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विदेह १५ मई २००८ वर्ष १ मास ५ अंक ११ २.शोध लेखमायानन्द मिश्रक इतिहास बोध (आँगा)प्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/ /पुरोहित/ आ’ स्त्री-धन केर संदर्भमे

In शोध, Maithili Research Paper on जुलाई 27, 2008 at 6:48 अपराह्न

२.शोध लेख
मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध (आँगा)
प्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/ /पुरोहित/ आ’ स्त्री-धन केर संदर्भमे
श्री मायानान्द मिश्रक जन्म सहरसा जिलाक बनैनिया गाममे 17 अगस्त 1934 ई.केँ भेलन्हि। मैथिलीमे एम.ए. कएलाक बाद किछु दिन ई आकाशवानी पटनाक चौपाल सँ संबद्ध रहलाह । तकरा बाद सहरसा कॉलेजमे मैथिलीक व्याख्याता आ’ विभागाध्यक्ष रहलाह। पहिने मायानन्द जी कविता लिखलन्हि,पछाति जा कय हिनक प्रतिभा आलोचनात्मक निबंध, उपन्यास आ’ कथामे सेहो प्रकट भेलन्हि। भाङ्क लोटा, आगि मोम आ’ पाथर आओर चन्द्र-बिन्दु- हिनकर कथा संग्रह सभ छन्हि। बिहाड़ि पात पाथर , मंत्र-पुत्र ,खोता आ’ चिडै आ’ सूर्यास्त हिनकर उपन्यास सभ अछि॥ दिशांतर हिनकर कविता संग्रह अछि। एकर अतिरिक्त सोने की नैय्या माटी के लोग, प्रथमं शैल पुत्री च,मंत्रपुत्र, पुरोहित आ’ स्त्री-धन हिनकर हिन्दीक कृति अछि। मंत्रपुत्र हिन्दी आ’ मैथिली दुनू भाषामे प्रकाशित भेल आ’ एकर मैथिली संस्करणक हेतु हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित कएल गेलन्हि। श्री मायानन्द मिश्र प्रबोध सम्मानसँ सेहो पुरस्कृत छथि। पहिने मायानन्द जी कोमल पदावलीक रचना करैत छलाह , पाछाँ जा’ कय प्रयोगवादी कविता सभ सेहो रचलन्हि।
मायानन्द मिश्र जीक इतिहास बोध
प्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/ /पुरोहित/ आ’ स्त्री-धन केर संदर्भमे

देवासुर संग्रामक बाद इन्द्र असुर उपाधि त्यागलन्हि आदि गप पोथीक समाप्ति पर ऋचालोकमे मायानन्द जी लिखैत छथि। किछु पाश्चात्य विद्वान सेहो ऋगवेदक दार्शनिक महत्त्वकेँ कम करबाक लेल ई गप कहैत छथि जे यूनानमे देवतत्र पूर्ण रूपसं पल्लवित छल मुदा ऋगवेदिक समाज घुमतु छल आऽ देवतंत्र ताहि द्वारे विकसित नहि छल। ओऽ लोकनि ई सेहो कहैत छथि जे ऋगवेदक रचना अश्व पर घुमतु जीवन यापित केनहार पश्चिमी आक्रमणकारी कएने छथि। ऋगवेदिक कवि लोकनि आरंभिक सामूहिक संपत्ति आऽ रक्त्त संबंध आधारित गणसमाज दुनूसँ परिचित छलाह मुदा स्वयं ओहिसँ बाहर आबि गेल छलाह आऽ व्यक्त्तिगत आऽ कुटुम्बक संपत्तिक आधार बला व्यवस्था शुरू कए देने छलाह। संपत्ति पुरुष केंद्रित आऽ परिवार पितृसत्तात्मक छल। मुदा मातृसत्तात्मक व्यवस्थाकेँ ओऽ बिसरल नहि छलाह, कारण ओऽ आपः मातरः कहि बहुवचनमे जलदेवीक उपासना आऽ स्मरण करैत छथि, संगहि मरुतगण सदिखन गणक रूपमे स्मरण आऽ उपासना करैत छथि।
आब जाऽ कए एंगेल्स कहैत छथि जे यूनानमे मातृसत्तासँ पितृसत्ता प्राचीन कालक सभसँ पैघ क्रान्ति छल। ई क्रान्ति ऋगवेदिक कालमे घटित भए गेल छ्ल। श्रमक वैशिष्टीकरणसँ उत्पादनमे गोत्रक भूमिका घटि जाइत अछि, आऽ कुटुम्बक बढ़ि जाइत अछि। गण, गोत्र, कुल आऽ कुटुम्बक क्रमशः विकास सामूहिक भूसंपत्तिक संगठनसँ होइत अछि। ऋगवेदमे कुम्भकार, कमार(काष्ठकार), लोहार आऽ धातु शिल्पक चर्च अछि। प्राचीन ईरानमे असुरक प्रतिरूप अहुरक प्रयोग भेल, ओऽ लोकनि एकर उपासक छलाह, मुदा असुर-उपासक भारतीय जनक प्रभाव ईरान धरि सीमित छल, आगाँ एकर प्रसार नहि भेल। भारतमे असुर दुष्ट छथि मुदा ईरानमे देव दुष्ट छथि। असुरक गरिमा सम्पूर्ण ऋगवेदमे अछि। कोनो मण्डल एहन नहि अछि जाहिमे कोनो एक वा आन देवताकेँ असुर नहि कहल गेल होए। मुदा एहनो असुर छथि जे देवक विरोधमे छथि आऽ इन्द्रसँ एहन अदेवाः असुराः केर नाशक हेतु आह्वाण कएल गेल अछि।इन्द्रक समान अग्नि सेहो असुरक नाश करैत छथि आऽ इन्द्र आऽ बृहस्पति दुनू गोटे स्वयं असुर छथि। असुर देवताक उपाधि छल। ऋगवेदमे देव आऽ असुरक सदृश असुर एकट भिन्न वर्ग छल, मुदा असुर श्वास लैत छला मुदा देव नहि। देवसँ असुर बेशी प्रचीन छथि, ताहि द्वारे असुर वरुण देव आऽ मनुष्य दुहूक राजा छथि।
पुरोहित
पुरोहित हिन्दीमे अछि आऽ शृखलाक तेसर पोथी थीक। दूर्वाक्षत जकरा मायानन्दजी सुविधारूपेँ आशीर्वचन सेहो कहि गेल छथि सँ एकर प्रारम्भ भेल अछि।
(अनुवर्तते)
c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।

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