथिली मे एहि तरहक कोनो प्रयोग के बर्जित कय देल गेलैक। मिथिला के खेतिहर,मजूर, मुसलमान आ निम्नवर्ग ओहि भाषा मे तस्वीर कहियो नहि देखि सकल। जखन मिथिला राज्य के मांग उठल त हमसब मुंगेर तक के अपना मे गनि लैत छी, लेकिन जखन भाषा के बात हेतैक त ओ सिर्फ मधुबनी के पंचकोसी या मधुबनी झंझारपुर तक सिमटि कय रहि जाईछ।

हमरा याद अछि जे कोना सहरसा या पूर्णिया के लोकके भाषा के मधुबनी के इलाका मे एकटा अलग दृष्टि स देखल जाई छैक। इलाकाई भिन्नता कोनो भाषा मे स्वभाविक छैक लेकिन यदि ओ अहंकारवोध सं ग्रस्त भ जाई त ओहि भाषा के भगवाने मालिक। फलस्वरुप जखन भाषाई आधार पर राज्यके मांग उठलैक त मिथिलांचलक विराट जनसमुदाय ओहि स अपना के नहि जोड़ि सकल आ ओ आन्दोलन लाख संभावना के बावजूद नहि उठि सकल। रहल सहल कसरि राज्यसरकार क मैथिली विरोधी रवैया पूरा कय देलक। मैथिली के बीपीएससी स हटा देल गैलैक, आ मैथिली अकादमी के निर्जीवप्राय कय देल गेलैक। लेकिन एहि के लेल सत्ता के दोष कियेक देबै, जखन जनता के दिस सं कोनो प्रवल प्रतिरोध नहि छलैक त सत्ता त अपन खेल करबे करत।

ओना त ई कहिनाई मुनासिब नहि जे मैथिली मे आम जनता के लेल या प्रगतिशील चेतना के स्वर नहि मुखरित भेलैक लेकिन ओ ओहि तरीका सं व्यापक नहि भ सकलै जेना आन भाषा मे भेलैक। मैथिली के रचना मे ओ मुख्यधारा नहि भ सकलै। दोसरबात ई जे कहियो मिथिला मे कोनो समाजसुधार के आंदोलन नहि भेलैक जेना बंगाल वा महाराष्ट्र मे देखल गेलैक। तखन ई कोना भ सकैछ जे सिर्फ भाषा के त विकास भय जाय लेकिन समाज के दोसर क्षेत्र मे ओहिना जड़ता पसरल रहैक। मिथिला के इतिहास के देखियौक त एतय येह भेलैक। दोसर बात ई जे मिथिला या मैथिली के लेल जे संस्था सब बनल ओकर कामकाज के समीक्षा सेहो परम आवश्यक। मैथिली के विकास के लेल दर्जनों संस्था बनल जाहि मे चेतना समिति के नाम अग्रगण्य अछि। लेकिन ओ चेतना समिति की कय रहल अछि आ जनता सं कतेक जुड़ल अछि एकर विशद विवेचना हुअक चाही। सालाना जलसा आ सेमिनार के अलावा एकर मैथिली भाषा के लेल की योगदान छैक तकर विशद समीक्षा हुअके चाही। मैथिली के बजनिहार भारते मे नहि नेपालों मे छथि, लेकिन दूनू दिसके भाषाभाषी के जोड़य के कोनो ठोस उपाय एखन तक दृष्टिगोचर नहि।

एखन जहिया सं मैथिली के संविधान मे मान्यता भेटलैक अछि तहिया सं साहित्य अकादमी के किछु बेसी गतिविधि देखय मे आबि रहल अछि। लेकिन मैथिली के जखन तक आम जनता आ ओकर सरोकार सं नहि जोड़ल जायत एकर आन्दोलन धार नहि पकड़ि सकैत अछि। एकर सबसं पैघ जिम्मेवारी ओहि बुद्धिजीवी लोकनि पर छन्हि जे मैथिली के पुरोधा कहबै छथि। हुनका सं ई उम्मीद त जरुर कयल जा सकैछ जे ओ एकर ठोस, सर्वग्राही आ समीचीन समाधान सामने लाबथु आ ओहि पर समग्र रुपे चर्चा हो।
कथा-
आ ओ मारलि गेलि !
— बृषेश चन्द्र लाल

तखनेसँ खदकैत भातक माड़ सुखा गेलैक आ भात जड़य लगलैक । ओकर तीब्र गन्धप जखन चारुभर पसरि गेलैक तँ फुलियाक तन्द्रा टुटलैक । ओ पित्ते चुल्हिरमे पानि झोंकि देलकि — ‘दुर्रऽऽ़़़ ! आब खएबे के करतैक ?! ़़़ इहो भात त फेकएबे करतैक उ’ फुलिया मोनेमन पटपटाएल रहय । ठीके, आब किछु ओकरा कोनो खाएल जएतैक ? आब तँ एकहिटा बात होएतैक — सभक चलि गेलाक बाद ओ मोनसँ कानति आ ताधरि कानति जाधरि नोरक बासनसँ अन्तिकम ठोप नहि टघरि जएतैक ।
ओकर गड़ तखनेसँ भारी छैक । आँखिसँ रहि–रहि कऽ टघरैत नोरकेँ ओ कहुना नुकबैति आबि रहलि अछि । कान्‍ह उचकाकए साड़ीसँ गालपर ससरैत नोरकेँ पोछैैति फुलिया देाकानमे बैसलि सिपाहीसभकेँ अपनाकेँ भानसमे तल्लीएन देखएबाक प्रयत्नरमे लागलि अछि । मुदा आब ओकरामे आओर सामर्थ्यल नहि रहि गेल छैक । अपन भोकासीकेँ रोकब मुश्कि्ल भेल जाइत छैक । कखनो ठोह पड़ा जएतैक । एम्हपर इसभ मस्त सँ पिअयमे लागल छैक । ़़़ तुरत्ते शायदे जाएत । सभ दिन जकाँ रहि–रहि कए फुलियासँ ठिठोलियो करैत छैक । फुलिया दाँत निकालि हँसक अभिनय करैति अपनाकेँ धुआँसँ पिडि�़त देखबक प्रयत्नत कए रहलि अछि जे कहुना मुँहझौंसासभ बुझैक नहि ।
ओ बारी जाएक बहन्नेब उठि जाइति अछि आ बीच्चे बारीमे बैसि कए सिसकि–सिसकि कए कनेक काल कानि लैति अछि । समयक मारि ओकरा सभ किछु सिखा देने छैक । ओ जनैत अछि जे केओ आ खासकय ओकरे दोकानमे बैसकय पिअयबलासभ यदि ओकरा कनैति देखि लेतैक तँ ओकरोपर शंका करए लगतैक आ नहि जानि ओकरा कोन लिखलाहा भोगय पड़तैक । ़़़ ओ फेर अपनाकेँ संयत करैति अछि आ कलपर आबि कुरुड़ कए हाथ–मुँह धोए अपन पीढ़ी पकड़ि लैति अछि जेना किछु भेले ने होइक आ आजुक घटनासँ ओकरा कोनो मतलबे ने होइक । ओ अपनाकेँ ने हर्ष ने विष्मा दक सजीव अभिनय दिस लगा दैति अछि । एतेक दिनक अभिनय जे से ़़़ कहुना काज चलैत अएलैक मुदा आजुक अभिनयपर ओकर जीवन/मरण निर्भर करैत छैक । ओना मृत्यु सँ ओकरा ततेक डर नहि छैक, मुदा यातना आ क्रूरतामादेँ जे ओ सुनैति आएलि अछि तकर पीड़ाक कल्पयनासँ ओ हलाल होइत छागर जकाँ सिहरि जाइत अछि । एखन आओर किछु नहि अभिनयेटा ओकरा एहि त्रासदीसँ बचा सकैत छैक । तैँ ओकरा अपन भावनाकेँ कहुना मसोड़य पड़तैक । ़़़ ओ अपन छातीकेँ फुलाकय एकबेर नाम साँस लैति अछि आ दोकानमे पैसि जाइति अछि ।
‘ की भेलौअऽ फुलिया ? ़़़ आँखि लालतेस छौक ?’ — हवल्दाोर भूलोटन ठाकुर झुमैत पुछलकैक ।
‘ किछो नहि !’ — ओ हडबडा जाइति अछि — ‘धुआँ आ पिआउज हरान कएने अछि । ़़़ तेहन जरना–काठी किना गेल जे ़़़ । ’ ओ आगाँ सफाई देबक कोशिश कएलकि ।
‘ हमरा तँ लागल मोन–तोन खराब छौक ! ़़़ जे होउक, मुदा एखन गाल बड्ड नीमन लगैत छौक । ़़़आ आँखि ! ़़़ एकदम लालतेस, रसाएल ़़़ दारु पिअल जकाँ !! ’ — हवल्दा़र जेना दागि देने होइक ।
फुलियाक एँडीसँ कनपट्टीधरि जेना झनझना गेल होइक । मोन भेलैक जे चुड़की पकडि कए दू थापर जमा दैकि मुदा ओ संयत रहलि, आ स्थिेरसँ बाजलि — ‘अहाँकेँ तँ सदिखन ़़़ ़़़ !’
हवल्दाुर भूलोटनक मोन खुशीसँ लहराए गेलैक । गालपर मुस्कीच पसरि गेलैक । काँस्टेलबल बलराम सहनी हवल्दादरकेँ प्रोत्सालहित करैत कहलकैक — ‘ठीके तँ कहैति अछि साहेब, सदिखन कोनो एना कएलकैअऽ ! ़़़ टाइमपर ने करक चाही ।’
पित्ते फुलियाक देह जड़ि गेलैक । लगलैक जेना केओ गरमाएलमे खौलल पानि ढ़ाड़ि देने होइक । ़़़ मुदा ओ करओ की ? एखन तँ सहहि पड़तैक । आई रातिमे कोनो बाट निकलतैक की ? कोनो ने कोनो उपाय तँ करही पडतैक । बाँचब तँ इज्जहतसँ ़़़ नहि तँ मरबे नीक । ओ स्थिैरसँ जबाब देलकैक — ‘दुर्र, खाउ जल्दीह ! ़़़ मुँहो नइ दुखाइअऽ ? तीमन नीमन अछि कि ने ?’
बलरामकेँ जेना मौका भेटि गेलैक, हँसैत कहलकैक —‘ ऐंह, तीमन बड्ड नीमन छैक । जेहन फुलिया तेहन तीमन ! हमहूँसभ आदमी चिन्हिहकए अबैत छी ने ? तोरहिं जकाँ तीमनो तेज छौक । ’
‘ बेशी मिरचाई पड़ि गेलैक की ?’ — ओ सरिआबक प्रयत्नि कएलकि । तैयो ओकर भौंह अनजानमे सिकुड़िये गेलैक । ओकरा लगलैैक, पुलिसबासभ कहूँ घुमाकए तँ बात नहि करैअऽ ?
‘ नइ, ठीक छैक । तीमन कनी तेजे नीक ।’ — बलराम सहनी दाँत निपोड़ैत कहलकैक ।
मुदा फुलिया किछु नहि बाजलि । ओ कनेक ससरि कए दूर मोचियापर बैसि रहलि । पुलिसबासभ बडी कालधरि खाइत रहलैक । हाँ–हाँ हीं–हीं करैत रहलैक । बीच–बीचमे कनखिया कए तकितो रहलैक । ़़़ ओकरसभक गप्प ओ आइ बुझि नहि सकलैकि । रहि–रहि कए मन व्याचकुल भ’ जाइक । बैचैनी कटने ने कटाइक । मोन होइक अहुँरा जाए आ खूब जोड़सँ कानए । ओ मनेमन गोसाईंकेँ गुहारलकि — ‘ हे भगवान ! ़़़ केहन बिपत्ति !! ़़़ पुलिसबासभ जएबो नहि करैत अछि !’
स्थि़ति आब ओकर सम्हा रमे नहि छैक । ़़़ कतहु बेहोश भ’ क’ ने खसि पड़ए । यदि एना भ’ गेलैक तँ सभ भेद खुजि जएतैक । नहि जानि कोन–कोन यातना भोगए पड़तैक । ओ जोड़सँ दम खिचलकि आ अपनाकेँ संयमित करक प्रयत्नन कएलकि । ़़़ पुलिसबासभ बैसले रहलैक । कने–कने कालपर दारु म्ँ ागबैक आ पिबैत जाइक । कनखिया कए ताकक क्रम जारीये रहैक । ़़़ फुलियाकेँ शंका होमए लगलैक । ओ सोचए लागलि — ‘ एतेक दारु तँ ई हवल्दासर कहियो नहि पिबैत छल । एकरासभकेँ शंका तँ नहि भ’ गेल छैक ?’ ़़़ फुलियाकेँ भेलैक जेना हाथ–पैर फुलि गेल होइक । मुदा, करो की ? दोसर कोनो उपायो तँ नहि छैक । भागत तँ मारलि जाएत । होइत–होइत कहुँ अहिना पकड़ि कए ल’ गेलैक तँ क्रूर यातनामे पड़ि जाएत । नहि जानि की की भोगए पड़तैक ? ़़़ फुलिया आँचरसँ अपन गाल पोछैति अछि । ओकरा आशाक किरण देखाइत छैक । ओकरा लगैत छैक एकरासभकेँ किछु मालूम नहि छैक । मालूम रहितैक तँ कखन ने पकड़ि कए ल’ गेल रहितैक । ़़़ ओ फेर स्थिनर भ’ जाइत अछि । कनेक आओर देखति । आ फुलिया औंघाएक अभिनय करए लगैत अछि ।
‘ फुलिया सबेरे औंघाए लगलेँ ?’ — हवल्दानर टोकि दैत छैक ।
‘आब अबेर नइ भेलैक ?’ — फुलिया दुनू हाथ माथक उपर ल’ जाइत देह–हाथ झारक अभिनय करैति कहैति अछि । ़़़ पुलिसबासभ उठि जाइत छैक । ओकरा लगैत छैक ठीके एकरासभकेँ किछु मालूम नहि छैक । कोनो शंको नहि छैक । बुझाइत छैक जेना हेराइत दम किछु पलटलैकअऽ ! ओ ठाढ भ’ जाइत अछि । मनेमन हिसाब जोड़ए लगैति अछि ।
‘ कतेक भेलौक ?’— हवल्दाइर भूलोटन पुछैत छैक ।
‘ तीन सय बाबन । ’ — फुलिया संयत होइत कहैति अछि । हवल्दाठर पनसहिया दैत छैक आ फुलियासँ फिर्ता लए आगाँ बढि जाइत अछि । पाछाँ–पाछाँ दोसर पुलिसबासभ सेहो बढि जाइत छैक । फुलिया दोकानक केबाड़सभ बन्दा करैति अछि । केबाड़ बन्दर होइते लगैत छैक जेना ओ पताकए खसि पड़ति । ओ बैसि जाइत अछि । आँखिसँ दहोबहो नोर टघरए लगैत छैक । ओ कोशिश करैति अछि जे कोनो आवाज नहि निकलैक । कनेको आवाज ओकरा बड़का संकटमे ढ़केल देतैक । ओ दुनू पएर पसारिकए टाटमे अङ्गोठि कए कानए लगैत अछि । पूरा खुलिकए स्थिकर भ’ गेल पसरल आँखिसँ नोरक दू धार ओकर गालपर टघरैत टप–टप खसए लगैत छैक ।
ओ सोचए लगैति अछि, ओकरापर ठीके बज्रपात भेल छैक मुदा ओहि बज्रपातक कारण के ? ओ स्वियं अथवा केओ आओर ? ओ ककरालेल कनैत अछि ? ओकरालेल अथवा स्वपयं अपनालेल ? ओकरा लगैत छैक जेना आ कोनो तेज बहावक नदीक मोइनमे फँसि गेलि होए आ पताइत–पताइत ओ मोनिमे आब समा जाएति । ओतए ओकरा बचाबएबला आ ओहिसँ उबारएबला केओ नहि छैक । शायद आब भगवानो नहि ! प्रकृतिक नियममे ओ ओझराए गेलि अछि । ़़़ ओ अतीतमे ठेला जाइति अछि । शायद ओकरालेल काल पाछाँ घसकि गेल छैक, वर्त्तमानसँ अतीतमे ़़़ ! फुलियाक अतीतक सम्पू्र्ण परतसभ एक–एक क’ खुजए लगैत छैक !!

पूर्णे आ ओकरि सम्बओन्ध नेनपनेसँ छैक । पूर्णे नङ्टे डड़ाडोरि पहिरने ओकरासंगे गोली–गोली खेलैक । देहपर किछु नहि, डड़ाडोरिमे मलहाक जालक घुँघरु, बनेलक दाँत आ ललका मूँगा । फुलियोक देहपर कथु थोड़े रहैक । बस, ठेहुनसँ उपर जाँघतक ओकरि मायक फटलाहा साड़ीक टुकड़ा रहैत छलैक । डाँड़सँ उपर पूरा खालीये । हँ, गर्दनमे अवस्सेट करजन्नीडक ललकामाला लटकैत रहैत छलैक । जखन ओ गोली फेकैति छलि घुच्ची मे तँ माला झुलि कए पाछाँ लटकि जाइत छलैक । घुच्चीडमे गोली पिलतहिं यदि पूर्णे हारैत रहैत छल तँ खौंझाबए लगैत छलैक — ‘फुलिया, माला पाछाँ चलि गेलौक ! ़़़ छाती उदास भ’ गेलौक ?’ ओहो थोड़े छोड़ैत छलैकि — ‘ आ तोँ जखन फेकैत छाँ तखन जे तोहर डाँड़ा झुलैत छौक, ढ़उसा बेङ्गक मुँह जकाँ ़़़ ढ़प–ढ़प !’ ़़़ तकरबाद दुनूमे झगड़ा भ’ जाइक आ खेल भँड़ा जाइक । दुनू अपन गोली समेटैत कनैत बिदा भ’ जाय ।
फुलिया आ पूर्णेक घनिष्टपता बढ़िते गेलैक । भिनसरसँ साँझधरि दुनू संगहिं रहए । झगड़ो होइक मुदा कहियो पूर्णे इशारासँ हँसाहँसाकए मना लैक तँ कहियो ई अपने मुँह फुलाकए पुरनी पोखरिक भीड़परक पीपरतर बैसि जाय । पूर्णेकेँ आबहिं पडैक । पूर्णे महीष चराबए लागल तँ ओ बकरी । संगक क्रम कहियो नहि छुटलैक ।
पूर्णे स्कूकल जाए लागल तँ कने ओकरा बुझाएल रहैक । ओ अपन बाउकेँ कए दिन कहलकैक जे ओहो स्कूपल जाएति मुदा कोनो सुनबाई नहि भेलैक । ़़़ बाप भरि दिन दारुमे मस्त रहैक । लोक कहैक चौधरी थारु दारुमे बर्बाद भ’ गेल । ओकर बाप–दादाक दरबज्जानपर चरि–चरिटा महीष रहैत छलैक । कहाँदोन, कार्कीसभ पहाड़सँ मधेशमे गाय चराबए आएल रहैक आ एतहिं बैसि गेलैक । एकर बाप कार्कीसभक संग मगरसभक दारु पिअए लागल । अपनो पिअए आ कार्कीसभकेँ पिअएबो करए । बस, बर्बादी शुरु भ’ गेलैक । कर्जा बढ़लैक आ खेत बिकाए लगलैक । धूर्त कार्कीसभ खेत किनएलेल बिलाई जकाँ कान थपने रहैत छलैक । ़़़ धीरे–धीरे सभ किछु बिकाइत चलि गेलैक । कार्कीसभ धनीक भ’ गेल आ चौधरी थारु हरबाह । आब ओकरेसभमे हरबाही करैत अछि !
फुलियाकेँ पूरा याद छैक । ओ तखन दोसर जुक्ति निकालने रहए । मायकेँ कहने रहैक जे ओ आब घास काटति । मालजालक देखभाल करत । माय बड्ड खुश भेल रहैकि । बाउकेँ कहने रहैक जे बेटी आब नम्हिर भ’ गेलि अछि आ घरक विचार करए लागलि अछि । जखन पूर्णेक स्कूील जाएक समय होइक फुलिया सभ दिन छिट्टी ल’ कए निकलि जाय । बतिआइत जाए आ बेरियामे संगहिं घुरए । स्कू लक गप्प –सप्पय ओकरा नीक लगैक । पूर्णे सभ खेसरा सुनबैक । ओकरा लगैक, कहुना ओहो स्कूएलमे पढ़ैति । ओ मायसँ कए बेर कहने रहैक जे स्कूपलमे कहुना नाम लिखा दौक । ओ घासो काटि कए सभ दिन अनबे करति । मुदा माय नहि मानलकैक । कहाँदोन बेटी पढ़ि कए करतैकि की ? अन्तएमे ओ थाकिहेरि गेलि । आई ओ पढ़लि रहैति तँ की एना होइतैक ? ओ फफकए लागलि । लगलैक जेना करेज उनटि जएतैक ।
पूर्णेसँ फुलियाक संगत छुटलैक नहि । धरमपुरसँ जखन ओकरा माँगए अएलैक तँ फुलियाक बिआहक चर्च बढ़लैक । ओ पूर्णेसँ सलाह कएने रहए । पूर्णे कहलैक जे ओ मुक्ति अभियानमे लागल अछि । समय अनुकूल होइते ओकरा ल’ क’ जएतैक आ धूमधामसँ बिआह करतैक । ओ डटलि रहए । पूर्णेक स्व र फुलियालेल गोसाईंक आदेश जकाँ होइक । ओकरा बड्ड नीक लगैक । जाहि अधिकारसँ पूर्णे फुलियाकेँ निर्देशित करैक तकर गर्मी ओकरा गद्गदा दैक । ़़़ ओ डटलि रहलि । मायकेँ साफ–साफ कहि देलकैकि । पहिने तँ माय बुझओलकैकि जे ओ मगर अछि आ फुलिया थारु । कहियो मेल नहि हएतैक । माइनजन ओकरासभकेँ बाड़ि देतैक से अलगे । मुदा फुलिया पूर्णेक बातपर अड़लि रहलि । ़़़ एक दिन ओकरा बाउ बड्ड पीटलकैक । जखन पूर्णेकेँ मालूम भेलैक तँ ओ तमतमा गेल रहए आ बाउकेँ मारए जाइत रहए । फुलिया कहुना कानिखिचि कए मनओने रहैकि । तखन तय भेलैक जे ओ घरसँ भागति । ढल्केएमे चायक दोकान खोलिकए बैसति मुदा एकदम गुपचुप, जाधरि समय अनुकूल नहि भ’ जएतैक । ़़़ ओकरा लगलैक जे ओ तहिया गल्तीत कएने रहए । मारि खाइयो कए घरेमे रहैति तँ एना नहि होइतैक । ओ फेर फफकए लगैति अछि ।
कहाँदोन पूर्णे जनयुद्धमे लागल रहए । महीना दू महीनापर ओकरा लग अबैक । मौका भेटैक तँ दू बात बतिआइक । फुलिया कए बेर कहैकि जे ओ कोन चीजमे लागि गेल अछि ? एहिसँ की हएतैक ? शुरु–शुरुमे तँ पूर्णे बड्ड जोशमे रहए मुदा बादमे ओकरो लागि गेल रहैक जे एहिसँ मुक्ति नहि भेटतैक । मुक्तिक लेल समाजेमे लड़ए पड़तैक । लोककेँ सम्झाेबए पड़तैक । समय तँ जरुर लगतैक मुदा एक्केगटा यएह उपाय छैक । मारकाटसँ किछु हएतैक नहि । फुलिया कए बेर कहलकैक जे ओ घरेमे घुरि जाएति । आब एतए ओकरा रहल नहि जाइत छैक । मुदा, पूर्णे कहैक जे जल्दीरये ओहो निकलत आ ओकरा ल’ कए कतहु चलि जाएत । ओ इहो कहैक जे ओ ओ फँसि गेल अछि । सोझे निकलनाइ सम्भ‍व नहि छैक । फुलिया कनेक आओर प्रतिक्षा करौक । फुलिया ओकर संगक लोभ संवरण नहि कए सकलि । प्रतिक्षा करिते रहलि । काश, ओ घर घुरि गेल रहैति । बरु असगरे जीवन बिता दित । एहि ब्‍ाीच ओकर बाउ मरि गेल रहैक । मालूम भेलैक, मुदा मन मसोसिकए रहि गेल । घर नहि गेल । कहाँदोन ओकरि माय गोबर बिछिकए जीवन चला रहल छैकि । भाय अलगे कमाइखाइ छैक । ओ जाइत तँ मायोकेँ उसाँस होइतैक । कहुना रहैति ! ़़़ फुलिया अपन माथ ठेहुनपर राखि सिसकए लगैति अछि ।
आई बेरियामे ओकरा मालूम भेलैक जे पूर्णे एतए आएल रहय । कहाँदोन बनिनियाँक कुसियारक खेतमे नुकाएल रहैक । पुलिसकेँ खबरि भेट गेल रहैक आ चारु भरसँ घेरि कए गोली बरखा देने रहैक । पूर्णे मारल गेल रहय । फुलियाकेँ लगैत छैक जेना ओ ओकरेसँ भेटए आएल रहैक । शायद एहि बेर ओ साँचे ओकरा ल’ क’ भागए चाहैत रहए । दूर बहुत दूर जतए कोनो भय आ त्रास नहि होइक । खाली ओकर संग आ रंगबिरंगक रंग होइक । मुदा ओ असगरे अपने चलि गेल । कहाँदोन ओकर देह लाल खूनसँ रंगा गेल रहैक । ़़़ फुलिया अपन झोंटा नोचए लगैत अछि । आँखिसँ नोरक धार जोड–जोड़सँ टघरए लगैत छैक ।

ओकर फाटक खटाक् आवाज करैत खुलि जाइत छैक । हवल्दाआर भूलोटन प्रवेश करैत अछि । सकपकाएलि फुलिया ठकमका कए ठाढ़ भ’ जाइति अछि । ओकरा लगैत छैक भेद खुलि गेल छैक । आब ओकरा कोई नहि बचाबए सकतैक । अवर्णनीय यातनाक दौरसँ गुजरए पड़तैक । एहिसँ मुक्तिक एकहिटा उपाय छैक जे ओ पूर्णे लग चलि जाय । मुदा कोना ? आब एकरो बेर नहि छैक । ओ परिछाइत छागर जकाँ काँपि जाइत अछि । ़़़ भूलोटन आगाँ बढ़ैत छैक । मुँहपर हाथ धए ओकरा चुप रहक इशारा करैति फुसफुसाइत छैक — ‘ फुलिया, ़़़ ई तोहर साड़ी छौक । ़़़ बिआहक लाल जोड़ा ! ़़़ पूर्णेक जेबीमे रहैक । हम सभसँ पहिने लाश लग पहुँचल रहिऐक । ई निकालि लेलिऐक । ़़़ दोसर जनौक नहि जनौक, हम तँ सभ किछु जनै छिऔक । ़़़ तोँ छापामार तँ नहि मुदा पूर्णेक प्रेमिका अवस्से, छह ! ़़़ तोँ एखने भागि जाह । ़़़ नहि तँ काल्हि भोरे तोरा पकड़ि लेतौक । ़़़ मुदा एहि सभलेल तोरा एक बेर ़़़ खाली एक बेर ़़़ हमरा भोगए देबए पडतौक ! ’ भूलोटनक आँखिमे जेना पिशाच चढ़ल रहैक । ओ साड़ी फैलाए देलकैक । फुलियाक मन भेलैक ओ साड़ी छिनि लेअए मुदा से सम्भ़व नहि रहैक । ़़़ भूलोटन मुस्कालइत आगाँ बढ़ैत गेलैक । फुलिया टाटदिस घसकैति गेलि । ओकरो आँखिपर जेना देवी चढ़ि गेल होइक । मुँह सेहो बिकराल बनैत चलि गेलैक । ओ सोचि लेलकि आई मुक्ति लैये क’ रहत । ओ पूर्णेलग अपन चुनल स्था नपर चलि जाएति । ़़़ ओकर नजरि स्टूिलपरक नवका छुरीपर गेलैक । ओ छुरी उठा लेलकि आ सोझे भूलोटनक पेटमे भोंकि देलकि । एक, दू, तीन, चारि ़़़ । भूलोटन घबराए गेल । ओ साड़ी पुलिया देहपर फेक देलक । आ अपन दहिना हाथसँ पेस्तौकल निकालि ताबड़तोड़ गोली दागि देलक । एक, दू, तीन, चारि ़़़ । दुनू हहाकए खसल । ़़़ भूलोटन मुँहे भरे आ फुलिया साड़ीमे ओझराइत !
परात भेने सभ अखबार घटनाक विविरणसँ भरल रहैक । किछुमे लिखल रहैक जे छापामार वीराङ्गना फुलिया शहादत प्राप्तट कइलीह, अन्तििम धरि लड़ैत–लड़ैत । तँ दोसरसभमे लिखल रहैक महिला छापामारसँ मुठभेड़मे हवल्दा र भूलोटन शहीद भेल । ़़़ छापामार फुलिया चौधरी मारलि गेलि ।
जयकान्त मिश्रपर विशेष
१.डॉ. गंगेश गुंजन २. विद्या मिश्र
.डॉ. गंगेश गुंजन
जयकांत बाबूक निध्अन मैथिली-मिथिला आ मैथिलक एक महान पोथीक पुस्तकालयमे सजा देबाक ऐतिहासिक शोकक अवसर जेकाँ थीक। पोथी, अध्याय नहि, पोथी। सम्प्रति तँ बहुत महान क्षति। हुनक मौलिकता मैथिलीक लौकिक एवम शास्त्रीय बुद्धि समंवय आ व्यवहारक अति दूरगामी दृष्टांत बनल। उर्दूक आधुनिक गालिब फिराक गोरखपुरी गर्वोक्ति छनि
“आने वाली नस्लें तुम से रश्क करेंगी हम असरो
जब होगा मालूम उन्हें तुम ने फिराक को देखा है”।
हमरा लोकनिक पीढ़ी जयकांत बाबूक स्नेह शिक्षाक अपन एहि सौभाग्यपर अवश्ये क्रितार्थ बनत। संस्था सेहो मरि जाइत छैक। किताब जीवित रहैत छैक।

कतोक गोटे केँ संभव जे नहियो रुचन्हि हमर ई कथन मुदा हमारा अपन अंतःकरण सँ ई कहि रहल छी जे जयकांत बाबू मैथिलीक आधुनिक वेद छथि!

भाइजी काका- डॉ. जयकान्त मिश्रक स्मरण
विद्या मिश्र
हम बहुत छोट रही, भरिसक स्कूलक दिन छल, जखन कखनहु हमर घरमे अंग्रेजीक विद्वान, कवि, मैथिली लेखकक चर्चा होइत रहए, लोक सदिखन डॉ. जयकान्त मिश्रक चरचा करिते रहथि। ओ ओहि समयमे हमर सभसँ पैघ मामाजीक साढ़ू रहथि। नेनपनमे हम मैथिल आर मिथिलाक विकास आ उन्नतिक प्रति हुनकर समर्पण आ साहित्यमे हुनकर योगदानसँ बड्ड प्रभावित रही। ओ हमरा लेल आदर्श रहथि..प्रशंसा करी आ सदैव हुनकासँ भेंट करबाक आ देखबाक लेल लालायित रही।
हम अपन स्नातक विज्ञानक द्वितीय वर्षमे रही जहिया डॉ. जयकान्त मिश्रक सभसँ छोट बेटा अपन पितियौतक घरपर धनबाद आएल रहथि। आ हमर बाबूजी तहिया ओतहि पदस्थापित रहथि, से ओ सभ हमरो सभक अहिठाम भेँट करबाक लेल आएलाह। हमरासँ भेँट कएलाक बाद, गप कएलाक बाद ओ हमर बाबूजीसँ कहलन्हि…अहाँ किए नहि हमर पितियौत हेमकान्त मिश्रसँ बिन्नी (हम) क विवाहलेल प्रस्ताव अनैत छी। आ एतए देखू.. हमर डैड हुनका सभ लग प्रस्ताव रखैत छथि आ एक मासक भीतरे हम हेमक संग विवाहित भऽ जाइत छी।
जखन हम सुनलहुँ जे हमर विवाह डॉ. जयकान्त मिश्रक भातिजक संग होमए जा रहल अछि..हम बड्ड प्रसन्न भेलहुँ आ शीघ्रहि हुनकर संग हमर सम्बन्ध परिवर्तित भऽ गेल किएक तँ हम आब ओहि परिवारक पुतोहु रही, विद्वान आ लेखकक परिवारक।

हम डॉ. हरिवंश राय बच्चनसँ बहुत नजदीक रही, पत्राचार माध्यमसँ, हुनकर परामर्श अवसरपर भेटए आ पारस्परिक रुचि हमरा सभ बाँटी। ओना तँ ओ हमरासँ बड्ड पैघ रहथि मुदा तैयो हमरा सभ एक दोसारासँ गप बाँटी आ एक-दोसराक चिन्ता करी, से हम हुनका कहलहुँ जे अहाँ प्रसन्न होएब जे हम इलाहाबादक डॉ. जयकान्त मिश्रक भातिजक संग विवाहित होमए जा रहल छी। हमरा जवाब भेटल जे हमर विवाह एकटा विद्वानक परिवारमे होमए जा रहल अछि, ई वैह छथि जिनका हम इलाहाबाद विश्वविद्यालयक अंग्रेजीक विभागाध्यक्षक अपन प्रभार देने रहियन्हि आ ओ सर्वदा हमरा अपन गुरु मानैत छथि। आ हुनकर पिता डॉ. उमेश मिश्रकेँ हम अपन गुरु मानैत छियन्हि। ओहि परिवारक ओ जे प्रशंसात्मक वर्णन कएलन्हि से आह्लादकारी रहए आ तकरा सोचैत एखनो हम उत्फुल्लित भऽ जाइत छी।

हम सभ १९९९ ई. मे संयुक्त राज्य अमेरिकामे बसि गेलहुँ मुदा हमरा सभक हृदय, आत्मा आ मस्तिष्क सर्वदा इलाहाबादमे रहैत छी आ त्रिवेणीपर भेल सभ कर्मकेँ अनुभव करैत छी हमरा सभ ओ सभ छोट-छीन काज करैत छी जे परिवारक प्रति आदर आ प्रेमक भाग अछि। हुनकर समर्पण, परम्परा, सरलता आ संस्कृतिक प्रति लगाव अनुकरणीय अछि। हम सभ हुनकर परिवारक मुखिया, गुरु आ भाइजी काकाक रूपमे क्षति सदैव अनुभव करब। ई परिवार आ समाजक लेल एकटा पैघ क्षति अछि।

होलीक संदेश
डा. चन्देवश्वलर शाह
होलीक रंग–अबीरक खेल खेल्बासँ पहिने सम्महत जराएब (होलीका दहन) आवश्यिक होइत छैक । शास्त्री य वर्णन अछि जे भक्तब प्रह्लादक विष्णुम भक्त्तिएसँरुष्टद भेल हुनके पिता देवराज हिरण्यककश्यीपु जे स्वमयं के ईश्व र मौनत छल, भक्तत प्रह्लादकें मारि देवाक लेल अनेक प्रयत्न् कयलाक बादो जखन असफल होइत गेल तँ अपन बहिन होलिका कें बरदान में प्राप्तह भेल आगिमे नहि जरएबला चछरिक उपयोग करैत अपन स्वा र्थ पुरा करबाक लेल प्रह्लाद सहित आगिमे प्रवेश करबाक लेल आज्ञा देलक, भगावनक कृपासँ ओ चछरि अपन प्रभावसं प्रह्लादक रक्षा कएलक आ होलिका ओही आगिमे भष्मद भऽगेल । एही प्रकारसँ होलिकाक अवसानपर लोक खुशी मनौलक जे एखन एकटा पर्वक रुपमे समाजमे विद्यमान अघि । एहि पर्वक प्रसंग मे इएह कथा सम्पूुर्ण नहि अछि, आनो कतेक कथा एहि प्रसंगमे कहल जाइत अछि तथापि एहि कथाक प्रचार आन कथासँ आधिक अछि ।
होली पर्वक एहि कथासँ अपना अपना बुद्धि विवेक अनुरुप अनेक तरहक संंदेश ग्रहण कएल जा सकैत अछि । जेना आसुरी प्रवृतिक होलिका जे समाजकें अपन स्वानभाव अनुरुप अनेक तरहक कष्टछ दैत छलैक, तकर मृत्यु भेला पर लोक खुशी मनौलक । अर्थात जे किओ व्यवक्ति समाजमे अन्याैय अत्या चार करत, समाजक लोक तत्काील यदि विरोध नहियो करैत छैक तँ तकर ई मतलब नहि छैक जे ओ समाज ओकर अत्या चार सहर्ष स्वीवकार करैत छैक । दोसर बात जे अन्या यी, अत्यायचारीकेँ अकाल मृत्यर प्राप्तम होइत छैक । यदि होलिका प्रह्लादकेँ आगिमे जरएवाक लेल उद्यत नहि होइत तँ अकालमे ओकर मृत्यक नहि होइतैक । तेसर बात जे एहि कथाक मुख्यव पात्र हिरण्यलकश्य पु जे अपन धन बलसँ प्राप्तन सुख भोगसँ एतेक माति गेल छल जे ओकरा बुझाइत छलैक जे धनक बलसँ सब किछु सम्भ व छैक, ईश्वसरकेँ एहि सेँ बेसी की प्राप्त छैक, जे हमरा प्राप्तल नहि अछि । जखन सब तरहक सामर्थ्यप हमरा प्राप्तए अछि तखन ईश्वपर हमरासेँ पैघ नहि अछि, हमहीँ ईश्वतर छी । ओ ईश्व।रीय सत्ताक विरोध कैरत गेल आ अन्तरमे ओकर की दशा भ.ेलैक से सवकेँ बुम�ले अछि । अर्थात् अहंकारीक अहम् सबदिन नहि रहैत छैक । चारिम बात ईश्व्रीय शक्ति अथवा आशीर्वाद जँ ककरो प्राप्ता होइत छैक तँ ओकर उपयोग जनकल्या णमें करबाक चाही नहि कि जनविरोधी कार्यमें । होलिका केँ जे चहरि बरदानमे प्राप्तउ भेल छलैक ओहिसेँ आगि ओकरा लेल संतापक बस्तुो नहि छलैक, परन्तुा जखन होलिका एकर प्रयोग दोसराक जान लेवाक लेल कयलक तै ओकर अपने जान चलि गेलैक । एहि तरहेँ होलिका आओर प्रह्लादक अग्निख प्रवेशक सन्दसर्भमे जे कथा प्रचलित अछि ताहिसेँ अनेको संदेश ग्रहण कएल जा सकैत अघि ।

होलीक कथा प्रसँगकेँ ध्याणनमे राखि ओहिसँ सँदेश ग्रहण करैत अपना जीवनमे सफलता प्राप्तिेक लेल सबकेँ सचेत रहबाक चाहि । जेना होली मनएबाक प्रसंग अछि जे होलीसँ पहिलका राति मे सम्मलत् जराओल जाएत । सम्मकत् जरएबाक लेल लकडी–काठीक जरुरत होइत छैक, ई लकडी–काठी कानो एक व्यलक्ति नहि दैत छैक । होलीक सम्मजत् जरएबाक लेल टोलक किछ सक्रिय व्यैक्तिा कतहुकतहु सँ लोकक लकडी–काठी अथवा ओइने चीज उठा कऽ चुप्पे अनैत अछि । यदि किओ ककरो घर बनएबाक लेल कतौ राखल लकडी लाबी कऽजरा दैत छैक, चाहे एक गोटाक बहुत लकडी–काठी लऽ अबैत छैक तँ ओकर समाजमे केहन प्रभाव हैतैक ताहि पर ध्याएन देबाक चाहि । तहिना होलीक दिन पर्वक दिन छैक । नीक भोजनक नामपर यदि किओ ऋण करैत अछि अथवा मस्तिदक नामपर भाँग धथुर, दारु–तारीक अधिक प्रयोग करैत अछि, त ओकर प्रतिफल सबके देखल नहियो हएत त सुनल जरुर हएत, तेँ सचेत रहव सबहक लेल कल्या णकारी बात छैक । तहिना रंग–अबीर खेलबाक नामपर किओ अलकतरा त किओ इनामेल सनक रंगक प्रयोग कऽ बहादुरी वा मस्ती करैत अछि तेँ प्रयोग कयनिहारक मस्तीत आ ओही सेँ प्रभावित व्य क्तििक तकलीफ कोन अधिक छैक से तराजू पर नहि जोखल जा सकत, एकटा अनुभव करबाक लेल नीक भावना रहल हृदयक जरुरत छैक । यदि किओ कोनो बिमार, व्ययक्तिकेँ बलपूर्वक रंंग अबीर लगा कऽ ओकर रोग बढा दैत छैक अथवा एहने कोनो अप्रिय काज भाँगक जोश के करैत अछि तँ ओकरा नीक किओ नहि कहतैक । अर्थात कोनो काज करबाक लेल सीमाक भीतर काज सम्पशन्नछ करब बुद्धिमानी छैक ।
सब तरहक बन्धान, बाधा व्य वधान रहितहुँ जेना लोककेँ अपन लक्ष्य पर आगू बढब आवश्यकक होइत छैक, तहिना अपन संस्कृ‍ति परम्प राक रक्षा आ निरन्तेरता देब सेँहो दायित्वर बनैत छैक । एहने अवस्थाछक मार्गदर्शन महाकवि विद्यापतिक एकटा गीतमे अछि—

आजु नाथ एक व्रत महासुख लागत हे
तोँहेँ शिव धरु नटवेश नाँच देखाबहु हे ।
पार्वतीक एहि आग्रहपर महादेव अपन बात करैत छथिन्हज जे जौं नाँचब तँ शिरक गंगाक धार बहि जाएत धरती जलमग्नि भऽ जेतैक, गलाक सर्प चारु दिस जहिँ तहिँ भऽ जाएत अनर्थ भऽ जेतैक । एहिसँ अनेक व्यीवधानक सुनबैत छथिन्हब । इ सबटा बात सत्यद छै, एहन सम्भतव छलैक मुद्दा ओही गीतक अंतिम पँक्तिथमे विद्यापति लिखने छथि जे ‘राखल गौराक मान कि नाँच देखावल हे ।’ अर्थात हमरा सभक क्रियाकलाप बुद्धिमानी पूर्वक अपन आ समाजक हितमे होयबाक चाहि । होली पर्वसेँ सबके ई सन्दे श ग्रहण करबाक चाहि ।
सुभाषचन्द्र यादवजीक कथा संग्रह -बनैत-बिगड़ैत
विवेचना- गजेन्द्र ठाकुर
तीन टा नामित पात्र । माला, ओकर पति सत्तो आ पोती मुनियाँ ।
गाम घरक जे सास-पुतोहुक गप छैक, सेहन्ता रहि गेल जे कहियो नहेलाक बाद खाइ लेल पुछितए, एहन सन। मुदा सैह बेटा-पुतोहु जखन बाहर चलि जाइत छथि तँ वैह सासु कार कौआक टाहिपर चिन्तित होमए लगैत छथि। माइग्रेशनक बादक गामक यथार्थकेँ चित्रित करैत अछि ई कथा। सत्तोक संग कौआ सेहो एक दिन बिलाऽ जाएत आ मुनियाँ कौआ आ दादा दुनूकेँ तकैत रह्त।

अपन-अपन दुःख

पत्नीक अपन अवहेलनाक स्थितिमेँ धीया-पुताकेँ सरापैत छथि, रातिमे धीया-पुताक खेनाइ खा लेबा उत्तर भनसाघरक ताला बन्द रहबाक स्थितिमे पत्नीक भूखल रहब आ पतिक फोंफक स्वरसँ कुपित होएब स्वाभाविक। सभक अपन संसार छैक। लोक बुझैए जे ओकरे संसारक सुख आ दुःख मात्र सम्पूर्ण छैक मुदा से नहि अछि। सभक अपन सुख-दुःख छैक, अपन आशा आ आकांक्षा छैक।

असुरक्षित

ट्रेनसँ उतरलाक बाद घरक २० मिनटक रस्ता राति जतेक असुरक्षित भऽ गेल अछि तकर सचित्र वर्णन ई कथा करैत अछि। पहिने तँ एहन नहि रहैक- ई अछि लोकक मानसिक अवस्था। मुदा एहि तरहक समस्या दिस ककरो ध्यान कहाँ छैक। पैघ-पैघ समस्या, उदारीकरण आ की-की पर मीडिआक ध्यान छैक।

आतंक

पुरान संगी हरिवंशसँ लेखकक भेँट कार्यालयमे होइत छन्हि। लेखकक दाखिल-खारिज बला काज एहि लऽ कऽ नहि भेलन्हि जे हरिवंशक स्थानान्तरणक पश्चात् ने क्यो हुनकासँ घूस लेलक आ ताहि द्वारे काजो नहि केलक। आइ काल्हि ऑफिसमे यैह हाल छैक, पाइ दऽ दियौक आ तखन काज नहि होअए तखन कहू! हरिवंशक बगेबानी घूसक अनेर पाइक कारण छल से दोसर किएक अपन पाइ छोड़त? लेखक आतंकित छथि।

ओ लड़की

हॉस्टलक लड़का-लड़कीक जीवनक बीच नवीन एकटा लड़कीक हाथमे ऐंठ खाली कप, जे ओहि लड़कीक आ ओकर प्रेमीक अछि, देखैत अछि। लड़की नवीनकेँ पुछैत छैक जे ओ केम्हर जा रहल अछि। नवीनकेँ होइत छैक जे ओ ओकरा अपनासँ दब बुझि कप फेंकबाक लेल पुछलक। नवीन ओकरा मना कऽ दैत अछि आ विचार सभ ओकर मोनमे घुरमैत रहैत छैक।

एकटा अन्त

ससुरक मृत्युपर लेखकक साढ़ू केश कटेने छथि आ लेखक नहि, एहिपर कैक तरहक गप होइत अछि। साढ़ू केश कटा कऽ निश्चिन्त छथि।

एकटा प्रेम कथा

पहिने जकरा घरमे फोन रहैत छल तकरा घरमे दोसराक फोन अबैत रहैत छल जे एकरा तँ ओकरा बजा दिअ। लेखकक घरमे फोन छलन्हि आ ओ एकटा प्रेमीकाक फोन अएलापर ओकर प्रेमीकेँ बजबैत रहैत छथि। प्रेमी मोबाइल कीनि लैत अछि से फोन आएब बन्द भऽ जाइत अछि। मुदा प्रेमी द्वारा नम्बर बदलि लेलापर प्रेमिकाक फोन फेरसँ लेखकक घरपर अबैत अछि। प्रेमिका प्रेमीक ममियौत बहिनक सखी रितु छथि आ लेखक ओकर सहायताक लेल चिन्तित भऽ जाइत छथि।

एकाकी

कुसेसर हॉस्पीटलमे छथि। हॉस्पीटलक सचित्र विवरण भेल अछि। ओतए एकटा स्त्री पतिक मृत्युक बाद कनैत-कनैत प्रायः सुति गेलि आ फेर निन्न टुटलापर कानए लागलि। एना होइत अछि।

कबाछु

चम्पीबलाक लेखक लग आएब, जाँघपर हाथ राखब। अभिजात्य संस्कारक लोकलग बैसल रहबाक कारणसँ लेखक द्वारा ओकर हाथ हटाएब, चम्पीबला द्वारा ई गप बाजब जे छुअल देहकेँ छूलामे कोन संकोच। लेखककेँ लगैत छन्हि जे ओ स्त्री छथि आ चम्पीबला ओकर पुरान यार। ठाम-कुठाम आ समय-कुसमयक महीन समझ चम्पीवलाकेँ नहि छइ, नहि तँ लेखक ओतेक गरमीयोमे चम्पी करा लैतए। चम्पीवलाक दीनतापर अफसोच भेलन्हि मुदा ओकर शी-इ-इ केँ मोन पाड़ैत वितृष्णा सेहो।

कारबार

लेखकक भेँट मिस्टर वर्मा, सिन्हा आ दू टा आर गोटेसँ सँ होइत अछि। बार मे सिन्हा दोस्ती आ बिजनेसकेँ फराक कहैत दू टा खिस्सा सुनबैत अछि। सभ चीजक मोल अछि, एहिपर एकटा दोस्तक वाइफ लेल टी.वी. किनबाक बाद फ्रिजक डिमान्ड अएबाक गपपर बीचेमे खतम भऽ जाइत अछि। दोसर खिस्सामे एकटा स्त्री पतिक जान बचबए लेल डॉक्टरक फीस देबाक लेल पूर्व प्रेमी लग जाइत अछि। पूर्व प्रेमी पाइ देबाक बदलामे ओकरा संगे राति बितबए लेल कहैत छैक। सिन्हा कथामे ककरो गलती नहि मानैत छथि, डॉक्टर बिना पाइ लेने किएक इलाज करत, पूर्व प्रेमी मँगनीमे पाइ किएक देत आ ओ स्त्री जे पूर्व प्रेमी संग राति नहि बिताओत तँ ओकर प्रेमी मरि जएतैक।
आब बारसँ लेखक निकलैत छथि तँ दरबानक सलाम मारलापर अहूमे पैसाक टनक सुनाइ पड़ए लगैत छन्हि।

कुश्ती

कथाक प्रारम्भ लुंगीपरक सुखाएल कड़गर भेल दागसँ शुरू होइत अछि। मुदा तुरत्ते स्पष्ट होइत अछि जे ओ से दाग नहि अछि वरन घावक दाग अछि। फेर हाटक कुश्तीमे गामक समस्याक निपटारा , हेल्थ सेन्टरक बन्द रहब, ओतए ईंटाक चोरिक च्ररचा अबैत अछि। छोट भाइ कोनो इलाजक क्रममे एलोपैथीसँ हटि कए होम्योपैथीपर विश्वास करए लगैत छथि, एहि गपक चरचा आएल अछि। लोक सभक घावक समाचार पुछबा लऽ अएनाइ आ लेखक द्वारा सभकेँ विस्तृत विवरण कहि सुनओनाइ मुदा उमरिमे कम वयसक कैक गोटेकेँ टारि देनाइ, ई सभ क्रम एकटा वातावरणक निर्माण करैत अछि।

कैनरी आइलैण्डक लारेल

सुभाष आ उपिया कथाक चरित्र छथि।
बिम्ब जेना निर्णय कोसीक धसना जकाँ। ममियौत भाइक चिट्ठी, कटारि देने नाहपर जएबाक, गेरुआ पानिक धारमे आएब, नाहक छीटपर उतारब, छीटक बादो बहुत दूर धरि जाँघ भरि पानिक रहब। धीपल बालुपर साइकिलकेँ ठेलैत देखि क्यो कहैत छन्हि- “साइकिल ससुरारिमे देलक-ए? कने बड़द जकाँ टिटकार दियौक”।
दीदी पीसा अहिठाम एहि गपक चरचा जे कोटक खातिर हुनकर बेटीक विवाह दू दिन रुकि गेल छलन्हि आ ईहो जे बेसी पढ़ने लोक बताह भऽ जाइत अछि।
सुभाष चाहियो कऽ दू सए टाका नहि माँगि पबैत छथि, दीदीक व्यवहार अस्पष्ट छन्हि, सुभाष आस्वस्त नहि छथि आ घुरि जाइत छथि।

तृष्णा
लेखककेँ अखिलन भेटैत छन्हि। श्रीलतासँ ओ अपन भेँटक विवरण कहि सुनबैत अछि। पाँचम दिन घुरलाक बाद ट्रेनमे ओ नहि भेटलीह। आब अखिलन की करत, विशाखापत्तनम आ विजयवाड़ाक बीचक रस्तामे चक्कर काटत आकि स्मृतिक संग दिन काटत।
दाना
मोहन इन्टरव्यू लेल गेल अछि, ओतए सहृदय चपरासी सूचित करैत छैक जे बाहरीकेँ नहि लैत छैक, पी.एच.डी. रहितए तँ कोनो बात रहितए। मोहनकेँ सभ चीज बीमार आ उदास लगैत रहए। फुद्दी आ मैना पावरोटीक टुकड़ीपर ची-ची करैत झपटैत रहए।
दृष्टि
पढ़ाइ खतम भेलाक बाद नोकरीक खोज , गाममे लोकसभक तीक्ष्ण कटाक्ष। फेर दक्षिण भारतीय पत्रकारक प्रेरणासँ कनियाँक विरोधक बावजूद गाममे लेखकक खेतीमे लागब।
नदी
गगनदेवक घरपर बिहारी आएल छैक। शहरमे ओकरा एक साल रहबाक छैक। गगनदेवकेँ ओकरा संग मकान खोजबाक क्रममे एकटा लड़कीसँ भेँट होइत छैक। ओकरा छोड़ि आगाँ बढ़ल तँ ई बुझलाक बादो जे आब ओकरासँ फेर भेँट नहि हेतइ ओ उल्लास आ प्रेमक अनुभूतिसँ भरि गेल।
परलय
बौकी बुनछेकक इन्तजारीमे अछि। मुदा धारमे पानि बढ़ि रहल छैक। कोशीक बाढ़ि बढ़ल आबि रहल छैक आ एम्हर माएक रद्द-दस्तसँ हाल-बेहाल छैक। माल-जाल भूखसँ डिकरैत रहै। रामचरनक घरमे अन्नपानि बेशी छैक से ओ सभकेँ नाहक इन्तजाम लेल कहैत छैक। बौकूक घरसँ कटनियाँ दूर रहै। मृत्यु आ विनाश बौकूकेँ कठोर बना देलकैक, मोह तोड़ि देलकैक। मुदा बरखा रुकि गेलैक। बौकू चीज सभकेँ चिन्हबाक आ स्मरण करबाक प्रयत्न करए लागल।
बात
नेबो दोकानपर नेबोवला आ एकटा लोकक बीचमे बहस सुनैत लेखक बीचमे बीचमे कूदि पड़ैत छथि। नेबोवलासँ एक गोटे अपन छत्ता माँगि रहल अछि जे ओ नीचाँ रखने रहए।
दुखक गप, लेखकक अनुसार, बेशी दिन धरि लोककेँ मोन रहैत छैक।
रंभा
रस्तामे एक स्त्री अबैत अछि। लेखक सोचैत छथि जे ई के छी, रम्भा, मेनका आकि…। ओकरा संग बेटा छैक, ओतेक सुन्नर नहि, कारण एकर वर सुन्दर नहि होएतैक। ओ गपशपमे कखनो लेखककेँ ससुर जकाँ, कखनो अपनाकेँ हुनकर बेटी तुल्य कहैत अछि। पहिने लेखककेँ खराप लगलन्हि। मुदा बादमे लेखककेँ नीक लगलन्हि। मुदा अन्तमे ओकर पएर छूबए लेल झुकब मुदा बिन छूने सोझ भऽ जाएब नहि बुझिमे अएलन्हि।
हमर गाम
लेखकक गामक रस्ता- कटनियाँसँ मेनाही गामक लोकक छिड़िआएब, बान्हक बीचमे अहुरिया काटैत लोक। कोसिकन्हाक लोक- जानवरक समान, जानवरक हालतमे। कटनियाँमे लेखकक घर कटि गेलन्हि से नथुनियाँ एहिठाम टिकैत छथि। मछबाहि आ चिड़ै बझाबऽ लेल नथुनी जोगार करैत अछि। जमीनक झगड़ा- एक हिस्सेदारक जमीन धारमे डूमल छैक से ओ लेखकक गहूमवला खेत हड़पए चाहैत अछि। शन आ स्त्रीक! पाछू लोक बेहाल अछि। स्त्रीक पाछू बिन कारणक लेखक पड़ि गेल छथि। यावत सभ कमलक घूर लग कपक अभावमे बेरा-बेरी चाह पिबैत छथि, फसिल कटि कऽ सिबननक एतए चलि जाइ-ए।
झौआ, कास, पटेरक जंगल जखन रहए, चिड़ै बड्ड आबए, आब कम अबैत अछि। खढ़िया, हरिन, माछ, काछु, डोका सभ खतम भऽ रहल छैक- जीवनक साधन दुर्लभ भऽ गेल अछि। साँझमे जमीनक पंचैती होइत अछि।
सत्तोक बकड़ी मरि गेलैक, पुतोहु एकर कारण सासुक सरापब कहैत अछि। सासु एकर कारण बलि गछलोपर पाठीसभकेँ बेचब कहैत छथि। सत्तोक बेटीक जौबनक उभारकेँ लेखक पुरुष सम्पर्कक साक्षी कहैत छथि, ओ एखन सासुर नहि बसैत छैक। सुकन रामक एहिठाम खाइत काल लेखककेँ संकोच भेलन्हि, जकरासँ उबरबाक लेल ओ बजलाह- आइ तोरा जाति बना लेलिअह। कोसी सभ भेदभावकेँ पाटि देलक, डोम, चमार, मुसहर, दुसाध, तेली, यादव सभ एके कलसँ पानि भरैत अछि। एके पटियापर बैसैत अछि।
कनियाँ-पुतरा
रस्तामे एकटा बचिया लेखकक पएर् छानि फेर ठेहुनपर माथ राखि निश्चिन्त अछि जेना माएक ठेहुनपर माथ रखने होए। जेना चम्पीवला लेखककेँ बुझाइय रहन्हि जे हुनका युवती बुझि रहल छलन्हि। नेबो सन कोनो कड़गर चीज लेखकसँ टकरेलन्हि। ई लड़कीक छाती छिऐ। लड़की निर्विकार रहए जेना बाप-दादा वा भाए बहिन सऽ सटल हो। लेखक सोचैत छथि, ई सीता बनत की द्रौपदी। राबन आ दुर्जोधनक आशंका लेखककेँ घेर लैत छन्हि।
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विदेह

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